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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

 चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...

पैसा बड़ा या सोच? How to think big and positive by Abiiinabu

 पैसा बड़ा या सोच? How to think big and positive by Abiiinabu

अभी थोड़ी देर पहले ही एक किताब पढ़ रहा था। पढ़ क्या रहा था, ये समझ लो चाट रहा था (literally नहीं लेना है)।  पढ़ते पढ़ते कई चीज़ें सामने आईं, कई मुद्दे सामने आये, कई समाधान भी आये दिमाग में, सो सोचा बता दूँ आप लोगों को भी।  वैसे तो मैं फिक्शन पढ़ने का बहुत शौक़ीन हु लेकिन लाइफ रिलेटेड बुक्स पढ़ कर काफी अच्छा लगने लगा है।  वो इसलिए की जो ये किताबें कहती हैं, वो सब हमको पहले से मालूम है।  लेकिन क्या आप लोगों को मालूम है ? ज़िन्दगी में कई बार हम ऐसी जगह खुद को खड़ा पते हैं जहां हमको बेबसी और लाचारी महसूस होने लगती है। और मैंने खुद ये अनुभव किया है कि किताबें सच में हमारी सबसे अच्छी दोस्त होती हैं।  क्यूंकि वो हमको कभी छोड़ कर नहीं जा सकतीं।


      इंसान की ज़िन्दगी में सबसे ज़्यादा महत्तव क्या रखता है ? जब पापा ने मुझसे पूछा तो मैंने हस कर लापरवाही से कहा " पैसा "।  बदले में पापा भी मुस्कुराये लेकिन बाद में समझाते हुए बोले, ज़िन्दगी में सबसे ज़्यादा ज़रूरी अगर कुछ है तो वो है "इंसान की सोच "।  मैं हैरान, गणित और भौतिकी के मास्टर पिताश्री हमारे आज कैसे दर्शन और चिंतन की बातें कर रहे हैं ? पापा को शायद समझ आ गया की लड़का कनफुजिया गया है।  ज़्यादा कुछ बोले नहीं बस ये बोले जब भी किसी से मिलो तो उसकी बातों से ये पता लगाने की कोशिश करो कि उसकी सोच कैसी है? वो अपनी स्थिति के बारे में क्या सोचता है ? वो बाकि परिवेश के बारे में क्या सोचता है? अगर उसकी सोच अच्छी हुई, तो उसकी संगत से तुमको भी फायदा होगा और तुम्हारी संगत से उसको। अपनी सोच को भी अच्छा रखो, जितना पॉजिटिव रखोगे उतना लोग तुम्हारे दोस्त बनते जायेंगे।  अगर कोई अच्छा नहीं भी है तो भी अच्छे बनो क्या पता तुमसे मिलकर किसी की तलाश पूरी हो जाये।  
    भारतीय माता पिता अपने बच्चों को लेकर कुछ ज़्यादा ही सचेत रहते हैं ये तो पता था, लेकिन ये बात समझाने का तरीका मुझे बड़ा सही लगा।  बोले तो एकदम स्ट्रैट फॉरवर्ड।  बात पुरानी है, तब समझ नहीं आई थी, आज जब घर से दूर, मम्मी पापा से दूर , ज़िन्दगी की उलझनो से जूझ रहा हू, तब समझ आ रही है।  एक एक बात, जो पापा कहते हैं वो सच होती है।  "दोस्ती से ज़्यादा ज़रूरी सोच का सकारात्मक होना है।  अगर तुम्हारी सोच पॉजिटिव है, तो लोग खुद तुम्हारे पास आएंगे, और अगर तुम्हारी सोच ही अगर बेकार है तो लोग तुमसे दूर भागेंगे।  इसलिए किताबें पढ़ा करो, क्यूंकि किताबें सोच बदलने में, अलग अलग पहलु से सोचने में दिमाग खोलने में मदद करती है। पैसा बहुत ज़्यादा ज़रूरी नहीं है, ज़रूरी हैं सोच का ज़्यादा ऊंचा होना। "
    बात आजमाई गई, कई बार सच साबित हुई। और सच साबित हुए पापा। हिंदुस्तानी बाप को लड़के के गले लगते देख शायद थानोस चाचा भी चुटकी न बचाएं। ये दुनिया का वो सबसे कठिन काम है जिसको करने के लिए आपको भावनात्मक रूप के साथ शारीरिक रूप से भी मजबूत बनना होगा।  क्यूंकि 90% लड़के अपने पिता को देख कर डरते हैं ( मुंबई और सूरत वालो आप लोग एक्सेप्शनल हो ) ।आधा उत्तर भारत अपने पिता को शायद कभी गले न लगा पाया हो कभी लेकिन पिता हमेशा बच्चों के लिए खुद को आगे रखता है। अब फिर से पॉइंट पर आते हैं बात आउट ऑफ़ टॉपिक हो रही है। हाँ तो किताबें ज़रूर पढ़ना चाहिए।  आपको लाइफ में कॉन्फिडेंस बढ़ाना है तो किताब पढ़िए और पैसा कमाना है तो किताबें पढ़िए और अगर अपनी सोच अगर बढ़ानी है तो हमारे ब्लोग पढ़िए (खींखीं खीं खीं)।  आज इतना ही; ज़्यादा नहीं लिखूंगा बस कुछ किताबें बता रहा हूँ, मन करे तो पढियेगा।

