अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष: भारत में महिलायें सुरक्षित क्यों नहीं हैं ? Why Women are not safe in India? views by Abhinav Singh
Why Women are not safe in India? भारत में महिलायें सुरक्षित क्यों नहीं हैं ?
आज का अवसर केवल औपचारिकता का अवसर नहीं है। यह चिंतन और स्मरण की वेला है। हम विकास का दंभ भरने लगे हैं और पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता का अनुसरण इस हद तक करने लगे हैं कि पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता हमारे घर के खिड़की दरवाजे तोड़ने के साथ साथ घर की स्वीकारें तोड़ने को भी तैयार खड़ी हैं। विकास के बढ़ते पैमाने ने हमारी नैतिकता का स्तर इस हद तक गिराया है कि हम संवेदना शून्य होते चले जा रहे हैं। हालात ये हैं कि गणतंत्र दिवस पर जिस शान ओ शौकत से हमारी आंखें चुंधिया रही हैं। उसी से कुछ ही दिन पूर्व मध्य प्रदेश में मानवता की हत्या के देने वाली एक घटना सामने आई। उमरिया जिले में अपनी मां से मिलने आई 13 वर्षीय लड़की का अपहरण किया गया। अपहरण करने वाले 2 युवकों ने लड़की के साथ बलात्कार किया। लेकिन बात सिर्फ यही नहीं है, बात अलग ये है कि जब लड़के, उस लड़की को लेकर पास के ढाबे के पास गए। ढाबे वाले को जब कुछ मामला गड़बड़ लगा तो उसने लड़की से पूछना शुरू किया जिससे घबरा कर दोनों लड़के उस लड़की को वहीं पर छोड़ कर भाग गए। यहां तक तो आपने हर समाचार पत्र, हर न्यूज चैनल में पढ़ा या सुना ही होगा। लेकिन उन लड़के के जाने के बाद उस ढाबे वाले ने उस लड़की के साथ बलात्कार किया। उस ढाबे पर मौजूद उसके 4 साथियों ने भी उस लड़की के साथ बलात्कार किया। वहां से जान छुड़ा कर भागी वह बच्ची एक ट्रक के सामने आ गई लेकिन मरी नहीं। ट्रक वाले ने उसकी हालत देख कर उससे उसका हाल पूछा और जब लड़की ने अपनी आप बीती सुनाई तो ट्रक ड्राइवर ने भी उसी लड़की के साथ Rape किया।
जब मैंने यह खबर पढ़ी तो मेरी तो समझ में नहीं आया कि कैसी प्रतिक्रिया दूं? क्या लिखूं? क्या कहूं? बुद्धि जड़ हो गई, आक्रोश से मेरे कान लाल हो गए थे। निराशा से हाथ कांपने लगे थे, और हताशा के या पता नहीं किस भाव से मेरी आंखे नम हो गई थी? आखिर कौन लगती है वो लड़की मेरी? आखिर क्यों मैं उसकी पीढ़ा से इतना बेचैन होने लगा। आखिर क्यों मेरे अंदर भावनाओं का उद्वेग इस कदर हावी हुआ की मेरी लेखनी, मेरे विचार सब कुंद पड़ गए। कई दिन हुए इस घटना को हुए, लेकिन किसी न्यूज चैनल ने इस खबर को दिखाया तक नहीं। आखिर क्यों ? क्या सिर्फ इसलिए कि वो लड़की दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों से नहीं थी। क्या सिर्फ इसलिए कि उसकी खबर दिखाना इनकी TRP में फिट नहीं बैठता? या सिर्फ इसलिए कि यदि ये खबर अभी दिखा दी तो देश में बाकि अन्य मुद्दों से ध्यान हट जायेगा?
क्या देश का मीडिया सिर्फ वही ख़बरें दिखलाना चाहता है जो उसके एजेंडे में फिट होती हैं? क्या ये खबर कोई खबर नहीं? क्या इस बड़े देश के छोटे शहर में रहने वाली लड़कियों की समस्याएं इस देश की नहीं हैं?
