सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

काग के भाग बड़े सजनी

  पितृपक्ष में रसखान रोते हुए मिले। सजनी ने पूछा -‘क्यों रोते हो हे कवि!’ कवि ने कहा:‘ सजनी पितृ पक्ष लग गया है। एक बेसहारा चैनल ने पितृ पक्ष में कौवे की सराहना करते हुए एक पद की पंक्ति गलत सलत उठायी है कि कागा के भाग बड़े, कृश्न के हाथ से रोटी ले गया।’ सजनी ने हंसकर कहा-‘ यह तो तुम्हारी ही कविता का अंश है। जरा तोड़मरोड़कर प्रस्तुत किया है बस। तुम्हें खुश होना चाहिए । तुम तो रो रहे हो।’ कवि ने एक हिचकी लेकर कहा-‘ रोने की ही बात है ,हे सजनी! तोड़मोड़कर पेश करते तो उतनी बुरी बात नहीं है। कहते हैं यह कविता सूरदास ने लिखी है। एक कवि को अपनी कविता दूसरे के नाम से लगी देखकर रोना नहीं आएगा ? इन दिनों बाबरी-रामभूमि की संवेदनशीलता चल रही है। तो क्या जानबूझकर रसखान को खान मानकर वल्लभी सूरदास का नाम लगा दिया है। मनसे की तर्ज पर..?’ खिलखिलाकर हंस पड़ी सजनी-‘ भारतीय राजनीति की मार मध्यकाल तक चली गई कविराज ?’ फिर उसने अपने आंचल से कवि रसखान की आंखों से आंसू पोंछे और ढांढस बंधाने लगी।  दृष्य में अंतरंगता को बढ़ते देख मैं एक शरीफ आदमी की तरह आगे बढ़ गया। मेरे साथ रसखान का कौवा भी कांव कांव करता चला आ...

हाइफा युद्ध ! क्या है भारत इजराइल की दोस्ती का ऐतिहासिक राज़ ? Battle of Haifa, A blogpost by Abiiinabu

हाइफा युद्ध !  क्या है भारत इजराइल की दोस्ती का ऐतिहासिक राज़ ? Battle of Haifa

हाल ही में 23 सितंबर को Haifa के युद्ध गई 103 वीं सालगिरह मनाई गई हैं। इस युद्ध का Indiaऔर Israel के अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर बहुत ही गहरा प्रभाव है। जिसने इजरायल को एक यहूदी राष्ट्र बनाने में मदद की थी, और इसी युद्ध के कारण भारत और इजरायल के संबंध इतने गहरे और गहरे होते जा रहे हैं। इतिहास की किताबों में खोलकर देखें तो भारत और इजराइल कई वर्षों से एक दूसरे के परम मित्र बनें रहे हैं। इन संबंधों की इतनी सर गर्मी की वजह हाइफा का युद्ध भी है। जो आज से 103 साल पहले इजराइल के हाइफा शहर में लड़ा गया था। आखिर इस युद्ध की वजह क्या थी? और इसमें भारत का क्या संबंध है? इसी विषय पर आज की चर्चा शुरू करते हैं।    

    वर्ष 1918 मैं तात्कालिक Ottomon Empire का एक राज्य फ़िलिस्तीन हुआ करता था।इस फिलिस्तीनी राज्य में समुद्र के किनारे एक शहर था, जिसका नाम था हाइफ़ा । इसी Haifa शहर को ऑटोमन साम्राज्य से आजादी दिलाने के लिए ब्रिटिश इंडियन आर्मी ने प्रथम विश्वयुद्ध में शत्रुपक्ष के विरुद्ध युद्ध किया था। शत्रु पक्ष जिसमें ऑटोमन साम्राज्य की थल सेना जर्मन सेना और एस्ट्रो हंगेरियन आर्मी सम्मिलित रूप से हाइफा शहर की रक्षा कर रही थी, से युद्ध करते हुए ब्रिटिश भारतीय सेना ने 400 सालों की गुलामी से हाइफा शहर को मुक्त कराया।हाइफा की इस लड़ाई को इतिहास का अंतिम गौरवपूर्ण घुड़सवार युद्ध भी कहा जाता है। “The Last Great Cavalry Campaign in History”.

  • कैवेलरी क्या होती है?

