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काग के भाग बड़े सजनी

  पितृपक्ष में रसखान रोते हुए मिले। सजनी ने पूछा -‘क्यों रोते हो हे कवि!’ कवि ने कहा:‘ सजनी पितृ पक्ष लग गया है। एक बेसहारा चैनल ने पितृ पक्ष में कौवे की सराहना करते हुए एक पद की पंक्ति गलत सलत उठायी है कि कागा के भाग बड़े, कृश्न के हाथ से रोटी ले गया।’ सजनी ने हंसकर कहा-‘ यह तो तुम्हारी ही कविता का अंश है। जरा तोड़मरोड़कर प्रस्तुत किया है बस। तुम्हें खुश होना चाहिए । तुम तो रो रहे हो।’ कवि ने एक हिचकी लेकर कहा-‘ रोने की ही बात है ,हे सजनी! तोड़मोड़कर पेश करते तो उतनी बुरी बात नहीं है। कहते हैं यह कविता सूरदास ने लिखी है। एक कवि को अपनी कविता दूसरे के नाम से लगी देखकर रोना नहीं आएगा ? इन दिनों बाबरी-रामभूमि की संवेदनशीलता चल रही है। तो क्या जानबूझकर रसखान को खान मानकर वल्लभी सूरदास का नाम लगा दिया है। मनसे की तर्ज पर..?’ खिलखिलाकर हंस पड़ी सजनी-‘ भारतीय राजनीति की मार मध्यकाल तक चली गई कविराज ?’ फिर उसने अपने आंचल से कवि रसखान की आंखों से आंसू पोंछे और ढांढस बंधाने लगी।  दृष्य में अंतरंगता को बढ़ते देख मैं एक शरीफ आदमी की तरह आगे बढ़ गया। मेरे साथ रसखान का कौवा भी कांव कांव करता चला आ...

क्रिसमस सप्ताह का काला भारतीय इतिहास Christmas Guru Gobind Singh

21 दिसंबर से 27 दिसंबर का समय गुरु परिवार और
उनके सहयोगियों के बलिदान को याद करने का समय है…

पुराने बुजुर्ग बताते हैं कि- पहले पंजाब में 21 दिसंबर से लेकर 27 दिसम्बर तक का समय “शोक सप्ताह” के रूप में मनाया जाता था. इस पूरे सप्ताह कोई खुशियाँ नहीं मनाता था. सादा भोजन करते थे, जमीन पर सोते थे और गुरु परिवार के बलिदान को याद करते थे.

ऐसा इसलिए किया जाता था कि – वे लोग गुरु गोविन्द सिंह , उनके परिवार और उसके साथियों के संघर्ष को समझ सकें. 

21 दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह को आनंदपुर साहब किला छोड़ना पडा था. उनकी माँ (माता गुजरी) और छोटे साहबजादे उनसे बिछड़ गए थे

22 दिसंबर को बड़े साहबजादे (बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह) बलिदान हो गए थे. गुरु गोविन्द सिंह स्वयं घायल हो गए थे. उनके अनेकों साथी भी बलिदान हो गए थे. 23 दिसंबर को गुरु गोविन्द सिंह की माता और छोटे साहबजादे गिरफ्तार कर लिए गए थे.

उनको इस्लाम कबूलने को कहा गया और इस्लाम कबूल न करने पर तीन दिन तक भूखा प्यासा रखा गया और 26 दिसंबर को जिन्दा दीवार में चुनवा दिया गया. ये द्रश्य देखकर माता गुजरी ने भी प्राण त्याग दिए. मुगलों का जुल्म इतने पर भी नहीं रुका.

छोटे साहबजादों को चोरी से गर्म दूध पिलाने वाले मोती राम मेहरा के परिवार को कोल्हू में पेरकर मार दिया गया. छोटे साहबजादों का संस्कार नहीं करने दे रहे थे. जमीन पर सोने की मोहरें बिछाकर सरकार को देने की शर्त रखी, जिसे दीवान टोडरमल ने पूरा किया.

27 नबम्बर को शेर बहादुर खान, बीबी अनूप कौर सहित रोपड़ – मोरिंडा की अनेकों महिलाओं को पकड़कर मलेरकोटला ले गया था जहाँ बाद में अपनी इज्जत बचाने के लिए बीबी अनूप कौर ने जान दे दी थी और जिनका बदला बन्दा बहादुर ने लिया था

उन सबके त्याग और बलिदान को याद करने के लिए पंजाबी लोग खुद भी भौतिक सुखों से दूर रहा करते थे. लेकिन अब आज हम, उस बलिदान को भूल चुके हैं. आजकल यह सप्ताह क्रिसमस की खुशिया मनाने का सप्ताह बन चूका है.

जगह जगह बाजार सज जाते हैं. बड़े बड़े मॉल में रौनक बढ़ जाती है. लोग अपने बच्चों को जोकर जैसे कपडे पहनाकर बड़े खुश होकर घूमते हैं. अब यह सप्ताह छुट्टियाँ मनाने का सप्ताह बन चूका है. यह सप्ताह अब शोक के बजाय मनोरंजन वाला सप्ताह बन गया है.
हम लोगों को गुरु परिवार के बलिदान की याद दिलाने का प्रयास करते हैं. साथ ही आपसे निवेदन करते हैं कि- इस अवसर पर फतेहगढ़ साहब, चमकौर साहब, चप्पदचिडी जैसी जगहों पर अपने बच्चों को घुमाने लेकर जाइए और उन्हें बताइये की हम जोकरों के नहीं सनातनी वीरों के वंशज है।

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काग के भाग बड़े सजनी

  पितृपक्ष में रसखान रोते हुए मिले। सजनी ने पूछा -‘क्यों रोते हो हे कवि!’ कवि ने कहा:‘ सजनी पितृ पक्ष लग गया है। एक बेसहारा चैनल ने पितृ पक्ष में कौवे की सराहना करते हुए एक पद की पंक्ति गलत सलत उठायी है कि कागा के भाग बड़े, कृश्न के हाथ से रोटी ले गया।’ सजनी ने हंसकर कहा-‘ यह तो तुम्हारी ही कविता का अंश है। जरा तोड़मरोड़कर प्रस्तुत किया है बस। तुम्हें खुश होना चाहिए । तुम तो रो रहे हो।’ कवि ने एक हिचकी लेकर कहा-‘ रोने की ही बात है ,हे सजनी! तोड़मोड़कर पेश करते तो उतनी बुरी बात नहीं है। कहते हैं यह कविता सूरदास ने लिखी है। एक कवि को अपनी कविता दूसरे के नाम से लगी देखकर रोना नहीं आएगा ? इन दिनों बाबरी-रामभूमि की संवेदनशीलता चल रही है। तो क्या जानबूझकर रसखान को खान मानकर वल्लभी सूरदास का नाम लगा दिया है। मनसे की तर्ज पर..?’ खिलखिलाकर हंस पड़ी सजनी-‘ भारतीय राजनीति की मार मध्यकाल तक चली गई कविराज ?’ फिर उसने अपने आंचल से कवि रसखान की आंखों से आंसू पोंछे और ढांढस बंधाने लगी।  दृष्य में अंतरंगता को बढ़ते देख मैं एक शरीफ आदमी की तरह आगे बढ़ गया। मेरे साथ रसखान का कौवा भी कांव कांव करता चला आ...

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