त्यागपत्र: एक अंतर्मुखी पीड़ा की कहानी जैनेंद्र कुमार का उपन्यास 'त्यागपत्र' भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह उपन्यास मृणाल की कहानी है, जो अपने पति प्रमोद के द्वारा त्याग दी जाती है। कहानी मृणाल के अंतर्मुखी पीड़ा, सामाजिक बंधनों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संघर्ष को दर्शाती है। जैनेंद्र कुमार की लेखन शैली सरल और गहरी है। उन्होंने मृणाल के मन की उलझनों और भावनात्मक जटिलताओं को बहुत ही संवेदनशील तरीके से चित्रित किया है। कहानी में सामाजिक रूढ़ियों और व्यक्तिगत इच्छाओं के बीच का द्वंद्व स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। मृणाल का त्यागपत्र केवल एक शारीरिक त्यागपत्र नहीं है, बल्कि यह उसके आंतरिक संघर्ष और मुक्ति की खोज का प्रतीक है। उपन्यास में प्रमोद का चरित्र भी जटिल है। वह एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है जो सामाजिक दबावों और अपनी कमजोरियों के कारण मृणाल को त्याग देता है। यह उपन्यास उस समय के समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके संघर्षों पर प्रकाश डालता है। 'त्यागपत्र' एक ऐसा उपन्यास है जो पाठक को सोचने पर मजबूर करता है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजि...
आत्महत्या समाधान नही है रे... Suicide is not the solution। Abiiinabu।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जीवन की सार्थकता और संप्रभुता पर कुछ भी लिखना बिल्कुल वैसा ही है जैसे ढाई साल के बच्चे को न्यूटन की गति के नियम समझाना और उनसे यह आशा भी रखना कि वे इन नियमों को समझे भी और इनकी सार्थकता की सिद्धि हेतु आपसे स्वयं प्रश्न पूछें। अर्थात जिस प्रकार छोटे बच्चे को भौतिक संसार के नियमों का अर्थ तक न पता हो, उससे विज्ञान के गूढ़ रहस्यों के बारे में चर्चा करना व्यर्थ ही है। वर्तमान समय में भौतिक संसार की रूपरेखा कुछ इस प्रकार की जा रही है जैसे जो कुछ है अभी है, कल कुछ भी नही है। भौतिक संसाधनों का उपभोग करने के प्रयत्न में हम यह तक भूल जा रहे हैं कि यदि जान है तो जहान है। माना जीवन में कुछ पल अवसाद के आते हैं, कुछ क्षणों में ऐसा लगता है मानो सब कुछ समाप्त हो गया हो, कभी कभी जीवन समाप्त कर इहलोक पारगमन का घृणित विचार भी मस्तिष्क के किसी कोने में पुंजायमान हो सकता है। तब इसका अर्थ यह नही की आप अपना जीवन ही समाप्त करने चलें। इन सब बातों को करने के लिए मेरी स्वयं की आयु अभी बहुत कम है, लेकिन जहां तक मेरा ज्ञान, मेरा विवेक और मेरा दृष्टिकोण जा सकता है; वहां तक मैं इसी निष्कर्ष कर पहुंचा हूं कि यदि जीवन इतना ही आसान होता तो आज धरती पर मनुष्यों से ज्यादा चौपाए ना घूम रहे होते।
मनुष्य एकमात्र ऐसा प्राणी है जो अपना जीवन अपने हाथ से संवार सकता है, अपने जीवन का स्तर ऊंचा उठा सकता है। लेकिन इसके साथ ही मनुष्य ही केवल वह प्राणी भी है जो अपने कृत्यों से अपना जीवन समाप्त भी कर सकता है। जीवन संघर्ष का पर्याय है, यदि जो हम चाहें वह होने लगे तो शायद संसार नियत ना चले। इसलिए आवश्यक है की सामनजस्य बैठा कर अपने अस्तित्व्य को आंका जाए और यह जान लिया जाए कि आपके जीवन पर केवल और केवल आपका अधिकार नही है। मैं Right to Privacy की बात नही कर रहा, मैं बात कर रहा हूं, मैं बात कर रहा हूं, इस युवा पीढ़ी से जो केवल अधिकारों के बारे में बात करना जानती है, और जब उनसे कोई कर्तव्यों के बारे में बात करने लगता है तब यही युवा पीढ़ी अपराधी भाव से भर कर जीवन समाप्त करने को बड़ा ही साहसी कृत्य मान लेती है।मेरी मां मुझसे जब इस संबंध में बात करती है, तब हमेशा कहती है कि जीवन की चुनौतियों से भागना साहस नहीं, जीवन में डटे रहे कर विपदाओं से पार पाना साहस है। यदि आप साहसी हैं तो समस्याओं को पीठ मत दिखाओ उनका सामना करो स्वयं को शांति मिलेगी आपका परिवार भी सुखी रहेगा।
-Abiiinabu
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