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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

 चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...

Problems of Preamble of Indian Constitution| भारतीय संविधान के प्रस्तावना से क्यों ना खुश रहते हैं कुछ भारतीय|

Problems of Preamble of Indian Constitutionभारतीय संविधान की प्रस्तावना से क्यों ना खुश हैं कुछ भारतीय

Preamble of Indian Constitution
Preamble of Indian Constitution

पहले तो ये समझा जाए कि संविधान की प्रस्तावना है क्या?

भारतीय संविधान की प्रस्तावना को निम्न प्रकार समझा जा सकता है।
हम भारत के लोग इसका अर्थ हुआ कि संप्रभुता जनता में निहित है। भारत को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए सामाजिक, आर्थिक, एवं राजनीतिक न्याय, तथा वैचारिक, अभिव्यक्ति, विश्वास एवं धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करने के साथ-सथ प्रतिष्ठा एवं अवसरों की समानता प्रदान करेंगे। भारतीय संविधान व्यक्ति की गरिमा एवं राष्ट्र की एकता एवं अखंडता के बंधुता का भी पाठ पढ़ाती है। भारतीय संविधान के प्रस्तावना के नीचे 26 नवंबर 1949 ईस्वी नीति मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष सप्तमी 2006 विक्रम संवत की तिथि पड़ी हुई है। जिसके बाद संविधान की प्रस्तावना इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित एवं आत्मर्पित करती है।

क्या प्रस्तावना में संशोधन हो सकता है?

केशवानंद भारती विवाद 1973 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय लिया के संसद संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है। अतः सब प्रस्तावना में भी संशोधन किया जा सकता है लेकिन इससे संविधान का बुनियादी ढांचा विकृत नहीं होना चाहिए। हालांकि संविधान का बुनियादी ढांचा आज तक पूर्ण रूप से बतलाया नहीं गया है।
42 वें संविधान संशोधन 1976 के द्वारा संविधान की प्रस्तावना में 3 नए शब्द समाजवादी पंथनिरपेक्ष एवं अखंडता को जोड़ा गया था।

क्या प्रस्तावना संविधान का एक भाग है?

बेरूवाड़ी बाद 1960 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है। लेकिन केसवानंद भारती विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व निर्णय को उलट दिया तथा यह माना की प्रस्तावना संविधान का भाग है लेकिन यह अनुच्छेदों की भांति प्रभावी नहीं है। यह ना तो संसद को अतिरिक्त शक्ति प्रदान करता है तथा ना ही संसद की शक्तियों पर किसी प्रकार का अंकुश लगाता है। न्यायालय प्रस्तावना को लागू करवाने के लिए प्रवर्तनीय नहीं है।

संविधान के प्रस्तावना की आलोचना

  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर भी आरोप लगते रहे हैं।
  • कुछ लोगों का कहना है कि यह नकल की गई है, इसकी पहली पंक्ति अमेरिकी संविधान से ली गई है तथा शेष प्रारूप ऑस्ट्रेलिया से लिया गया है। 
  • इसमें समाजवाद शब्द का अर्थ स्पष्ट नहीं है क्योंकि 1991 से हम लगातार पूंजीवाद की ओर बढ़ रहे हैं। पंथनिरपेक्षता शब्द का अर्थ भी स्पष्ट नहीं है क्योंकि पंथनिरपेक्षता की पाश्चात्य मान्यता के अनुसार भारत पंथ निरपेक्ष राष्ट्र नहीं है बल्कि हम सर्वधर्म समभाव को मानते हैं।
  • प्रस्तावना अनुच्छेदों के भारतीय प्रभावी नहीं है क्योंकि यह न्यायालय के द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है।










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