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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

 चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...

बच्चे और कार्टून ।।A blogpost by Abiiinabu ।।

  बच्चे और कार्टून Modern Day cartoons

    आज ऑफिस से घर आ रहा था, तो सीढ़ियां चढ़ते हुए पडोसी के टीवी की आवाज बहार से सुनी, किसी भारतीय अभिनेता की आवाज़ में कोई कार्टूनि आवाज लग रही थी। मैं उनके बच्चे को जनता हूँ, शर्त लगा के कह सकता हूँ कि कोई कार्टून ही चल रहा होगा।  ऐसे ही आते आते मन में सवाल आये कि हमारा बचपन शायद अच्छा था।  मैं कोई नई बात नहीं कर रहा हूँ।  अगर आप यह ब्लॉग पढ़ रहे हैं और आपकी उम्र 20 वर्ष या उससे ज़्यादा है, तब तो आप निश्चित ही मेरी बात सही मान रहे होंगे।  और यदि आप प्रौढ़ावस्था में पहुँच चुके हैं तब तो आप निश्चित रूप से कभी न कभी हम सबसे ही परेशान रहे होंगे।  मैं आज एक विश्लेषण करना चाहता हूँ, मैं ये जानना चाहता हूँ कि हमारे बचपन में जो  Cartoon आते थे वो हमको तब ज़्यादा सिखाते थे या आजकल जो कार्टून बच्चों को दिखाए जाते हैं उनसे उनका विकास हो रहा है?

    यदि मैं ठीक हूँ तो जो लोग 90s में पैदा हुए हैं उनके लिए 2007 तक, जब तक भारत में एंटरटेनमेंट के नाम पर सिर्फ और सिर्फ टीवी ही था। उस समय के कार्टून बच्चों को अधिक स्मार्ट, सेंसिटिव औइर लाइफ लेसंस सिखाते थे । टॉम एंड जेरी किसे याद नहीं है, टॉम और जेरी के बीच कि खट्टी मीठी लड़ाई हम सबको गुदगुदाती ही हैं।  लेकिन आप में से कितने लोगों ने ये नोटिस किया कि उस आपस कि लड़ाई में यदि कोई बहार का आ जाता था  तो चाहे टॉम कि जगह लेने या फिर जेरी लेने वो दोनों उसको अपनी लड़ाई भुला कर मार भागते थे।  कई बार टॉम को बिल्ली होते हुए भी जेरी को जो चूहा था, उसको न पकड़ पाने कि वजह से बहार निकलना पड़ा लेकिन जेरी ने उसकी जगह आये दुसरे बिल्ले को उस घर में टिकने नहीं दिया।  वो तब तक शरारत करता था, कुछ ऐसी जुगत लगाता था कि मालिक को टॉम को वापिस लाना ही पड़ता था।  अगर आप लोग अब भी नहीं समझे तो ये चूहे बिल्ली कि लड़ाई हमको ये सिखाती है कि घर के अंदर भले ही कितना भी लड़ लो, लेकिन आपकी आपसी लड़ाई में किसी बहार वाले को घर के भीतर आने मत दो और यदि वो घुसने कि कोशिश करे तो, आपसी लड़ाई भुला कर उसका मुकाबला करो।  लेकिन ये कार्टून बंद कर दिया गया। अब क्यों किया गया ये एक अलग बहस का विषय है लेकिन ये लिस्ट यहीं ख़तम नहीं होती।

    डोरेमोन और Shinchan जैसे Cartoon हमको दोस्ती का सही मतलब सिखाते थे। डोरेमोन के नए नए आविष्कार और शिनचैन की शरारतें हमको अपना बचपन खुल कर मुस्कुराने की  सीख देती थी।  पोकेमोन और Digimon जैसे कार्टून हमको सिखाते थे कि ज़िन्दगी में बस जीतना ही ज़रूरी नहीं होता, हारना भी उतना ही ज़रूरी होता है।  साथ ही साथ इंसानों का अपने आसपास के जानवरों से लगाव इसकी एक अलग सीख थी।  ऐश केचुम और पिकाचु जैसी दोस्ती न कभी देखि गई न और शायद देखने को मिलेगी।  ऐश एक विश्व विजेता मास्टर बनना चाहता था लेकिन उस कार्टून में सबसे अच्छी बात ये लगी मुझे, कि उन्होंने ऐश को जीतने से ज़्यादा बार हारते हुए दिखाया।  सिर्फ ये दिखाने के लिए कि जीवन में हार जीत से ज़्यादा ज़रूरी है। क्यूंकि उसी से हमे जीत का असली मतलब पता चलता है।

