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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

 चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...

Argentina won Fifa World Cup 2022!!

यह पोस्ट लिखने के लिए मैंने समय लिया है जानबूझकर। क्रिकेट प्रेमी हूं तो शायद आपको उसी से संबंधित कुछ दिख जाए। अभी कुछ समय से अर्जेंटीना की जीत पर खुश होने वाले बरसती मेंढकों से बचने के लिए मैंने समय लिया है। सोशल मीडिया की घातक और विषैली ट्रॉलिंग से बचने के लिए मैंने समय लिया है। रातों रात मेसी और रोनाल्डो के छप्पर फाड़ फैन्स से बचने के लिए मैंने समय लिया है। ये स्वयं शायद मेसी और रोनाल्डो को भी नहीं पता होगा कि उनके इतने फैन्स भारत जैसे क्रिकेट को धर्म मानने वाले देश में भी हो सकते हैं। मैं फुटबाल की बुराई नहीं कर रहा, मैं क्रिकेट की बढ़ाई नहीं कर रहा, लेकिन पिछले कुछ दिनों से चली आ रही बनावटी बाढ़ में बहने से बचने के लिए मैंने समय लिया है। ये फैन्स जो कुकुरमुत्ते की तरह रातों रात सोशल मीडिया पर उग आए हैं, जिन्हे शायद लियोनेल मेसी और क्रिस्टियानो रोनाल्डो के बीच के नाम जिन्हे मैं आम तौर पर पूरे नाम की कैटेगरी में डालता हूं, भी नहीं पता होंगे, जो स्वयं को पियरलुइगी कॉलिना समझ बैठे हैं, इनके बचकाने और व्यर्थ के ऊटपटांग सवालों और उनकी विवेचना से बचने के लिए मैंने समय लिया है। अब आखिर प्रश्न ये उठता है कि मैंने समय लिया क्यों हैं, क्या मैने अकेले ने समय लिया? क्या अर्जेंटीना ने स्वयं से समय नहीं लिया? क्या मेसी ने भी समय नहीं लिया? क्या रोनाल्डो के अधिक समय लेने के कारण उसकी महानता कम हो जायेगी? क्या पुर्तगाल, ब्राजील, क्रोएशिया, फ्रांस आदि फीफा विश्वकप नहीं जीत पाया, सिर्फ इस वजह से ये मान लेना चाहिए कि रोनाल्डो, नेमार, लूका मोदरिच या कायलिन मबापे के खेल की क्षमता कमतर आंकी जानी चाहिए? ऐसा नहीं है कि अर्जेंटीना के विश्वकप जीत जाने से मुझे जलन हो रही है, मैं तो खुद 2014 की हार के बाद से यही चाह रहा था कि अब जीते, तब जीते। मैं बस ये कहना चाहता हूं कि क्या केवल मेसी की वजह से अर्जेंटीना जीता? मैं प्रो धोनी फैन हूं, मेरे लिए उस खिलाड़ी की एक एक बात दिल में घर कर जाने वाली रहती है। लेकिन मुझे सच में बुरा लगता है जब कोई ये कहता है कि केवल एक व्यक्ति विशेष की वजह से भारत 2011 का क्रिकेट विश्वकप जीता था। क्या गौतम गंभीर की उस 97 रन की पारी का कोई योगदान नहीं था? क्या युवराज सिंह के जीवन से बढ़कर वो ट्रॉफी है? क्या भज्जी के आंसुओं की कीमत किसी एक व्यक्ति के टोपी के अंदर से दिखाई न देने वाले आंसुओं के कमतर आंकी जा सकती है? नहीं, कदापि नहीं। भारत वो विश्वकप जीता क्योंकि भारत एक राष्ट्र एक टीम के रूप में खेल रहा था। ठीक उसी प्रकार यदि कोई केवल कप्तान के लिए अपने घर की दौलत उड़ा देने वाला प्रेम दिखाने को तत्पर रहता है तो मुझे लगता है या तो उसको खेल भावना की समझ पूर्ण रूप से नहीं है, अन्यथा वो अभी तक ये नहीं समझ पाया कि टीम बना कर खेले जाने वाले खेलों में और व्यक्तिगत खेले जाने वाले खेलों में क्या अंतर है। मुझे सच में बुरा एंजल डी मारिया के लिए लग रहा है। जब कोई भी आपकी टीम को जीतने के लायक नहीं समझ रहा हो,तब केवल अपने दम पर उस व्यक्ति ने पूरे एक राष्ट्र की उम्मीदें झटक दी, मुझे बुरा काइलिन मबापे के लिए भी लग रहा है, जिसने एक ऐसा रिकॉर्ड बना डाला जिसे शायद तोड़ पाना असम्भव की श्रेणी में आ जायेगा। 97 सेकंड्स के अंदर उस 24 साल के लड़के ने अरबों फैंस की उम्मीदों को तोड़ कर रख डाला था। उसके प्रयासों को जो भी कमतर आंकने की कोशिश भर भी करेगा, वह अपने अविकसित सोच और खेल भावना को न समझ पाने की त्रुटि को ही निरंतर दिखाएगा। 18 दिसंबर 2022 की रात एक ऐसी दौड़ भी खत्म हो गई जो शायद कभी थी ही नहीं। मेरी नजर में एंजल डी मारिया उस रात के गौतम गंभीर हैं, जिनके अथक परिश्रम और जुझारू खेल के दम पर उनकी टीम जीत पाई। मेरे लिए काइलिन मबापे उस रात के कुमार संगकारा हैं जिन्होंने पुरजोर कोशिश तो की लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। मेसी और सचिन तेंदुलकर में एक समानता ये भी है कि इनको महान सिद्ध होने लिए विश्वकप की आवश्यकता थी ही नहीं, लेकिन इनको ये रत्न भी अपने करियर की अंतिम सीढ़ी पर ही मिल पाया। मैं खुश हूं कि मेसी को विश्वकप मिल गया, मैं पिछली बार भी खुश था जब लूका मोदरिच को उस साल के फीफा विश्वकप का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुना गया था। वो अलग बात है कि मेसी और रोनाल्डो ने वहां जा कर उनको बधाई देना तक उचित ना समझा, लेकिन मैं खुश था। आपकी महानता का सम्मान तब अधिक होता है जब आप दूसरों की खुशी में भी खुशी खोज लेते हैं। सेरेना विलियम्स को इस बात के लिए मैं सबसे अधिक धन्यवाद देता हूं, वो स्वयं जीते तो खुश होती ही थीं, लेकिन यदि वो फाइनल में हार जाती थी, जोकि बहुत ही कम देखने को मिलता था, तब भी वो अपनी सह खिलाड़ी के लिए उससे अधिक तालियां बजाती थीं। उन्होंने इस मिथक को भी तोड़ा कि महिलाएं अधिक ईर्ष्यालु भी होती हैं। खेल खेलने से ज्यादा खेल भावना को बनाए रखने वाले अधिक महान कहलाते हैं। धोनी को ये बात सबसे अलग इसीलिए भी करती है। संगकारा की धोनी के उस आखिरी छक्के के बाद की मुस्कान ये सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि वो महानता के उस शिखर पर हैं जहां उन्हें महान कहलाने के लिए किसी ट्रॉफी की आवश्यकता नही है। मेरे लिए जितने महान पेले हैं, उतने ही महान गिरिंचा भी हैं, उतने ही महान जिनेदिन ज़िदान भी हैं, उतने ही महान बाइचुंग भूटिया और सुनील छेत्री भी हैं। छेत्री पर किसी और दिन चर्चा, आज का दिन अर्जेंटीना के नाम,
हाथ में गोल्डन बूट, बगल में फीफा वर्ल्ड कप की ट्रॉफी और झुकी हुई नजर...! वर्ल्ड कप फाइनल में हैट्रिक गोल दागने वाले कीलियन एमबाप्पे ने फीफा वर्ल्ड कप 2022 में गोल्डन बूट जीतने के बाद यह तस्वीर पोस्ट की है। इसमें एक तरफ वर्ल्ड कप की ट्रॉफी रखी है और दूसरी तरफ एमबाप्पे सिर झुका कर निराश खड़े हैं। एमबाप्पे ने लिखा है, हम वापस आएंगे। किसी भी खेल प्रेमी को यह तस्वीर भावुक कर देने के लिए काफी है। वर्ल्ड कप में सर्वाधिक 8 गोल दागने के बावजूद ट्रॉफी न उठा पाना...! दर्द की पराकाष्ठा इससे ज्यादा नहीं हो सकती। 