कैवेलरी का अर्थ होता है - घुड़सवार सैनिक। एक घुड़सवार सैनिक का, सबसे मुख्य हथियार 12-15 फिट लम्बा भाला होता है। जिसे Lance भी कहते हैं। इसलिए कैवेलरी  को प्रायः Lancers भी कहा जाता है।

      प्रथम विश्व में अंग्रेजों की तरफ से भारतीय सेना के कई सैनिकों ने हिस्सा लिया। हाइफा के युद्ध में भाग लेने वाले सैनिकों में

15th इम्पीरियल सर्विस की कैवेलरी ब्रिगेड में, 5th कैवेलरी डिवीज़न और डेजर्ट माउंटेड कॉर्प्स के साथ हिस्सा लिया था। 

15th इम्पीरियल सर्विस की कैवेलरी ब्रिगेड तीन भारतीय प्रिंसली स्टेट-

जोधपुर, हैदराबाद और मैसूर की संयुक्त थल सेना से मिलकर बनी थी। 


  • हाइफा शहर इतना महत्वपूर्ण क्यों है? 

    HAIFA शहर इस्राइल का एक पोर्ट सिटी है, जो की समुद्र के किनारे बसा है। जिसकी वजह से यह सेनाओं के यातायात एवं रसद व खाद्य पदार्थों की आवाजाही बड़ी सरलता से कर सकता है। इसी वजह से इसकी अहमियत इतनी अधिक बढ़ जाती है। 


मानचित्र के माध्यम से आप इसकी सामरिक स्थिती को समझ सकते हैं-


  • हाइफा के युद्ध का परिणाम? 

    हाइफा का युद्ध 23 सितम्बर 1918 को लड़ा गया था। जिसमें भारतीय सेना की जीत हुई।

और हाइफा 400 साल से अधिक ऑटोमन साम्राज्य की गुलामी से आजाद हुआ।

इस युद्ध में भारतीय सेना ने मात्र 1 घंटे के अंदर अंदर ऑटोमन साम्राज्य की सेना को धूल चटा दी।

लेकिन जहाँ जंग होती है,वहाँ शहादत भी होती है। इस युद्ध के परिणामस्वरूप

आठ भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए एवं 34 गंभीर रूप से घायल हो गए। ब्रिटिश इम्पेरिअल सेना की

जोधपुर सेना (जिसे जोधपुर लैंसर्स भी कहा जाता है) के सेनापति मेजर दलपत सिंह शेखावत शहीद हो गए। जिन्हें उनकी शहादत के बाद इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरि यानी आईओएम से सम्मानित किया गया। 


    हाइफा के युद्ध की याद में ब्रिटिश सरकार ने Leonard Jennings की अगुवाई में तीन मूर्ति स्मारक, तीन मूर्ति चौक एवं तीन मूर्ति भवन बनवाए। ब्रिटिश सरकार में ब्रिटिश आर्मी का जर्नल यही रहता था। तीन मूर्ति भवन में ही रहता था।


आजादी के बाद,तीन मूर्ति भवन।भारत के प्रथम प्रधानमंत्री।पंडित जवाहर लाल नेहरू का आधिकारिक निवास स्थान बना।17 साल के उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल के बाद।उन जब उनकी मृत्यु हो गयी।तब उस घर को म्यूजियम में बदल दिया गया।तीन मूर्ति भवन।एवं तीन मूर्ति चौक। ब्रिटिश इंडियन आर्मी के लैंसर्स के संघटकों को प्रदर्शित करता है।जो जोधपुर, हैदराबाद और मैसूर से संबंधित थे। Israel ने हाइफा में हाइफन युद्ध की याद में भारतीय सेना को समर्पित एक स्मारक बनवाया है।


हाइफा के युद्ध में भाग लेने वाली।15 कैवेलरी बाद में भारतीय सेना की 61 वीं कैवेलरी से प्रतिस्थापित कर दी गयी। जो अपना राइजिंग दिवस।23 सितम्बर को हाइफा युद्ध की विजय के उपलक्ष्य में मनाता है।


  • हाइफा के युद्ध का प्रभाव? 

