सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

MSD The Disaster

 महेंद्र सिंह धोनी ने छुपने के लिए वो जगह चुनी, जिस पर करोड़ों आँखें लगी हुई थीं! वो जीज़ज़ की इस बात को भूल गए कि "पहाड़ पर जो शहर बना है, वह छुप नहीं सकता!" ठीक उसी तरह, आप आईपीएल में भी छुप नहीं सकते। कम से कम धोनी होकर तो नहीं। अपने जीवन और क्रिकेट में हर क़दम सूझबूझ से उठाने वाले धोनी ने सोचा होगा, एक और आईपीएल खेलकर देखते हैं। यहाँ वे चूक गए। क्योंकि 20 ओवर विकेट कीपिंग करने के बाद उनके बूढ़े घुटनों के लिए आदर्श स्थिति यही रह गई है कि उन्हें बल्लेबाज़ी करने का मौक़ा ही न मिले, ऊपरी क्रम के बल्लेबाज़ ही काम पूरा कर दें। बल्लेबाज़ी का मौक़ा मिले भी तो ज़्यादा रनों या ओवरों के लिए नहीं। लेकिन अगर ऊपरी क्रम में विकेटों की झड़ी लग जाए और रनों का अम्बार सामने हो, तब क्या होगा- इसका अनुमान लगाने से वो चूक गए। खेल के सूत्र उनके हाथों से छूट गए हैं। यह स्थिति आज से नहीं है, पिछले कई वर्षों से यह दृश्य दिखाई दे रहा है। ऐसा मालूम होता है, जैसे धोनी के भीतर अब खेलने की इच्छा ही शेष नहीं रही। फिर वो क्यों खेल रहे हैं? उनके धुर-प्रशंसक समय को थाम लेना चाहते हैं। वे नश्वरता के विरुद्ध...

Middle Class Log

यार देखिये हम मिडिल क्लास लोग हैं। जब हम गोवा नहीं जा पाते तो चुप मार के अपने गाँव चले जाते हैं! एक उमर तक ना हम ढेर आस्तिक हैं ना कम नास्तिक। कुछ कुछ मौक़ापरस्त! पीड़ा में होते हैं तो भगवान को याद करते हैं। जब सब कुछ तबाह हो जाए तो भगवान को दोष देते हैं! और जब मनोकामना पूरी हो जाए तो भगवान को किनारे कर देते हैं।

हम नेताओं को गरियाते हैं! और एक्टरों को पूजते हैं। हम अपने नेता चुनते हैं पर उनसे सवाल नहीं कर पाते। उनको ना कोस के ख़ुद को कोसते हैं। अमिताभ और सचिन हमारे भगवान होते हैं। हमको अटल बिहारी बाजपेयी, सुष्मा जी और मोदीजी के अलावा कोई और नेता लीडर लगता ही नहीं! 

हम वो हैं जो कभी कभी फटे दूध की चाय बना लेते हैं। एक ईयर फ़ोन में दोस्त के साथ रेडियो पे नग़मे सुन लेते हैं। गरमी हो या बारिश हमें विंडो सीट ही चाहिए होती है। १५ ₹/किलो आलू जब हम मोलभाव करके १३ में और धनिया फ़्री मे लेके घर लौटते हैं तो सीना थोड़ा चौड़ा कर लेते हैं।

हम कभी कभी फ़ेरी वाला समान अनायास ही ख़रीद लेते हैं। हम पैसे उड़ाते तो हैं पर हिसाब दिमाग़ में रखते हुए चलते हैं। हम दिया उधार जल्दी वापस नहीं माँग पाते ना ही लिया हुआ जल्दी चुका पाते हैं। संकोच जैसे हिमोग्लोबिन में तैरता हो हमारे।

हम ताला मारते हैं तो उसे दो तीन बार खींच के चेक कर लेते है कि ठीक से तो बंद हुआ है ना? लाइट कटी हो तो बोर्ड की सारी स्विच ओन ओफ़ करके कन्फ़र्म करते हैं की कटी ही है। हमें ख़ुद की बिजली कटी होने पे तकलीफ़ तब तक नहीं होती जब तक पड़ोसी के यहाँ भी ना आ रही हो!

बेकरी वाला बिस्क़िट हम सिर्फ़ ख़ास मेहमानों के लिए रखते हैं। और ज़िंदगी में कभी हवाई यात्रा का मौक़ा मिला तो हम उसका टिकट (बोर्डिंग पास सहित) हाई स्कूल-इण्टर की मार्कशीट की तरह सहेज के रखते हैं। हम स्लीपर ट्रेन में आठ की आठ सीटों पे बैठे यात्रियों की बात चाव से सुनते हैं और उनको अपनी तकलीफ़ और क़िस्से सुनाते हैं!

भीड़ में कोई चेहरा पसंद भी आ जाए तो पलट के देखना अपनी तौहीन समझते हैं। कोई लिफ़्ट माँग ले तो रास्ते भर ये सोचते रहते हैं कि यार बैठा ही लिया होता। हम घर से दफ़्तर और दफ़्तर से घर बस यही हिसाब लगाते हुए आते हैं कि मकान की किश्त और घर के ख़र्चे के बाद कुछ सेविंग मुमकिन है क्या?

