सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Waqt aur Samose

 .. जब समोसा 50 पैसे का लिया करता था तो ग़ज़ब स्वाद होता था... आज समोसा 10 रुपए का हो गया, पर उसमे से स्वाद चला गया... अब शायद समोसे में कभी वो स्वाद नही मिल पाएगा.. बाहर के किसी भोजन में अब पहले जैसा स्वाद नही, क़्वालिटी नही, शुद्धता नही.. दुकानों में बड़े परातों में तमाम खाने का सामान पड़ा रहता है, पर वो बेस्वाद होता है..  पहले कोई एकाध समोसे वाला फेमस होता था तो वो अपनी समोसे बनाने की गुप्त विधा को औऱ उन्नत बनाने का प्रयास करता था...  बड़े प्यार से समोसे खिलाता, औऱ कहता कि खाकर देखिए, ऐसे और कहीं न मिलेंगे !.. उसे अपने समोसों से प्यार होता.. वो समोसे नही, उसकी कलाकृति थे.. जिनकी प्रसंशा वो खाने वालों के मुंह से सुनना चाहता था,  औऱ इसीलिए वो समोसे दिल से बनाता था, मन लगाकर... समोसे बनाते समय ये न सोंचता कि शाम तक इससे इत्ते पैसे की बिक्री हो जाएगी... वो सोंचता कि आज कितने लोग ये समोसे खाकर वाह कर उठेंगे... इस प्रकार बनाने से उसमे स्नेह-मिश्रण होता था, इसीलिए समोसे स्वादिष्ट बनते थे... प्रेमपूर्वक बनाए और यूँ ही बनाकर सामने डाल दिये गए भोजन में फर्क पता चल जाता है, ...

फिल्म विवेचना: वीर सावरकर Veer Savarkar Movie review

फिल्म विवेचना: स्वतंत्र वीर सावरकर

Savarkar
Poster from Savarkar Movie



इस फिल्म के साथ भी वही हुआ जो स्वर्गीय विनायक दामोदर सावरकर जी जीवित थे तब उन के साथ हुआ था।सब अच्छा था लेकिन अपनो ने ही साथ नही दिया!विस्तार से लिखने वाली हु।पढ़ने का मन हो पढ़िए । नही पढ़ना तो भी कोई बात नही।


सावरकर कौन थे ?नही जानती आज की पीढ़ी क्युकी उसे सावरकर की जगह अकबर,बाबर ही स्कूलों में पढ़ाए गए।दस साल की उमर में क्रांतिकारी संगठन शुरू करने वाले बालक विनायक।उन्नीस की उमर में भारत की सब से पहली और सब से बड़ी सीक्रेट सोसायटी अभिनव भारत को शुरू करने वाले सावरकर (याद रखिए,इन्ही सीक्रेट सोसायटीज के चलते जर्मनी,इटली,सोवियत वगैरा स्वतंत्र हुए थे ) । दर्जनों अंग्रेजी अफसरों को भारत की भूमि पर उड़ाने वाले सावरकर , यहां तक अंग्रेजो की भूमि इंग्लैंड में अंग्रेजी ऑफिशियल को मरवाने वाले सावरकर ,बम बनाने का फॉर्मूला भारत भेजने वाले सावरकर ,ब्रिटिश सरकार के नंबर वन मोस्ट वांटेड सावरकर ,कलापानी की सजा हुए पहले राजनीतिक कैदी सावरकर ,जिन की एक एक किताब की एक एक कापी अंग्रेजो ने जलाने के लिए ऑपरेशन लॉन्च किया था क्युकी उन्हे पढ़ने वाला हर एक व्यक्ति अंग्रेजो की नजर में आतंकवादी बन रहा था वो सावरकर ,जेल से बाहर आने के बाद भारत के किसी भी नेता या समाजसेवी से अधिक सामाजिक कार्य किए हुए सावरकर ,मराठी भाषा कोश को समृद्ध करने वाले सावरकर ,खुद नास्तिक हिंदू होकर भी हिंदुत्ववादी राष्ट्र की संकल्पना और उस राष्ट्र के नायक श्री शिवाजी महाराज की आरती लिखने वाले सावरकर ,भारत माता की आरती लिखने वाले सावरकर ,बीस साल की उमर से अंतिम सांस तक जेल या पुलिस की नजर कैद में रहे सावरकर !!


