सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

History of Chambal

 चम्बल का इतिहास क्या हैं? ये वो नदी है जो मध्य प्रदेश की मशहूर विंध्याचल पर्वतमाला से निकलकर युमना में मिलने तक अपने 1024 किलोमीटर लम्बे सफर में तीन राज्यों को जीवन देती है। महाभारत से रामायण तक हर महाकाव्य में दर्ज होने वाली चम्बल राजस्थान की सबसे लम्बी नदी है। श्रापित और दुनिया के सबसे खतरनाक बीहड़ के डाकुओं का घर माने जाने वाली चम्बल नदी मगरमच्छों और घड़ियालों का गढ़ भी मानी जाती है। तो आईये आज आपको लेकर चलते हैं चंबल नदी की सेर पर भारत की सबसे साफ़ और स्वच्छ नदियों में से एक चम्बल मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में महू छावनी के निकट स्थित विंध्य पर्वत श्रृंखला की जनापाव पहाड़ियों के भदकला जलप्रपात से निकलती है और इसे ही चम्बल नदी का उद्गम स्थान माना जाता है। चम्बल मध्य प्रदेश में अपने उद्गम स्थान से उत्तर तथा उत्तर-मध्य भाग में बहते हुए धार, उज्जैन, रतलाम, मन्दसौर, भिंड, मुरैना आदि जिलों से होकर राजस्थान में प्रवेश करती है। राजस्थान में चम्बल चित्तौड़गढ़ के चौरासीगढ से बहती हुई कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, करोली और धौलपुर जिलों से निकलती है। जिसके बाद ये राजस्थान के धौलपुर से दक्षिण की ओर

The Story of Yashaswi Jaiswal

Yasahavi jaiswal


जिस 21 वर्षीय यशस्वी जयसवाल ने ताबड़तोड़ 98* रन बनाकर कोलकाता को IPL से बाहर कर दिया, उनका बचपन आंसुओं और संघर्षों से भरा था। यशस्‍वी जयसवाल मूलरूप से उत्‍तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। वह IPL 2023 के 12 मुकाबलों में 575 रन बना चुके हैं और ऑरेंज कैप कब्जाने से सिर्फ 2 रन दूर हैं। यशस्वी का परिवार काफी गरीब था। पिता छोटी सी दुकान चलाते थे। ऐसे में अपने सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ 10 साल की उम्र में यशस्वी मुंबई चले आए। मुंबई में यशस्वी के पास रहने की जगह नहीं थी। यहां उनके चाचा का घर तो था, लेकिन इतना बड़ा नहीं कि यशस्वी यहां रह पाते। परेशानी में घिरे यशस्वी को एक डेयरी पर काम के साथ रहने की जगह भी मिल गई। नन्हे यशस्वी के सपनों को मानो पंख लग गए।


पर कुछ महीनों बाद ही उनका सामान उठाकर फेंक दिया गया। यशस्वी ने इस बारे में खुद बताया कि मैं कल्बादेवी डेयरी में काम करता था। पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और थोड़ी देर के लिए सो जाता था। एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता। नौकरी तो गई ही, रहने का ठिकाना भी छिन गया। यशस्वी इसके बाद कुछ दिनों तक भूखे-प्यासे सड़कों पर भटकते रहे। यशस्वी ने अपनी तकलीफों के बारे में कभी किसी को कुछ नहीं बताया, वजह ये थी कि कहीं संघर्ष की कहानी भदोही तक न पहुंच जाए और उनका क्रिकेट करियर ही खत्म हो जाए। यशस्वी को डर था कि अगर परिवार उनके हालात के बारे में जानेगा, तो उन्हें वापस घर बुला लिया जाएगा। 