फाइनल के 79 मिनट तक जो फ्रांस अर्जेंटीना के हाथों 2-0 से निश्चित तौर पर हार रहा था, उस फ्रांस को 100 सेकंड के अंदर 2 गोल दागकर मुकाबले में बराबरी दिला देना किसी सुपरहिट फिल्म की कहानी सरीखा लगता है। अक्सर कहा जाता है कि हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं। पर फीफा वर्ल्ड कप, 2022 के फाइनल के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि हार कर दिल जीतने वाले को एमबाप्पे कहते हैं। 

जब निर्धारित 90 मिनट में फैसला नहीं हो सका तो एक्स्ट्रा टाइम में 15-15 मिनट के दो हाफ खेले गए। यहां 108वें मिनट में गोल दागकर लियोनेल मेसी ने अर्जेंटीना की जीत लगभग सुनिश्चित कर दी थी। तभी 118वें मिनट में पेनल्टी को गोल में तब्दील कर एमबाप्पे ने फ्रांस को फिर एक बार अर्जेंटीना की बराबरी पर ला खड़ा किया। इसके बाद विजेता का फैसला करने के लिए पेनल्टी शूटआउट शुरू हुआ। यहां भी सबसे पहले एमबाप्पे ने ही टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर मार्टीनेज को छकाते हुए फुटबॉल को गोल पोस्ट के लेफ्ट कॉर्नर में डाल दिया। 

इसके बाद फ्रांस के दो खिलाड़ी पेनल्टी शूटआउट में गोल नहीं कर सके, जिस कारण अंत में फ्रांस को 4-2 से हार झेलनी पड़ी। पर यह मुकाबला 90 मिनट में समाप्त होने की बजाय 2 घंटे से ज्यादा इसलिए गया क्योंकि अर्जेंटीना की समूची टीम का सामना एक अकेला एमबाप्पे कर रहा था। लियोनेल मेसी जरूर इस दौर के सार्वकालिक महान खिलाड़ी थे लेकिन एमबाप्पे के खेल का अंदाज बता रहा है कि वह मेसी को भी पार कर सकते हैं। यूनाइटेड स्टेट्स, कनाडा और मेक्सिको के द्वारा जॉइंटली होस्ट किया जाने वाला 2026 फीफा वर्ल्ड कप इंतजार कर रहा है। एमबाप्पे, यकीन है कि अबकी बार ट्रॉफी तुम्हारे ही कदम चूमेगी ll
 #गोल्डन_बूट_मुबारक_चैम्प। 👍👍👍💐💐💐💐💐
अंत में मेसी को बधाई, एंजल डी मारिया को बधाई और फिलहाल के लिए अपनी घरेलू परेशानियों के जूझ रही अर्जेंटीना को बधाई 🇦🇷

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