इस अंगार की जीवनी फिल्म के जरिए कौन दिखा रहा?एक हरियाणवी लड़का रणदीप हुडा!मुझे इस फिल्म से कोई उम्मीद नहीं थी।जब मैंने फिल्म देखी और फिर रणदीप से भी एक बारी पूछा ये कैसे किया ? उन्होंने कहा की जीवन का पूरा एक साल मैंने सावरकर जी ने लिखी हर एक किताब और सावरकर से जुड़ी हर एक किताब पढ़ने में लगाया।वो अब मेरे जहन में चले गए है।अब तो जब प्राण जायेंगे तभी निकलेंगे!मै समझ गया क्युकी मैं जानता हूं।सावरकर को पढ़ना मतलब आग से खेलना है !


मुझे ये कहने में कोई झिझक नहीं 820 करोड़ रुपए के बजट में विख्यात निर्देशक क्रिस्टोफर नोलन ने ओपन हायमर जी की बायोपिक बनाई है।रणदीप हुडा ने उसी लेवल की और कुछ मामलों में उस से बढ़िया बायोपिक बना डाली है सावरकर जी की वो भी सिर्फ 20 करोड़ में !


फिल्म की कास्टिंग अद्भुत थी।रणदीप ने कोई रिस्क नहीं ली।उस ने लगभग सभी थियेटर एक्टर्स को कास्ट किया।सब ने जान लगाकर काम किया है।फिल्म का बैक राउंड स्कोर आप को फिल्म से जोड़े रखता है।अरविंद कृष्ण की सिनेमेटों ग्राफी इतनी लाजवाब रही की ये फिल्म बीस करोड़ की नही,दो सौ करोड़ बजट वाली हर एक फ्रेम में लगती है ।फिल्म की स्क्रीन प्ले लिखते हुए रणदीप हुडा ने सावरकर जी के साथ साथ सावरकर नाम से प्रेरित हुए या सावरकर के समकक्ष हर एक बड़े क्रांतिकारी के पात्रों को भी उचित न्याय दिया है।अक्सर एक वर्ग इन क्रांतिकारियों को सावरकर विरोधी बताता है जब की सावरकर इन सब के आदर स्थान तथा सीनियर थे ।एक फिल्म अच्छी तब बनती है जब सब लोग उस में अपना सौ प्रतिशत दे और एक फिल्म मास्टर पीस तब बनती है जब उस फिल्म के लेखक निर्देशक का विजन साफ हो।रणदीप हुडा का अभिनय ,रणदीप हुडा का विजन,रणदीप हुडा का स्क्रीन प्ले,रणदीप हुडा का निर्देशन इस फिल्म को उस ऊंचाई पर ले जाता है जिस ऊंचाई के साथ आने वाले समय में जितनी बायोपिक आयेगी उन सभी को खरा उतरना पड़ेगा।


मेरी नजर में इस साल की बेस्ट फिल्म,बेस्ट एक्टर,बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट सिनेमेटोग्राफी सारे नेशनल अवार्ड ये फिल्म डिजर्व करती ही है।साथ में इस फिल्म को ऑस्कर्स में भेजना बनता है।यकीन मानिए,आप से या मुझ से ज्यादा गोरे लोग सावरकर जी को जानते है ! 


खामियां निकालनी है तो दो है।एक तो सावरकर द रायटर वाली उन की साइड फिल्म में दिखाई नही गई।ठीक है,क्या क्या दिखाएंगे तीन घंटे में ! दूसरी,सावरकर के लिखे गीत फिल्म में इस्तेमाल होने चाहिए थे।और हा,फिल्म के एंड क्रेडिट में मराठी में सावरकर जी की जीवनी पर एक रैप सॉन्ग है।जिन्हे थोड़ी थोड़ी भी मराठी आती है उन के रोंगटे खड़े हो जाएंगे।


जल्द ही ये फिल्म ओटीटी पर आएगी।आप ने नही देखी तो जरूर देखिए और पूरे परिवार को दिखाईये।जिस बंदे ने खुद के साथ साथ अपने पूरे परिवार की ही देश धर्म के लिए चिता बना डाली उस बंदे की जीवनी हर एक तक पहुंचनी चाहिए।फिल्म में सरकारी एजेंडा नही था इसलिए सरकार ने प्रमोट नही किया।ये वही लोग है जो अवैध घुसपैठियों के गुणगान करने वाली डंकी का प्रीमियर राष्ट्रपति भवन में करवाते है।और फिल्म हिंदू मुल्ला विषय से भी परे है।इस में वो मसाला नही है इस लिए सो कॉल्ड हिंदूवादी संगठन और हिंदुवीर लोग ने कश्मीर फाइल्स या केरला स्टोरी जैसे इस फिल्म का समर्थन नही किया ! सावरकर तब भी अपनो की बेरुखी से हारे थे ,आज भी वही हुआ है ।मुझे गर्व है मैने ये फिल्म थियेटर में देखी प्लस पचास अंजान फेसबुक फ्रेंड्स को भी फ्री टिकट दिए थे ।