तमाम जद्दोजेहद के बाद भटकते हुए यशस्वी को रहने का ठिकाना मिल गया, और ये ठिकाना था टेंट। कई साल तक यशस्वी मुंबई के आजाद मैदान ग्राउंड के मुस्लिम यूनाइटेड क्लब टेंट में ही रहे। वह रात भर तमाम कर्मचारियों के लिए खाना बनाते थे और दिन में क्रिकेट का अभ्यास करते थे। पिता कई बार पैसे भेजते लेकिन वो काफी नहीं होते। यशस्वी के संघर्ष का आलम ये था कि रामलीला के समय आजाद मैदान पर यशस्वी ने गोलगप्पे भी बेचे। कई रातें तो ऐसी भी गुजरीं, जब यशस्वी को भूखा ही सोना पड़ा। यशस्वी बताते हैं कि रामलीला के समय उनकी अच्छी कमाई हो जाती थी। वह यही दुआ करता थे कि उनकी टीम के खिलाड़ी वहां न आएं, लेकिन कई खिलाड़ी वहां आ जाते थे। 


ऐसे में गोलगप्पा बेचने के दौरान साथी खिलाड़ियों को मेला घूमते हुए देख कर यशस्वी को बहुत शर्म आती थी। कई खिलाड़ी जानबूझकर यशस्वी से गोलगप्पे खरीदते हुए उनका मजाक बनाते थे। यशस्वी प्रैक्टिस सेशन के दौरान हमेशा अपनी उम्र के लड़कों को देखते थे, जो घर से खाना लाते थे। यशस्वी को तो खाना खुद बनाना था। उन्हें बिठाकर खिलाने वाला कोई नहीं था। टेंट में वह रोटियां बनाते थे। कई बार रात में परिवार की बहुत याद आती थी, तो वह सारी रात रोते थे। यशस्वी के लिए संघर्ष बहुत कठिन था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इस रात की सुबह कब होगी। नाउम्मीदी यशस्वी की हर उम्मीद तोड़ने पर आमादा थी।


आखिरकार यशस्वी के दिन भी बदले और उनकी मुलाकात यूपी के रहने वाले ज्‍वाला सिंह से हुई। ज्वाला सिंह ने यशस्वी को गाइड किया, जिसके बाद स्‍थानीय क्रिकेट में यशस्‍वी के बल्‍ले की धमक सुनाई पड़ने लगी। सफर आगे बढ़ा और अंडर-19 खेलते हुए ही यशस्वी अर्जुन तेंदुलकर के संपर्क में आए। अर्जुन ने यशस्‍वी के बारे में पिता सचिन तेंदुलकर को बताया। यशस्‍वी की मेहनत से सचिन काफी प्रभावित हुए और उन्‍होंने अपने ऑटोग्राफ वाला बैट उन्‍हें गिफ्ट में दिया। ढाका में खेले गए अंडर-19 एशिया कप से यशस्वी चर्चा में आए थे। श्रीलंका के खिलाफ फाइनल में उन्‍होंने 113 गेंद में 85 रन की पारी खेली थी। इस पारी के बूते भारत ने श्रीलंका को 144 रन से हराकर टूर्नामेंट जीता था। इस टूर्नामेंट में उन्‍होंने 318 रन बनाए थे।


2020 में 18 साल की उम्र में राजस्थान रॉयल्स की तरफ से यशस्वी जयसवाल को आईपीएल में डेब्यू करने का मौका मिला और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। KKR के खिलाफ 11 मई, 2023 को खेला जाने वाला मुकाबला राजस्थान के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण था। अगर उसे प्लेऑफ की दौड़ में कायम रहना था, तो रन रेट में सुधार करते हुए जीत दर्ज करनी जरूरी थी। KKR ने 15प रनों का लक्ष्य सामने रखा। बदले में यशस्वी के 47 गेंद पर 13 चौकों और 5 छक्कों से सजी 98* रनों की पारी की बदौलत राजस्थान ने 41 गेंद बाकी रहते ही लक्ष्य हासिल कर लिया। संजू सैमसन ने यशस्वी के शतक पूरा करने की खातिर उन्हें स्ट्राइक सौंपी। जयसवाल छक्का लगाकर सेंचुरी पूरी करने की बजाय चौका जड़कर टीम को जीत दिलाने में ज्यादा खुश हुए। मैच के बाद यशस्वी ने कहा कि मेरे लिए शतक से ज्यादा टीम का रन रेट महत्वपूर्ण था। उम्मीद है कि इस युवा खिलाड़ी का संघर्ष रंग लाएगा। यशस्वी को ODI वर्ल्ड कप की टीम में जरूर चुना जाएगा।

