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काग के भाग बड़े सजनी

  पितृपक्ष में रसखान रोते हुए मिले। सजनी ने पूछा -‘क्यों रोते हो हे कवि!’ कवि ने कहा:‘ सजनी पितृ पक्ष लग गया है। एक बेसहारा चैनल ने पितृ पक्ष में कौवे की सराहना करते हुए एक पद की पंक्ति गलत सलत उठायी है कि कागा के भाग बड़े, कृश्न के हाथ से रोटी ले गया।’ सजनी ने हंसकर कहा-‘ यह तो तुम्हारी ही कविता का अंश है। जरा तोड़मरोड़कर प्रस्तुत किया है बस। तुम्हें खुश होना चाहिए । तुम तो रो रहे हो।’ कवि ने एक हिचकी लेकर कहा-‘ रोने की ही बात है ,हे सजनी! तोड़मोड़कर पेश करते तो उतनी बुरी बात नहीं है। कहते हैं यह कविता सूरदास ने लिखी है। एक कवि को अपनी कविता दूसरे के नाम से लगी देखकर रोना नहीं आएगा ? इन दिनों बाबरी-रामभूमि की संवेदनशीलता चल रही है। तो क्या जानबूझकर रसखान को खान मानकर वल्लभी सूरदास का नाम लगा दिया है। मनसे की तर्ज पर..?’ खिलखिलाकर हंस पड़ी सजनी-‘ भारतीय राजनीति की मार मध्यकाल तक चली गई कविराज ?’ फिर उसने अपने आंचल से कवि रसखान की आंखों से आंसू पोंछे और ढांढस बंधाने लगी।  दृष्य में अंतरंगता को बढ़ते देख मैं एक शरीफ आदमी की तरह आगे बढ़ गया। मेरे साथ रसखान का कौवा भी कांव कांव करता चला आ...

एक तरफा प्यार

एक तरफ़ा प्यार दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास है, ऐसा मेरा मानना नहीं है। लेकिन उन आशिक़ों को क्या कहें, जो ख़ुद को एक तरफ़ा आशिक़ माने फिरते हैं। जिन्हें ना कभी अपना प्यार मिला ना उन्होंने किसी से भी, किसी भी तरह के favor की अपेक्षा की। उनके हिसाब से एहसास भी उनकेे, जज़्बात भी उनके, रूठना भी अपने आप से, मनाना भी अपने आप से, वफ़ा भी अपने आप से और बेवफ़ाई भी अपने आप से। आप सोच रहे होंगे शायद ये आशिक़ पागल है अपने एक तरफ़ा प्यार में अँधे। लेकिन ऐसा नहीं है। इनके लिए एक सुखद अनुभूति है एक तरफ़ा प्यार। 

एक तरफ़ा प्यार में उम्मीद तो किसी से नहीं होती नही है। बस दिल बहलाने का कमाल का ज़रिया होता है, और वो है फेसबुक की डीपी। झट से सेव, देखी और हाईड कर दी। फिर कमाल है फेसबुक वाले भी,अगर फ्रेंड ना भी हों तो भी डीपी देखने का सुनहरा अवसर देते हैं। फ़िर एक सुखद अनुभूति और उसके साथ होने का एहसास, चाहे झूठा ही सही। पर एहसास तो एहसास ही होता है। अगर डीपी ना भी हो तो नज़रें सिर्फ टाइमलाइन पर, उम्मीद में कि कुछ तो नया अपडेट होगा आज। अगर लॉक हो टाइमलाइन, माशाल्लाह फिर रब से दुआऐं कि बस एक बार अनलॉक कर दे, ताकि हम भी दीदार कर सके अपनी मल्लिका-ए-हुस्न के। अगर ये सब तरक़ीबें काम न करें, तो सिर्फ उसे पहली बार फिजिकली देखने की समृति, जो दिमाग से दिल में उतर चुकी होती है। बस उसे देख के जीते है। हिम्मत तो होती नहीं है इनमें कि फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दें। बस, इतने में ही अपनी सारी दुनिया ये आशिक अपने आप में बसा लेते है।

और हाँ, अगर उनका घर हमारे घर से कुछ नज़दीक हो तो फिर तो सोने पर सुहागा। रोज़ सुबह की पहली किरण के साथ नैन-मटक्का और वो भी डरपोकों की तरह। इधर से माँ की गालियाँ सुन रहे हैं और उधर मुँह के सामने क़िताब और आँखों में सिर्फ उसका दीदार करने की हसरत कि कैसे वो दिख जाये और हमारे नैनों को ठंडक मिल जाये। इन नैनों को ठंडक देने में कभी-कभी गुड़ का गोबर भी हो जाता है। क्योंकि दो काम तो एक साथ हो नहीं सकते। एक समय पर या तो देख सकते हैं या फिर अपना काम कर सकते हैं। और हिम्मत तो भाई इस मामले में भी नहीं होती बात करने की, क्योंकि लोग क्या सोचेंगे,अपने शरीफ़ होने का टैग और पिताजी की इज़्ज़त, मान मर्यादा, इन सब का ध्यान तो रखना पड़ता है। लेकिन हाँ, कभी वो बालकनी से दिखे तो क्रिकेट खेलते हुए जानबूझ कर उसकी बालकनी की ओर ज़ोरदार छक्के मारना, ताकि हम भी उसकी नज़रों में सचिन तेंदुलकर बन सकें और वो खुद बात करने आये हमसे। लेकिन ये तरकीब भी काम नही आती आजकल।

कभी-कभी तो मुझे इनमें कोई केमिकल लोचा लगता है। कोई क्यूँ इतना प्यार कर सकता है जब उसके आने की उम्मीद ही न हो। इंसान तो जहाँ प्यार दिखे वहीं और भागता है। लेकिन इन्हें पता नही कौन सा अमृत-रस मिलता है इतना प्यार करने में, पता नही अपने आप को ही लॉयलिटी दिखाते रहते है और ट्रस्ट भी।मिलना कुछ नही है फिर सब नौटंकी क्यूँ? फिर एक दिन मैं भी मिला उस आशिक़ से और यूँ ही पूछ लिया क्या बला है ये एक-तरफ़ा आशिक़ी और जवाब मिलता है "तुम क्या जानो एक तरफ़ा प्यार?  प्यार में पाना ही थोड़े ना होता है सब कुछ। कभी-कभी खो कर भी आप प्यार को अमर कर देना होता है।"

"हट ! साला तुम भी कैसी बात करते हो। ऐसे भी कोई प्यार होता है क्या? प्यार में कोई उम्मीद ना हो मिलने की फिर फ़ायदा क्या इस प्यार का? भाड़ में जाये ऐसा प्यार। हम तो ऐसे ही अच्छे और तुम भी छोड़ो ये पागलपन!"  मज़ाकिया अंदाज़ में मैंने भी उसे छेड़ा। 

"तुम नही समझोगे।" मुस्कुराता हुआ वो वहाँ से चला गया पर मेरी समझ से शायद परे ही था सब कुछ।

नोट- एक तरफ़ा प्यार भी तब तक अच्छा लगता है, जब तक इसे अपने आप तक सीमित रखा गया हो। लेकिन किसी को परेशान करके या मजबूर करना प्यार नही कहलाता।
-abiiinabu

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