हाइफा के युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा Jews को उनके अलग राष्ट्र को दिया गया वादा पूरा होता दिखाई पड़ा।

भारत इजरायल के संबंधों पर सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिला।

1999 Indo-pak war, Kargil Warमें इजरायल ने भारत को अत्याधुनिक तकनीक उपलब्ध करवाकर अपना पक्ष भारत की ओर मोड़ दिया।

इजरायल में भारत को दूसरा घर मानते हैं।

इजरायली सेना में अनिवार्य सैन्य सेवा के कुछ सालों बाद इजरायली छुट्टी पर भारत ही आते हैं।

 



आपको हमारा आज का पोस्ट कैसा लगा? अगर पसंद आया तो शेयर कीजिये।


धन्यवाद !!!




टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

If you have any doubt please let me know.

Best From the Author

The Story of Yashaswi Jaiswal

जिस 21 वर्षीय यशस्वी जयसवाल ने ताबड़तोड़ 98* रन बनाकर कोलकाता को IPL से बाहर कर दिया, उनका बचपन आंसुओं और संघर्षों से भरा था। यशस्‍वी जयसवाल मूलरूप से उत्‍तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। वह IPL 2023 के 12 मुकाबलों में 575 रन बना चुके हैं और ऑरेंज कैप कब्जाने से सिर्फ 2 रन दूर हैं। यशस्वी का परिवार काफी गरीब था। पिता छोटी सी दुकान चलाते थे। ऐसे में अपने सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ 10 साल की उम्र में यशस्वी मुंबई चले आए। मुंबई में यशस्वी के पास रहने की जगह नहीं थी। यहां उनके चाचा का घर तो था, लेकिन इतना बड़ा नहीं कि यशस्वी यहां रह पाते। परेशानी में घिरे यशस्वी को एक डेयरी पर काम के साथ रहने की जगह भी मिल गई। नन्हे यशस्वी के सपनों को मानो पंख लग गए। पर कुछ महीनों बाद ही उनका सामान उठाकर फेंक दिया गया। यशस्वी ने इस बारे में खुद बताया कि मैं कल्बादेवी डेयरी में काम करता था। पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और थोड़ी देर के लिए सो जाता था। एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता। नौकरी तो गई ही, रहने का ठिकान...

काग के भाग बड़े सजनी

  पितृपक्ष में रसखान रोते हुए मिले। सजनी ने पूछा -‘क्यों रोते हो हे कवि!’ कवि ने कहा:‘ सजनी पितृ पक्ष लग गया है। एक बेसहारा चैनल ने पितृ पक्ष में कौवे की सराहना करते हुए एक पद की पंक्ति गलत सलत उठायी है कि कागा के भाग बड़े, कृश्न के हाथ से रोटी ले गया।’ सजनी ने हंसकर कहा-‘ यह तो तुम्हारी ही कविता का अंश है। जरा तोड़मरोड़कर प्रस्तुत किया है बस। तुम्हें खुश होना चाहिए । तुम तो रो रहे हो।’ कवि ने एक हिचकी लेकर कहा-‘ रोने की ही बात है ,हे सजनी! तोड़मोड़कर पेश करते तो उतनी बुरी बात नहीं है। कहते हैं यह कविता सूरदास ने लिखी है। एक कवि को अपनी कविता दूसरे के नाम से लगी देखकर रोना नहीं आएगा ? इन दिनों बाबरी-रामभूमि की संवेदनशीलता चल रही है। तो क्या जानबूझकर रसखान को खान मानकर वल्लभी सूरदास का नाम लगा दिया है। मनसे की तर्ज पर..?’ खिलखिलाकर हंस पड़ी सजनी-‘ भारतीय राजनीति की मार मध्यकाल तक चली गई कविराज ?’ फिर उसने अपने आंचल से कवि रसखान की आंखों से आंसू पोंछे और ढांढस बंधाने लगी।  दृष्य में अंतरंगता को बढ़ते देख मैं एक शरीफ आदमी की तरह आगे बढ़ गया। मेरे साथ रसखान का कौवा भी कांव कांव करता चला आ...

