चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...
 Democracy is in Danger!! लोकतंत्र  खतरे  में  है  !!!   यह  हमारे  देश  की  विडम्बना  है  कि  तमिलनाडु  के  रामेश्वरम  की  धनुषकोटि  में  एक  नाव  चलाने  वाले  का  एक  बेटा  लोकतंत्र  की  बदौलत  देश  की  नैया  का  खवैया  बनता  है,  और  उसी  बेटे  की  पुण्यस्मृति  में  आयोजित  कई  कार्यक्रमों  में  अचानक  से  यह  कहा  जाने  लगा  कि  लोकतंत्र  खतरे  में  है।  पहले उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश और अब भूतपूर्व उप राष्ट्रपति  अचानक  से  चेते  और  एक  असंवैधानिक  कदम  उठाते  हुए  सभी  को  बोलने  लगे  कि  लोकतंत्र  विफल  हो  चुका  है , इस  देश  में  लोकतंत्र  की  हत्या  हो  चुकी  है  और  लोकतंत्र  अपने  जीवन  की  अंतिम  श्वाँसों  को  बड़ी  ही  अधीरता  से  गिन  रहा  है।   पाठकों  इस  घटना  ने  मुझे  अंदर  तक  झकझोर  दिया।  यह  घटना  एक  तमाचा  थी  मेरे  जैसे  उस  प्रत्येक  देशवासी  के  मुँह  पर  जो  यह  सोचता  था  कि  भारत  विश्व  का  सबसे  बड़ा  और  शानदार  लोकतंत्र  है  जो  हर  विभाग  में  दुनिया  की  महाशक्तियों  को  बड़ी  टक्कर  दे  रहा  है।   उस  तमाचे  से  हृदय  में  एक  ऐसी  पीड़ा  ह...