टिप्पणियाँ

Best From the Author

Superstar Rajni

 सुपरस्टार कर्नाटक के लोअर मिडल क्लास मराठी परिवार का काला बिलकुल आम कद काठी वाला लड़का सुपर स्टार बना इस का श्रेय निर्देशक बाल चंदर को जाता है।इस बस कंडक्टर में उन्हे कुछ स्पार्क दिखा। उस के बाद उन्होंने शिवाजी राव गायकवाड को एक्टिंग सीखने को कहा और कहे मुताबिक शिवाजीराव ने एक्टिंग सीखी। उस समय दक्षिण में शिवाजी गणेशन नाम के विख्यात स्टार थे। उन के नाम के साथ तुलना न हो इसलिए शिवाजीराव का फिल्मी नामकरण रजनी किया गया।किसी को भी नही लगा होगा की ये शिवाजी उस महान स्टार शिवाजी को रिप्लेस करेगा ! रजनी सर ने अपनी शुरुआत सेकंड लीड और खलनायक के तौर पर की।रजनी,कमला हासन और श्रीदेवी लगभग एकसाथ मेन स्ट्रीम सिनेमा में आए और तीनो अपनी अपनी जगह छा गए।स्क्रीन प्ले राइटिंग में ज्यादा रुचि रखने वाले कमला हासन ने वही पर ज्यादा ध्यान दिया और एक्सपेरिमेंटल मास फिल्मे की।रजनीकांत को पता था साउथ के लोगो को क्या देखना।साउथ के लोग जब थियेटर आते है तब वो दो ढाई घंटे सामने पर्दे पर जो हीरो दिख रहा उस में खुद को इमेजिन करते है ।रजनी जनता के दिलो में छा गए क्युकी वो उन के जैसे दिखते है और काम सुपर हीरो वाले करते

पद्म पुरस्कार 2021| पदम पुरस्कार का इतिहास All about Padam Awards

पद्म पुरस्कार 2021| पदम पुरस्कार का इतिहास All about PADAM AWARDS | 2021 पदम पुरस्कार भारत सरकार द्वारा हर वर्ष गणतंत्र दिवस यानी कि 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर दिए जाते हैं। यह पुरस्कार भारत में तीन श्रेणियों में दिया जाता है पदम विभूषण, पदम भूषण और पद्मश्री । यह पुरस्कार देश में व्यक्ति विशेष द्वारा किए गए असाधारण और विशिष्ट सेवा उच्च क्रम की सेवा और प्रतिष्ठित सेवा में अतुलनीय योगदान देने के लिए दिया जाता है। Padam Awards किसके द्वारा दिया जाता है पदम पुरस्कार? पदम पुरस्कार हर साल पदम पुरस्कार समिति द्वारा की गई सिफारिश के आधार पर प्रदान किए जाते हैं। यह समिति हर साल प्रधानमंत्री द्वारा तैयार की जाती है। कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को पदम पुरस्कार के लिए नामांकित कर सकता है साथ ही साथ वह खुद के लिए भी नामांकन दाखिल कर सकता है। पदम पुरस्कारों   का इतिहास पदम पुरस्कार जो 1954 में स्थापित किए गए थे, हर साल दिए जाते हैं। विशेष अवसरों जैसे 1978, 1979 और 1993 से 1997 को छोड़ दिया जाए तो पदम पुरस्कार लगभग हर साल प्रदान किए गए हैं। आजादी के बाद भारत सरकार ने समाज में उत्कृष्ट सेवा प