Why Nathuram Godse Assassinated Mahatma Gandhi| गोडसे ने गांधी को क्यों मारा

मोहनदास करमचंद गांधी जिन्हे हम सभी महात्मा गांधी के नाम से भी जानते हैं। यह एक नाम भारतीय स्वंत्रता संग्राम एवं भारतीय राजनीति में एक पूरे युग को प्रदर्शित करता है। गांधीजी की अहिंसा, उनका अपनी बात मनवाने का निराला ढंग, एवं अंग्रेजों के साथ उनकी बातचीत करने का सकारात्मक तरीका उन्हें उनके साथ के अन्य राजनीतिक व्यक्तित्वो से कहीं आगे खड़ा करता है। गांधी जी का भारतीय राजनीति में इतना गहरा प्रभाव था की आम भारतीय जनमानस जो अंग्रेजों के अत्याचारों से त्रस्त हो चुका था, जहां साधारण मानसिकता के लोग हिंसा के बदले हिंसा को प्राथमिकता देते हैं। वही गांधी जी के कहने मात्र से अहिंसा के पथ पर चल रहे थे। गांधीजी के आंदोलनों ने एक राष्ट्र के रूप में भारत को सम्मिलित किया एवं तात्कालिक समाज को यह बता दिया कि क्रांति का उद्देश्य केवल रक्तपात करना नहीं होता। क्रांति चुपचाप विरोध करके भी की जा सकती है। ऐसे महान विचारों वाले, ऐसे महान आदर्शों वाले महात्मा गांधी को 30 जनवरी 1948 में हत्या करके मार डाला गया। लेकिन Gandhiji की हत्या करने के क्या कारण रहे होंगे? क्या गांधी जी की हत्या केवल इस उद्देश्य से...

Tarik Fateh

तारिक़ फतेह चल बसे उनके प्रोग्राम और डिबेट देखे काफी सुलझे हुए लेखक, मृदुभाषी और पढ़े लिखे आदमी थे,पाकिस्तान से निकले हुए मुस्लिम थे लेकिन पाकिस्तान और मुस्लिम कट्टरपंथियों को जम कर लताड़ते थे।  भारत और भारत की संस्कृति से प्रेम व्यक्त करते थे। खुद को इंडियन कहते थे । वो विदेशी आक्रमणकारियों को अपना पूर्वज ना मान कर खुद को हिंदुओं से निकला हुआ ही बताते थे। शायद इसी कारण उनकी मौत पर हंसने वालों में अधिकतर मुस्लिम कट्टरपंती थे ही हैं । कमेंट इस तरह के हैं कि - वो मुस्लिम के भेष में काफ़िर था अच्छा हुआ जो .... लेकिन मैंने किसी डिबेट में उनको इस्लाम के विरुद्ध कुछ गलत बोलते हुए नहीं सुना । काफी प्रोग्रेसिव थे। भले ही भारत की नागरिकता पाने के लिए सही .. या कोई अन्य वजह भी रही हो ..  पर वो भारत के लिए हमेशा स्टैंड लेते थे। उसी स्टैंड के लिए हम और हमारा देश हमेशा आपके आभारी रहेंगे।  ओम शांति  🙏 हम सब ईश्वर के हैं और अंत में हम उसी की ओर लौटेंगे

Kunal Kamra Controversy

 कुणाल कामरा विवाद: इस हमाम में सब नंगे हैं! कुणाल कामरा के मामले में दो तरह के रिएक्शन देखने को मिल रहे हैं। एक तरफ ऐसे लोग हैं जो स्टूडियो में हुई तोड़फोड़ और उन्हें मिल रही धमकियों को ठीक मान रहे हैं और दूसरी तरफ ऐसे लोग हैं जो बेखौफ और बेचारा बता रहे हैं। मगर मुझे ऐसा लगता है कि सच्चाई इन दोनों के बीच में कहीं है।  इससे पहले कि मैं कुणाल कामरा के कंटेंट की बात करूं जिस पर मेरे अपने ऐतराज़ हैं, इस बात में तो कोई अगर मगर नहीं है कि आप किसी भी आदमी के साथ सिर्फ उसके विचारों के लिए मरने मारने पर उतारू कैसे हो सकते हैं? आप कह रहे हैं कि कुणाल कामरा ने एक जोक मारकर एक नेता का अपमान किया, तो मैं पूछता हूं कि महाराष्ट्र की पिछली सरकार में जो बीसियों दल-बदल हुए क्या वो जनता का अपमान नहीं था? पहले तो जनता ने जिस गठबंधन को बहुमत दिया, उसने सरकार नहीं बनाई, ये जनता का मज़ाक था। फिर सरकार बनी तो कुछ लोगों ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते सरकार गिरा दी। पहले कौन किसके साथ था, फिर किसके साथ चला गया और अब किसके साथ है, ये जानने के लिए लोगों को उस वक्त डायरी मेंटेन करनी पड़ती थी।...