अपने लिए नए जूते लेने के लिए हम दस बार सोचते हैं और दोस्तों के साथ पार्टी में उससे दुगने पैसे उड़ा देते हैं। हम इमोशनल होते हैं तो रो देते हैं पर आँसू नहीं गिराते। आँसू सिर्फ़ वहीं गिराते हैं जहाँ मालूम होता है कि सामने वाला आँसू चुन लेगा!

हम अपनी गलतीयों को याद नहीं करना चाहते। वाहवाही को हम ज़िंदगी से ज़्यादा सिरियस लेते हैं। हम किसी के व्यंग का जवाब उसे नज़रअन्दाज़ करके देते हैं। हम झगड़ा तबतक नहीं करते जबतक सामने वाला इतना इम्पोर्टेंट ना हो। हमें दूसरों के आगे चुप रहना पसंद है और अपनों के आगे तो हम उसे चुप करा करा के सुनाते हैं।

कोई सम्मान से बात भर कर ले हम उसे सिर चढ़ा लेते हैं और जो कोई फन्ने खाँ बना तो नज़र में! मिडिल क्लास लोग हैं। हम सुबह का खाना शाम को भी खा लेते हैं और कभी कभी तो अगली सुबह भी। हम पेप्सी पीते हैं तो मजे से ज़्यादा अपनी कम्पनी को एंजवाय करते हैं।

प्रेम को हम सीरियसली लेते हैं। हम जब प्रेम करते हैं और तो अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं उनपे और बना लेते एक मुकम्मल दुनिया। अपने अपने बजट से। मिडिल क्लास आदमी अपनी छोटी छोटी ख़्वाहिशों को बड़े बड़े अरमान के साथ जी लेता है।

गाने की लिरिक्स ना याद हो तो आधा गा के पूरी धुन गुनगुना लेते हैं। कभी कभी साबुन से बाल भी धुल लेते हैं। छोटी छोटी ख़ुशियों को पनीर खा के सेलेब्रेट कर लेते हैं। मिडिल क्लास वाला आदमी उतना ही सच्चा होता है जितनी निरछल उसकी मुस्कान। देखिएगा कभी!!

टिप्पणियाँ

Best From the Author

The Story of Yashaswi Jaiswal

जिस 21 वर्षीय यशस्वी जयसवाल ने ताबड़तोड़ 98* रन बनाकर कोलकाता को IPL से बाहर कर दिया, उनका बचपन आंसुओं और संघर्षों से भरा था। यशस्‍वी जयसवाल मूलरूप से उत्‍तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। वह IPL 2023 के 12 मुकाबलों में 575 रन बना चुके हैं और ऑरेंज कैप कब्जाने से सिर्फ 2 रन दूर हैं। यशस्वी का परिवार काफी गरीब था। पिता छोटी सी दुकान चलाते थे। ऐसे में अपने सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ 10 साल की उम्र में यशस्वी मुंबई चले आए। मुंबई में यशस्वी के पास रहने की जगह नहीं थी। यहां उनके चाचा का घर तो था, लेकिन इतना बड़ा नहीं कि यशस्वी यहां रह पाते। परेशानी में घिरे यशस्वी को एक डेयरी पर काम के साथ रहने की जगह भी मिल गई। नन्हे यशस्वी के सपनों को मानो पंख लग गए। पर कुछ महीनों बाद ही उनका सामान उठाकर फेंक दिया गया। यशस्वी ने इस बारे में खुद बताया कि मैं कल्बादेवी डेयरी में काम करता था। पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और थोड़ी देर के लिए सो जाता था। एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता। नौकरी तो गई ही, रहने का ठिकान...

The Justice Verma Incident

 हास्य व्यंग्य : वाह रे न्याय....!! फायर ब्रिगेड के ऑफिस में हड़कंप मच गया। आग लगने की सूचना जो मिली थी उन्हें। आग भी कहां लगी ? दिल्ली हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीश “फलाने वर्मा” के सरकारी बंगले में..! घटना की सूचना मिलने पर फायर ब्रिगेड कर्मचारियों के हाथ पांव फूल गए । "माई लॉर्ड" के बंगले में आग ! हे भगवान ! अब क्या होगा ? एक मिनट की भी अगर देर हो गई तो माई लॉर्ड सूली पर टांग देंगे ! वैसे भी माई लॉर्ड का गुस्सा सरकार और सरकारी कर्मचारियों पर ही उतरता है। बाकी के आगे तो ये माई लॉर्ड एक रुपए की हैसियत भी नहीं रखते हैं जिसे प्रशांत भूषण जैसे वकील भरी कोर्ट में उछालते रहते हैं।  बेचारे फायर ब्रिगेड के कर्मचारी एक साथ कई सारी फायर ब्रिगेड लेकर दौड़ पड़े और आनन फानन में आग बुझाने लग गए। अचानक एक फायर ऑफिसर की नजर सामने रखे नोटों के बंडलों पर पड़ी। वह एक दम से ठिठक गया। उसके हाथ जहां के तहां रुक गए..!! नोट अभी जले नहीं थे..!! लेकिन दमकल के पानी से खराब हो सकते थे.. इसलिए उसने फायर ब्रिगेड से पानी छोड़ना बंद कर दिया और दौड़ा दौड़ा अपने बॉस के पास गया...  "बॉस...!    म...