किताबें जो पढ़नी चाहियें -

Attitude is Everything by Jeff Keller -Attitude is Everything by Jeff Keller

Rich Dad poor Dad ( English) by Robert T. Kiyosaki- https://amzn.to/3pbkh6R

Rich Dad poor Dad (Hindi) - https://amzn.to/2S2dY9F

Richest Man in Babylon Hindi by George S. Clason - https://amzn.to/3cbQiGF

बाद में बताइयेगा कि कैसी लगी, यहीं नीचे कमेंट सेक्शन में।  पिता पुत्र वाली संवाद  अगर पसंद आई हो और आगे सुननी हो तो वो भी बताइयेगा।  आज चलता हूँ, जल्दी आऊंगा 

- Abiiinabu




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टिप्पणियाँ

  1. सही है महाराज हमसे ज्यादा सकारात्मक तो हुए तुम भाई। 😉

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  2. अति सुन्दर पंक्तियां
    वास्तव में हर एक पुत्र का स्वप्न होता है अपने पिता के गले लगना

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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

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The Story of Yashaswi Jaiswal

जिस 21 वर्षीय यशस्वी जयसवाल ने ताबड़तोड़ 98* रन बनाकर कोलकाता को IPL से बाहर कर दिया, उनका बचपन आंसुओं और संघर्षों से भरा था। यशस्‍वी जयसवाल मूलरूप से उत्‍तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। वह IPL 2023 के 12 मुकाबलों में 575 रन बना चुके हैं और ऑरेंज कैप कब्जाने से सिर्फ 2 रन दूर हैं। यशस्वी का परिवार काफी गरीब था। पिता छोटी सी दुकान चलाते थे। ऐसे में अपने सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ 10 साल की उम्र में यशस्वी मुंबई चले आए। मुंबई में यशस्वी के पास रहने की जगह नहीं थी। यहां उनके चाचा का घर तो था, लेकिन इतना बड़ा नहीं कि यशस्वी यहां रह पाते। परेशानी में घिरे यशस्वी को एक डेयरी पर काम के साथ रहने की जगह भी मिल गई। नन्हे यशस्वी के सपनों को मानो पंख लग गए। पर कुछ महीनों बाद ही उनका सामान उठाकर फेंक दिया गया। यशस्वी ने इस बारे में खुद बताया कि मैं कल्बादेवी डेयरी में काम करता था। पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और थोड़ी देर के लिए सो जाता था। एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता। नौकरी तो गई ही, रहने का ठिकान...

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