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काग के भाग बड़े सजनी

  पितृपक्ष में रसखान रोते हुए मिले। सजनी ने पूछा -‘क्यों रोते हो हे कवि!’ कवि ने कहा:‘ सजनी पितृ पक्ष लग गया है। एक बेसहारा चैनल ने पितृ पक्ष में कौवे की सराहना करते हुए एक पद की पंक्ति गलत सलत उठायी है कि कागा के भाग बड़े, कृश्न के हाथ से रोटी ले गया।’ सजनी ने हंसकर कहा-‘ यह तो तुम्हारी ही कविता का अंश है। जरा तोड़मरोड़कर प्रस्तुत किया है बस। तुम्हें खुश होना चाहिए । तुम तो रो रहे हो।’ कवि ने एक हिचकी लेकर कहा-‘ रोने की ही बात है ,हे सजनी! तोड़मोड़कर पेश करते तो उतनी बुरी बात नहीं है। कहते हैं यह कविता सूरदास ने लिखी है। एक कवि को अपनी कविता दूसरे के नाम से लगी देखकर रोना नहीं आएगा ? इन दिनों बाबरी-रामभूमि की संवेदनशीलता चल रही है। तो क्या जानबूझकर रसखान को खान मानकर वल्लभी सूरदास का नाम लगा दिया है। मनसे की तर्ज पर..?’ खिलखिलाकर हंस पड़ी सजनी-‘ भारतीय राजनीति की मार मध्यकाल तक चली गई कविराज ?’ फिर उसने अपने आंचल से कवि रसखान की आंखों से आंसू पोंछे और ढांढस बंधाने लगी।  दृष्य में अंतरंगता को बढ़ते देख मैं एक शरीफ आदमी की तरह आगे बढ़ गया। मेरे साथ रसखान का कौवा भी कांव कांव करता चला आ...

जानिए क्या है भारत में कोरोना के वैक्सीन की असलियत?

भारत आबादी के हिसाब से बड़ा देश है। चीन के बाद हम आबादी में दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा मुल्क हैं। इतने बड़े स्तर पर कोई भी योजना को लागू करने के लिए मजबूत इच्छा शक्ति के साथ साथ, मजबूत प्रशासन की भी जरूरत पड़ती है।
भारत की आबादी लगभग 138 करोड़ की है। यानी अंकों में समझाएं तो 138 के आगे 7 शून्य लगा लीजिए।इतने बड़े पैमाने पर उतर कर कोई भी काम करने में समय की मांग होती है।
भारत की आबादी को अगर आयु वर्गों में बांटें तो उसको 3 मुख्य वर्गों में बांटा जा सकता है।
18 से 44 साल की आयु श्रेणी
45 से उपर, और
18 से नीचे
प्रत्येक श्रेणी में क्रमशः 62 करोड़, 44 करोड़ और 32 करोड़ के आसपास लोग हैं।
ये तो हुई आंकड़ों की बात, अब वैक्सीन के आंकड़ों की बात कर लेते हैं।
पहली आयु श्रेणी जो 18 से 44 साल के लोगो की है, इन 62 करोड़ लोगों को वैक्सीन के दो डोज लगाने के लिए लगभग 124 करोड़ लोगों की जरूरत पड़ेगी।
दूसरी आयु श्रेणी 45 से उपर वालो की है, इन 44 करोड़ लोगों को दो डोज लगवाने के क्रम में अभी 16 करोड़ डोज लग चुके हैं, और 72 करोड़ डोज की अभी और जरूरत है।

अगर 18 से कम आयु वर्ग को साथ ले लिया जाए तो हर दिन लगभग 54 करोड़ डोज की जरूरत होगी।
अगर हर दिन 40 लाख लोगों को भी डोज लगाई जाए तो जनसंख्या के आंकड़े बता रहे कि एक साल के बाद भी केवल 70% आबादी ही टीके लगवा चुकी होगी। बाकी 30% को लगभग 6 महीने और इंतजार करना पड़ेगा।
अभी के आंकड़े बताते हैं कि अभी केवल 20 से 25 लाख लोगों को ही रोज टीके लग पा रहे हैं, लेकिन शनिवार और रविवार को ये आंकड़े और भी कम हो जाते हैं।
अब सवाल ये है कि भारत में जिस हिसाब से टीके लग रहे हैं, उसी रफ्तार से ये काम कब तक पूरा होगा। और टीके मिल पाना एक अलग चुनौती बनती जा रही है।
ईश्वर इस बुरे वक्त में हम सबकी रक्षा करे।
तब तक आप घर में रहिए सुरक्षित रहिए
-abiiinabu






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