कहानी AIR INDIA के TATA से TATA तक के सफर की| A blogpost by Abiiinabu

कहानी AIR INDIA के TATA से TATA तक के सफर की... अभी हाल ही में भारत सरकार ने Air India को 60 हजार करोड़ के कर्ज़ से छुटकारा पाने के लिए नीलाम कर दिया। जिसे Tata Sons ने 18000 करोड़ की कीमत देकर खरीद लिया जिसके बाद रतन टाटा के एक इंस्टाग्राम पोस्ट की बहुत चर्चा हो रही है। जिसमें उन्होंने यह कहा है कि Airline का टाटा में फिर से स्वागत है।  कहानी AirIndia की... Air India Air Line, मूलतः टाटा की एयरलाइन थी। जिसे भारत सरकार ने राष्ट्रीयकृत करके इसको अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया था। एयर इंडिया का वापस टाटा ग्रुप में जाना टाटा परिवार के लिए एक भावुक लम्हा है। आज हम आपको एयर इंडिया के टाटा से वापस टाटा के तक के सफर को सुनाएंगे।  क्या आप जानते हैं J.R.D. Tata भारत के पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें फ्लाइंग सर्टिफिकेट यानी कि हवाई जहाज उड़ाने की क्षमता का सर्टिफिकेट प्रदान किया गया था। जब J R.D. Tata मात्र 25 साल के थे, तब उन्होंने यह प्राप्त कर लिया था, और उसके बाद वह पहले ऐसे व्यक्ति बने जो भारत की प्लेन को विदेशों तक ले गए। उन्होंने ही टाटा एवियशन सर्विसेज की स्थापना करके, भार...

Bageshwar Baba Controversy

नालंदा! तात्कालिक विश्व का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय! कहते हैं, संसार में तब जितना भी ज्ञान था, वहाँ सबकी शिक्षा दीक्षा होती थी। सारी दुनिया से लोग आते थे ज्ञान लेने... बौद्धिकता का स्तर वह कि बड़े बड़े विद्वान वहाँ द्वारपालों से पराजित हो जाते थे। पचास हजार के आसपास छात्र और दो हजार के आसपास गुरुजन! सन 1199 में मात्र दो हजार सैनिकों के साथ एक लुटेरा घुसा और दिन भर में ही सबको मार काट कर निकल गया। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक और उनके बीस हजार छात्र मात्र दो सौ लुटेरों से भी नहीं जूझ सके। छह महीने तक नालंदा के पुस्तकालय की पुस्तकें जलती रहीं।      कुस्तुन्तुनिया! अपने युग के सबसे भव्य नगरों में एक, बौद्धिकों, वैज्ञानिकों, दार्शनिकों की भूमि! क्या नहीं था वहाँ, भव्य पुस्तकालय, मठ, चर्च महल... हर दृष्टि से श्रेष्ठ लोग निवास करते थे। 1455 में एक इक्कीस वर्ष का युवक घुसा और कुस्तुन्तुनिया की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल गयी। सबकुछ तहस नहस हो गया। बड़े बड़े विचारक उन लुटेरों के पैरों में गिर कर गिड़गिड़ाते रहे, और वह हँस हँस कर उनकी गर्दन उड़ाता रहा। कुस्तुन्तुनिया का पतन हो ग...

Gandhi Jayanti Special महात्मा गांधी के जीवन से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य जो शायद आप ना जानते हो Interesting facts about Gandhiji

Gandhi Jayanti Special  महात्मा गांधी के जीवन से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य जो शायद आप ना जानते हो Interesting facts about Gandhiji      ब्रिटिश साम्राज्य से भारत के स्वतंत्रता की लड़ाई में गांधी जी ने अहिंसा का मार्ग अपनाया। वह आज भी अपने परिश्रम, दृढ़ता, एवं उत्साही प्रतिबद्धता के कारण याद किए जाते हैं। उन्हें आदर के साथ महात्मा, बापू एवं राष्ट्रपिता भी कहा जाता है।  भारत के गुजरात के एक वैश्य परिवार में जन्मे Mohandas ने लंदन से वकालत की पढ़ाई पूरी की, और दक्षिण अफ्रीका में एक प्रवासी के रूप में अपनी वकालत की तैयारी शुरू की। उन्होंने वहां पर भारतीय समाज के लोगों के लिए समान नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन शुरू किया। वर्ष 1915 में वे भारत लौटे और अपना जीवन भारत के किसानों और मजदूरों के साथ हो रहे अन्याय एवं अत्याचारों से लड़ने में खपाने की तैयारी करने लगे। 5 साल बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता चुने गए और पूरे देश में उन्होंने भारत का राज "स्वराज" की मांग की। गांधीजी के जीवन के 2 सबसे बड़े आंदोलन जिनमें पहला 1930 का दांडी का नमक सत्याग्रह जिसमें उन्होंने दांडी नाम...