टिप्पणियाँ

Best From the Author

The Vinod Kambli Strory

 कल रात से सचिन और कांबली के अपने गुरु रमाकांत आचरेकर के श्रद्धांजलि समारोह में मिलने के वीडियो वायरल हैं जहां सचिन का स्वैग और कांबली की बेबसी साफ दिख रही थी। मन में कई बातें आईं और अभी फुरसत में लिख रहा कल की बात को आगे बढ़ाता हूं। जहां तक मुझे याद है , कांबली और सचिन पहली बार खबरों में तब आए थे जब दोनों ने कोई स्कूल क्रिकेट पार्टनरशिप 664 रनों की थी और उसमें कांबली के रन सचिन से ज्यादा थे। सचिन को रणजी और इंटरनेशनल में पहले मौका मिला। सचिन ने भुनाया। पर मौका कांबली को भी मिला बहुत कम लोगों को याद होगा कि रणजी में कांबली का पहला शॉट ही बाउंड्री था। 1991 -92 में कांबली को वनडे में डेब्यू का मौका मिला और ठीक ठाक प्रदर्शन करके कांबली ने अपनी जगह टीम में बनाए रखी। 1992 विश्वकप टीम में भी ये थे और शायद 5 मैच खेले थे और 30 रन भी टोटल नहीं थे 92 विश्वकप का मुझे याद है कि अजहर और शास्त्री वगैरा कह रहे थे कि कांबली बहुत चुलबुला और पार्टी पसंद आदमी है। तड़क भड़क पसंद है। कई तस्वीरें मुझे कांबली की मस्ती करती याद हैं जो मीडिया में दिखी थीं। वहीं सचिन शांत रहते दिखाई देते थे। फर्क यहीं से दि...

EX PM Manmohan Singh's Demise

  मनमोहन सिंह जी का भारत के प्रधानमंत्री पद तक पहुँचना एक बड़ी और महत्वपूर्ण घटना थी क्योंकि वे भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान से विस्थापित हुए परिवार से थे। एक विस्थापित परिवार के व्यक्ति का प्रधानमंत्री पद तक पहुँचना भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का प्रमाण है।      सिंह साहब का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के चकवाल जिले में हुआ था। आजादी के बाद हुए विभाजन के बाद पाकिस्तान से लुट पिट कर भारत की ओर भागते लगभग डेढ़ करोड़ पीड़ित हिंदुओं सिक्खों का हिस्सा थे वे। तब उनकी आयु लगभग 16 साल की रही होगी। उन्होंने उन्नीसवीं सदी में हुई सबसे बड़ी बर्बरता को अपनी आंखों से देखा और भोगा था।      पाकिस्तानी जनता ने उधर के अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार किया था, यह बताने की कोई विशेष आवश्यक्ता नहीं। उस खूनी इतिहास के रङ्ग से हजारों किताबों के पन्ने लाल हैं। इतिहास का सामान्य विद्यार्थी भी उस अत्याचार को याद कर के सिहर उठता है।      मैंने कई बार सोचा है, जिस आतंक से भयभीत हो कर सिंह साहब के परिवार को अपनी मिट्टी छोड़ कर भागना पड़ा, उसी आतंक के साये में जी रहे शेष ...