    ऐसा नहीं है कि पहले के Cartoon केवल जीवन जीने का तरीका सिखाते थे, वो ये सिखाते थे कि लाइफ की परेशानियों को सच में कैसे झेलना है और अगर ना झेल पा रहे तो सीखना कैसे है। पोकेमोन सिर्फ जीवन जीने का अंदाज नहीं सीखत्ता वो साथ साथ में सिखाता है किजानवरों का विकास कैसे होता है। वो सिखाता है कि विकसित होने के लिए आपको परेशानियां उठानी पड़ती हैं, आपको म्हणत करनी पड़ती है।  सिर्फ पोकेमोन ही क्यों आप नरुटो देख लो, या ड्रैगन बॉल ज़ी देख लो आप ये समझ जाओगे कि जिंदगी ने मिनट करने से हम, अपने स्टार को कितना आगे बढ़ा सकते हैं।  ऐसे ढेरों उदाहरण भरे पड़े हैं, अगर सबके बारे में बताने लघु तो शायद ब्लॉग और समय दोनों कि सीमा पार हो जाएगी। लेकिन आज कल के कार्टून बच्चों को फूहड़ता, रंगभेद ( मोठे पतले का अंतर, काले गोर का भेद, अमीर गरीब की समस्या, बॉय शेमिंग) जैसी चीज़ें दिखा रहा है। और बच्चे जो देखते हैं वही करने की कोशिश करते हैं।  वो आपका और मेरा खा नहीं मानेंगे वो वही करेंगे जो वो अपने आस पास देख रहे हैं।  छोटी बच्ची अपनी मान को श्रृंगार करते देखती है, इसीलिए मौका पाकर वो भी शरणकार करना चाहती है।  बच्चे अपने पिता को शेव करते देखते हैं, इसलिए वो खाली होते ही शेविंग क्रीम अपने चेहरे पर लगा लेते हैं।  सोच कर देखिये अगर बच्चे अपने आस पास ये सब देखेंगे तो वो कैसा बनने की कोशिश करेंगे ? मैं ज़्यादा कुछ नहीं कहूंगा लेकिन जाते जाते आपसे ये ज़रूर पूछूं की आपने सबसे पहले DNA नामक शब्द कब सुना था ? मेरे साथ वाले ने शायद नौवीं कक्षा में और उससे पहले वालों ने शायद उसके बाद।  अब अगर मैं आपको बताऊ की एक कार्टून बच्चों को डीएनए के बारे में समझने के साथ साथ उसकी इंजीनियरिंग कैसे करते हैं ये समझा रहा हो तो क्या आप चौकेंगे नहीं? लेकिन मुझे बहुइट अच्छी तरह याद है ( दरअसल यही मेरी समस्या है कि मुझे चीज़ें याद रह जाती हैं) जब मैं छठवीं में था तो एक कार्टून उस समय आना शुरू हुआ था नाम था बेन टेन। कहानी ऐसी घडी के बारे में थी जिसको डीएनए लॉकिंग के ज़रिये बनाया गया था और ब्रह्माण्ड में मौजूद किसी भी नए जीव का DNA अपने अंदर कॉपी कर लेती थी और धारक को उसका रूप धरने की शक्ति प्रदान करती थी। है न मजेदार और आश्चर्यजनक? अब सोचिये मुझे ये बार कक्षा छह में पता चल गई थी अपने साथ वालों से पूरे तीन साल पहले।  और जब ये पाठ स्कूल में पढ़ाया जा रहा था तो मुझे सब समझ में आ रहा था जबकि मेरे बगल वाला मेरा मुँह देख रहा था।  इसका फायदा क्या हुआ वो मैं आपको पफिर कभी बताऊंगा जब आप मुझसे पूछेंगे।

    लेकिंन इतनी छोटी उम्र ये ये सब, डीएनए आज भी सबसे काम्प्लेक्स टॉपिक्स में से एक माना जाता है और उसको बच्चो को सीखने के ये नायाब तरीका, मतलब कमाल ही है। आपके बच्चे क्या देख रहे हैं ये देखिये, उसमे क्या दिखाया जा रहा है ये देखिये कार्टून सिर्फ बच्चों के लिए नहीं होता, ऐसा मानिये क्यूंकि यदि नहीं मानेंगे तो शायद आपका आज के किसी कार्टून किरदार की तरह या तो लड्डू, या समोसा या फिर किसी और खाने वाली चीज़ को ही जीवन का सार समझेगा और दुनिया के समझदार होने की भोंदू और कुंद ही बनेगा। 

-Abiiinabu

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The Story of Yashaswi Jaiswal

जिस 21 वर्षीय यशस्वी जयसवाल ने ताबड़तोड़ 98* रन बनाकर कोलकाता को IPL से बाहर कर दिया, उनका बचपन आंसुओं और संघर्षों से भरा था। यशस्‍वी जयसवाल मूलरूप से उत्‍तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। वह IPL 2023 के 12 मुकाबलों में 575 रन बना चुके हैं और ऑरेंज कैप कब्जाने से सिर्फ 2 रन दूर हैं। यशस्वी का परिवार काफी गरीब था। पिता छोटी सी दुकान चलाते थे। ऐसे में अपने सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ 10 साल की उम्र में यशस्वी मुंबई चले आए। मुंबई में यशस्वी के पास रहने की जगह नहीं थी। यहां उनके चाचा का घर तो था, लेकिन इतना बड़ा नहीं कि यशस्वी यहां रह पाते। परेशानी में घिरे यशस्वी को एक डेयरी पर काम के साथ रहने की जगह भी मिल गई। नन्हे यशस्वी के सपनों को मानो पंख लग गए। पर कुछ महीनों बाद ही उनका सामान उठाकर फेंक दिया गया। यशस्वी ने इस बारे में खुद बताया कि मैं कल्बादेवी डेयरी में काम करता था। पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और थोड़ी देर के लिए सो जाता था। एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता। नौकरी तो गई ही, रहने का ठिकान...

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