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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

 चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...

जानिए भारतीय ज्योतिष की बारीकियों को, कैसे बताया जाता है आपका भविष्य How does Indian Astrology Works| Abiiinabu

दृग तुल्य अर्थात जो देखो केवल उसी पर विश्वास करो, ये हमारे वैदिक ज्योतिष का मूल मंत्र है!
Indian Astrology
Indian Astrology 
21 दिसंबर 2020 के दिन शायद आपने अख़बारों में पढ़ा होगा, टीवी में देखा होगा की 400 वर्ष बाद एक दुर्लभ खगोलीय घटना होने जा रही है! गुरु और शनि एक दूसरे के सबसे निकट आने जा रहे है! इन गुरु-शनि की युति के चित्र भी टीवी अखबारों में आपने देखे होंगे
या आपमे से कुछ ने तो टेलिस्कोप के द्वारा सजीव देखा होगा।

अब क्योकि ज्यादातर लोग ज्योतिष के बारे में अनभिज्ञ है, तो आपकी सुविधार्थ 21 दिसंबर के दिन का ज्योतिषीय गणित आकाशीय नक्शा (कुण्डली) देखिए 
अब ध्यान से देखिए ये नक्शा भी यही बता रहा है ना की शनि भी 6 डिग्री पर है और गुरु भी 6 डिग्री पर है और दोनों एक ही राशि मकर में स्थित है। मतलब दोनों ग्रह एक दूसरे से एकदम निकट है, ज्योतिष का गणित भी यही बता रहा है। ये 21 दिसंबर 2020 का ही समय है ना जो हमने आकाश में देखा
और ज्योतिष से गणित करके कुण्डली में भी देखा और दोनों में वर्तमान समय की ग्रह स्थिति दिखाई दी। या ये सब सैंकड़ो साल पहले का समय था जो आज दिख रहा है? साल भर में जो अनेक सूर्य ग्रहण चंद्र ग्रहण हम अपनी आंखों से देखते है और अंधकार अनुभव करते है प्रकाश में कमी अनुभव करते है,
क्या वे सैंकड़ो साल पहले हो चुके है और आज दिख रहा है या वर्तमान में ही ये ग्रहण हो रहे है?
पूरा प्रश्न आधुनिक विज्ञान की इस फिलोसॉफी पर आधारित है: "वो तारा जो खरबो प्रकाश वर्ष दूर है जो आज हमें दिख रहा है वो तो मर चुका है जब हम उसे देख रहे है।
वास्तव में तो प्रकाश की गति के अनुसार अब जाकर पृथ्वी पर उसका प्रकाश पहुँचा और हम उस तारे को देख पाए!"

ठीक बात है हमने मान लिया!

किन्तु आधुनिक विज्ञान ये भी तो कह रहा है की खरबो तारो में हमारी मिल्की वे गैलेक्सी में 9 मुख्य तारे है: सूर्य, बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, गुरु, शनि, यूरेनस, नेप्चून और प्लूटो।

इन सबसे और आगे बढ़कर हमारा वैदिक ज्योतिष ने तो इतना अधिक लॉजिकल काम किया है की केवल और केवल वही तारे अपने ज्योतिष शास्त्र में लिए है जिनका 100% प्रत्यक्ष प्रभाव पृथ्वी के मनुष्य/पशु/पक्षी और प्रत्येक जीवित मृत वस्तु पर पड़े।
पृथ्वी जिसमे हम स्थित है उसको आधार माना और चंद्रमा जो पृथ्वी के सबसे निकट है उसको भी इस सूची में जोड़ा। सूर्य-चंद्र के गतिमान होने से जो छाया (परछाई) आकाश में उत्पन्न होती है, उसको भी मान्यता देते हुए राहु-केतु नामक छाया ग्रहों को भी जोड़ा। तो ये 9 ग्रह हमारे वैदिक ज्योतिष के अनुसार हुए: सूर्य, चंद्र, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि एवं छाया ग्रह राहु-केतु।

अब हमारा वैदिक ज्योतिष तो इतना अधिक लॉजिकल है की युरेनस, नेप्चून और प्लूटो को तो इस सूची में गिन ही नही रहा!

वो क्यों?

वो इसीलिए क्योकि हमारी पृथ्वी से ये तीनो इतने अधिक दूर है की प्रत्यक्ष रूप से इनका रत्ती भर भी प्रभाव पृथ्वी तक पहुँचने में असमर्थ है, और जिस तारे का शून्य प्रभाव है उसे वैदिक ज्योतिष मान्यता नही देता।

ये हुआ प्रश्न के प्रथम भाग का उत्तर!

अब नक्षत्र गणना के आधार पर कैसे भविष्य बताया जाता है? 
तो देखिए नक्षत्र गणना के आधार पर नही, बल्कि इन नक्षत्रों में निरंतर भ्रमण करते रहने वाले इन नौ ग्रहों की इन 27 नक्षत्रों में स्थिति के आधार पर भविष्य बताया जाता है। सरल सी बात है, आप दो मिनट में समझ जाएंगे। ये जो गोल गोल सोलर सिस्टम है, जिसमे सभी ग्रह परिक्रमा करते है ना.इसे हम भचक्र कहते है। इस पूरे भचक्र को हम 360 भागो में विभक्त करते है ज्योतिषीय गणित में। आपने भी 360° अर्थात एक पूरा गोल चक्कर बहुत बनाया होगा ज्योमेट्री में, ये वही है बस। अब हम इससे भी सरल करके समझते है..इस 360 के भचक्र को ऐसा समझे की हमारी पूरी पृथ्वी है ये भचक्र। जैसे पृथ्वी में कैसे छोटे बड़े महाद्वीप बने है अमेरिका, अफ्रीका, एशिया आदि वैसे ही इस भचक्र को हमने 27 नक्षत्रों में विभक्त कर दिया।

अब थोड़ा सूक्ष्म हो गया ना। इसे और अधिक सूक्ष्म करने के लिए इन 27 नक्षत्रों को भी हमने 12 राशियों में बराबर बराबर विभक्त कर दिया। जैसे एशिया में भारत है, अफ्रीका में जिम्बावे है वैसे ही ये राशियां है।

इस चित्र के माध्यम से आप समझ जायेंगे
अब ग्रह इन बारहों राशियों में, या यूं कहें इन 27 नक्षत्रों में या यूं कहें की 360° के इस भचक्र में परिक्रमा करते रहते है निरंतर।

और समय समय पर जिस राशि मे नक्षत्र में घूमते घूमते आ जाते है, उसके अनुसार ही गणित करके भविष्य के बारे में कथन किया जाता है।ऐसे ही आकाश में फैले खरबों तारो में से किसी भी तारे को देखकर भविष्य कथन नही किया जाता

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