The Story of Yashaswi Jaiswal

जिस 21 वर्षीय यशस्वी जयसवाल ने ताबड़तोड़ 98* रन बनाकर कोलकाता को IPL से बाहर कर दिया, उनका बचपन आंसुओं और संघर्षों से भरा था। यशस्‍वी जयसवाल मूलरूप से उत्‍तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। वह IPL 2023 के 12 मुकाबलों में 575 रन बना चुके हैं और ऑरेंज कैप कब्जाने से सिर्फ 2 रन दूर हैं। यशस्वी का परिवार काफी गरीब था। पिता छोटी सी दुकान चलाते थे। ऐसे में अपने सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ 10 साल की उम्र में यशस्वी मुंबई चले आए। मुंबई में यशस्वी के पास रहने की जगह नहीं थी। यहां उनके चाचा का घर तो था, लेकिन इतना बड़ा नहीं कि यशस्वी यहां रह पाते। परेशानी में घिरे यशस्वी को एक डेयरी पर काम के साथ रहने की जगह भी मिल गई। नन्हे यशस्वी के सपनों को मानो पंख लग गए। पर कुछ महीनों बाद ही उनका सामान उठाकर फेंक दिया गया। यशस्वी ने इस बारे में खुद बताया कि मैं कल्बादेवी डेयरी में काम करता था। पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और थोड़ी देर के लिए सो जाता था। एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता। नौकरी तो गई ही, रहने का ठिकान...

हिंदी साहित्य कहाँ से शुरू करें?

  हिंदी साहित्य कहाँ से शुरू करें?   यह प्रश्न कोई भी कर सकता है, बशर्ते वह हिंदी भाषा और उसके साहित्य में दिलचस्पी रखता हो; लेकिन प्राय: यह प्रश्न किशोरों और नवयुवकों की तरफ़ से ही आता है। यहाँ इस प्रश्न का उत्तर कुछ क़दर देने की कोशिश की गई है कि जब भी कोई पूछे :   हिंदी साहित्य कहाँ से शुरू करें?   आप कह सकें :   हिंदी साहित्य यहाँ से शुरू करें : 1. देवकीनंदन खत्री कृत ‘चंद्रकांता’ 2. प्रेमचंद की समग्र कहानियाँ 3. भगवतीचरण वर्मा का उपन्यास ‘चित्रलेखा’ 4. जैनेंद्र कुमार का उपन्यास ‘त्यागपत्र’ 5. हरिवंश राय ‘बच्चन’ का काव्य ‘मधुशाला’ 6. राहुल सांकृत्यायन कृत ‘वोल्गा से गंगा’ 7. विश्वनाथ मुखर्जी कृत ‘बना रहे बनारस’ 8. यशपाल का उपन्यास ‘दिव्या’ 9. अज्ञेय कृत ‘शेखर एक जीवनी’ और ‘नदी के द्वीप’ 10. धर्मवीर भारती कृत ‘गुनाहों का देवता’ 11. रामधारी सिंह दिनकर का काव्य ‘रश्मिरथी’ 12. पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ की आत्मकथा ‘अपनी ख़बर’ 13. राजकमल चौधरी का उपन्यास ‘मछली मरी हुई’ 14. निर्मल वर्मा का संपूर्ण साहित्य 15. हरिशंकर परसाई का संपूर्ण साहित्य 16. शिवप्रसाद मिश्र ‘र...

Controversy over Indian Cricket Team's Aggressive Behaviour

 ऑस्ट्रेलिया में चल रही टेस्ट सीरीज में भारतीय खिलाड़ियों के आक्रामक व्यवहार को लेकर बहुत चर्चा हो रही है। ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को धक्का देना, उनपर व्यंग्य करना, उन्हें ट्रोल करना... पहली नजर में यह बुरा तो लगता ही है। अपने यहाँ के लोग भी भारतीय खिलाड़ियों की असभ्यता की आलोचना कर रहे हैं।     मुझे लगता है जिन लोगों ने नब्बे के दशक तक ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों का व्यवहार देखा हो, उन्हें भारतीय खिलाड़ियों का व्यवहार बुरा नहीं लगेगा। सौरभ गांगुली के कप्तान बनने से पहले भारतीय खिलाड़ियों के साथ कैसा व्यवहार होता रहा है, वह हमें खूब याद है।      एक बार वेस्टइंडीज के गैरी सोबर्स(या शायद विवियन रिचर्ड्स) ने कहा था- "हम भारत में खेलने कहाँ आते हैं, हम तो केवल इसलिए आते हैं कि यहाँ की लड़कियां सुन्दर हैं।" आप समझ रहे हैं यह कितना अपमानजनक बयान है? भारतीय खिलाड़ियों ने लम्बे समय तक ऐसा तिरस्कार और अपमानजनक बर्ताव झेला है।      क्रिकेट इतिहास में सर्वाधिक अभद्रता ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों ने दिखाई है, और सबसे अधिक भारतीय खिलाड़ियों के विरुद्ध... खिलाड़...