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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

 चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...

आत्महत्या समाधान नही है रे... Suicide is not the solution। Abiiinabu।

आत्महत्या समाधान नही है रे... Suicide is not the solution। Abiiinabu।   

     वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जीवन की सार्थकता और संप्रभुता पर कुछ भी लिखना बिल्कुल वैसा ही है जैसे ढाई साल के बच्चे को न्यूटन की गति के नियम समझाना और उनसे यह आशा भी रखना कि वे इन नियमों को समझे भी और इनकी सार्थकता की सिद्धि हेतु आपसे स्वयं प्रश्न पूछें। अर्थात जिस प्रकार छोटे बच्चे को भौतिक संसार के नियमों का अर्थ तक न पता हो, उससे विज्ञान के गूढ़ रहस्यों के बारे में चर्चा करना व्यर्थ ही है। वर्तमान समय में भौतिक संसार की रूपरेखा कुछ इस प्रकार की जा रही है जैसे जो कुछ है अभी है, कल कुछ भी नही है। भौतिक संसाधनों का उपभोग करने के प्रयत्न में हम यह तक भूल जा रहे हैं कि यदि जान है तो जहान है। माना जीवन में कुछ पल अवसाद के आते हैं, कुछ क्षणों में ऐसा लगता है मानो सब कुछ समाप्त हो गया हो, कभी कभी जीवन समाप्त कर इहलोक पारगमन का घृणित विचार भी मस्तिष्क के किसी कोने में पुंजायमान हो सकता है। तब इसका अर्थ यह नही की आप अपना जीवन ही समाप्त करने चलें। इन सब बातों को करने के लिए मेरी स्वयं की आयु अभी बहुत कम है, लेकिन जहां तक मेरा ज्ञान, मेरा विवेक और मेरा दृष्टिकोण जा सकता है; वहां तक मैं इसी निष्कर्ष कर पहुंचा हूं कि यदि जीवन इतना ही आसान होता तो आज धरती पर मनुष्यों से ज्यादा चौपाए ना घूम रहे होते।

     मनुष्य एकमात्र ऐसा प्राणी है जो अपना जीवन अपने हाथ से संवार सकता है, अपने जीवन का स्तर ऊंचा उठा सकता है। लेकिन इसके साथ ही मनुष्य ही केवल वह प्राणी भी है जो अपने कृत्यों से अपना जीवन समाप्त भी कर सकता है। जीवन संघर्ष का पर्याय है, यदि जो हम चाहें वह होने लगे तो शायद संसार नियत ना चले। इसलिए आवश्यक है की सामनजस्य बैठा कर अपने अस्तित्व्य को आंका जाए और यह जान लिया जाए कि आपके जीवन पर केवल और केवल आपका अधिकार नही है। मैं Right to Privacy की बात नही कर रहा, मैं बात कर रहा हूं, मैं बात कर रहा हूं, इस युवा पीढ़ी से जो केवल अधिकारों के बारे में बात करना जानती है, और जब उनसे कोई कर्तव्यों के बारे में बात करने लगता है तब यही युवा पीढ़ी अपराधी भाव से भर कर जीवन समाप्त करने को बड़ा ही साहसी कृत्य मान लेती है।मेरी मां मुझसे जब इस संबंध में बात करती है, तब हमेशा कहती है कि जीवन की चुनौतियों से भागना साहस नहीं, जीवन में डटे रहे कर विपदाओं से पार पाना साहस है। यदि आप साहसी हैं तो समस्याओं को पीठ मत दिखाओ उनका सामना करो स्वयं को शांति मिलेगी आपका परिवार भी सुखी रहेगा।

-Abiiinabu

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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

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The Story of Yashaswi Jaiswal

जिस 21 वर्षीय यशस्वी जयसवाल ने ताबड़तोड़ 98* रन बनाकर कोलकाता को IPL से बाहर कर दिया, उनका बचपन आंसुओं और संघर्षों से भरा था। यशस्‍वी जयसवाल मूलरूप से उत्‍तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। वह IPL 2023 के 12 मुकाबलों में 575 रन बना चुके हैं और ऑरेंज कैप कब्जाने से सिर्फ 2 रन दूर हैं। यशस्वी का परिवार काफी गरीब था। पिता छोटी सी दुकान चलाते थे। ऐसे में अपने सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ 10 साल की उम्र में यशस्वी मुंबई चले आए। मुंबई में यशस्वी के पास रहने की जगह नहीं थी। यहां उनके चाचा का घर तो था, लेकिन इतना बड़ा नहीं कि यशस्वी यहां रह पाते। परेशानी में घिरे यशस्वी को एक डेयरी पर काम के साथ रहने की जगह भी मिल गई। नन्हे यशस्वी के सपनों को मानो पंख लग गए। पर कुछ महीनों बाद ही उनका सामान उठाकर फेंक दिया गया। यशस्वी ने इस बारे में खुद बताया कि मैं कल्बादेवी डेयरी में काम करता था। पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और थोड़ी देर के लिए सो जाता था। एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता। नौकरी तो गई ही, रहने का ठिकान...

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