जनवरी महीने में घटने वाली ये इस प्रकार की कोई एकलौती घटना नहीं है, अकेले मध्य प्रदेश में इस महीने 3 शीलभंग की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। हरियाणा में तो एक पिता ने अपनी ही बेटी का कई बार बलात्कार किया। शायद ऐसा कोई दिन नहीं रह गया है जब सुबह सुबह अखबार में Rape की घटनाएं न पढ़ने को मिलती हो। ऐसा क्या होता जा रहा है समाज में जिससे ये घटनाएं इतनी आम बनती जा रही हैं। जब इन मुद्दों पर सोचता हूँ तो विवेक पता नहीं कहाँ चला जाता है, एक खीझ , एक कुढ़न, एक बेबसी लाचारी दिमाग में घर करने लगती है और बुद्धि पर ताला लग जाता है। आखिर हो भी क्यों न। आखिर हम भी तो इसी समाज में रहते है। इसी समाज में जीते हैं जहां महिलायें तो क्या बच्चियां और यहां तक की नवजात तक सुरक्षित नहीं हैं। मीडिया से क्या ही उम्मीद कर सकते हैं, मैं तो बस यही कहना चाहूंगा की लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ में दीमक लग चुकी है। और अगर कुर्सी का एक पैर बेकार होने लगे तो कुर्सी गिरने में ज़्यादा देर नहीं लगती।
- इतिहास के पहलू से :-
यह तो रही बात खबर या घटना को समाज को दिखलाने की बात। असली समस्या की जड़ तो ये है की आखिर ये घटनाएँ हो ही क्यों रही है। समाज का नैतिक पतन आखिर क्यों हो रहा है। इसके मुझे कोई कारण दिखाई नहीं देते। हाँ लेकिन इतना जरूर कहना चाहूंगा कि समाज को अपनी पीढ़ियों को स्वयं सिखाना होगा, कोई बाहरी कभी कोई काम की बात नहीं सिखा सकता । अंग्रेजों ने 200 साल हमपर राज किया और इन्ही 200 सालों में भारतीय समाज का सबसे अधिक पतन हुआ। ऐसा नहीं की भारत पर अंग्रेजों से पहले किसी विदेशी ने राज नहीं किया परन्तु समाज का आर्थिक और चारित्रिक पतन जितना अंग्रेजों के ज़माने में हुआ उतना शायद शायद उनसे पहले के 800 वर्षों में नहीं हुआ। भारत में बलात्कार की घटना प्राचीन समय में कभी सुनने में नही मिली। यह हमारी सभ्यता का हिस्सा ही नहीं हैं। प्राचीन काल में युद्ध में जीतने वाला राजा केवल नगरों को ध्वस्त तो करता था लेकिन कभी किसी राजा ने विजित राज्य की स्त्रियों पर नज़र भी डाली हो ऐसा कहीं कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है। तो सवाल ये उठता है कि भारत में ये घिनौनी प्रथा आई कहाँ से ?
समाज में किसी स्त्री या लड़की कि अस्मिता पर कुदृष्टि डालने की पहली घटना 713 में मोहम्मद बिन क़ासिम द्वारा की गई ऐसा प्रमाण मिलता है। जब सिंध को जीतने के बाद सिंध नरेश राजा दाहिर की हत्या करने क्वे बाद वह उनकी दोनों पुत्रियों सूर्या और परिमला को खलीफा को भेंट करने के उद्देश्य से अरब ले गया। खैर वहाँ जाकर उससे भारत्या बालाओं ने कैसे बदला लिए यह एक अलग विषय है, लेकिन भारत में इस प्रथा का प्रारम्भ करने वाला वह पहला यथार्थ व्यक्ति था। उसके बाद अन्य अरबी आक्रांताओं ने भारतीय महिलाओं की अस्मिता लूटने की कोशिश की लेकिन भारतीय नारियां जंगल की वो शेरनियां हैं जो जंगल भरा होने पर शांत रहती हैं लेकिन यदि कोई उनकी शांति भंग करने की कोशिश करे तो उसको चीर कर रख देती हैं। रानी पद्मिनी का जौहर सबको याद ही होगा। राणा रतन सिंह की छल से हत्या करने के बाद कैसे रानी को अपनी अस्मिता एवं सम्मान बचने के लिए अग्नि कुन को गले लगाना पड़ा वो घटना भारतीय महिलाओं को सतीत्व एवं भारतीय पुरुषों को स्वाभिमान की शिक्षा आज तक देती आ रही है। अकबर के समय भी रानी कर्णावती को जौहर की आग में जलना पड़ा था परन्तु भारतीय किताबें अकबर का यह रूप नहीं पढ़तीं। क्यूंकि इससे उनका एजेंडा सिद्ध नहीं होगा।
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