चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...
21 दिसंबर से 27 दिसंबर का समय गुरु परिवार और
उनके सहयोगियों के बलिदान को याद करने का समय है…
पुराने बुजुर्ग बताते हैं कि- पहले पंजाब में 21 दिसंबर से लेकर 27 दिसम्बर तक का समय “शोक सप्ताह” के रूप में मनाया जाता था. इस पूरे सप्ताह कोई खुशियाँ नहीं मनाता था. सादा भोजन करते थे, जमीन पर सोते थे और गुरु परिवार के बलिदान को याद करते थे.
ऐसा इसलिए किया जाता था कि – वे लोग गुरु गोविन्द सिंह , उनके परिवार और उसके साथियों के संघर्ष को समझ सकें. 
21 दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह को आनंदपुर साहब किला छोड़ना पडा था. उनकी माँ (माता गुजरी) और छोटे साहबजादे उनसे बिछड़ गए थे
22 दिसंबर को बड़े साहबजादे (बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह) बलिदान हो गए थे. गुरु गोविन्द सिंह स्वयं घायल हो गए थे. उनके अनेकों साथी भी बलिदान हो गए थे. 23 दिसंबर को गुरु गोविन्द सिंह की माता और छोटे साहबजादे गिरफ्तार कर लिए गए थे.
उनको इस्लाम कबूलने को कहा गया और इस्लाम कबूल न करने पर तीन दिन तक भूखा प्यासा रखा गया और 26 दिसंबर को जिन्दा दीवार में चुनवा दिया गया. ये द्रश्य देखकर माता गुजरी ने भी प्राण त्याग दिए. मुगलों का जुल्म इतने पर भी नहीं रुका.
छोटे साहबजादों को चोरी से गर्म दूध पिलाने वाले मोती राम मेहरा के परिवार को कोल्हू में पेरकर मार दिया गया. छोटे साहबजादों का संस्कार नहीं करने दे रहे थे. जमीन पर सोने की मोहरें बिछाकर सरकार को देने की शर्त रखी, जिसे दीवान टोडरमल ने पूरा किया.
27 नबम्बर को शेर बहादुर खान, बीबी अनूप कौर सहित रोपड़ – मोरिंडा की अनेकों महिलाओं को पकड़कर मलेरकोटला ले गया था जहाँ बाद में अपनी इज्जत बचाने के लिए बीबी अनूप कौर ने जान दे दी थी और जिनका बदला बन्दा बहादुर ने लिया था
उन सबके त्याग और बलिदान को याद करने के लिए पंजाबी लोग खुद भी भौतिक सुखों से दूर रहा करते थे. लेकिन अब आज हम, उस बलिदान को भूल चुके हैं. आजकल यह सप्ताह क्रिसमस की खुशिया मनाने का सप्ताह बन चूका है.
जगह जगह बाजार सज जाते हैं. बड़े बड़े मॉल में रौनक बढ़ जाती है. लोग अपने बच्चों को जोकर जैसे कपडे पहनाकर बड़े खुश होकर घूमते हैं. अब यह सप्ताह छुट्टियाँ मनाने का सप्ताह बन चूका है. यह सप्ताह अब शोक के बजाय मनोरंजन वाला सप्ताह बन गया है.
हम लोगों को गुरु परिवार के बलिदान की याद दिलाने का प्रयास करते हैं. साथ ही आपसे निवेदन करते हैं कि- इस अवसर पर फतेहगढ़ साहब, चमकौर साहब, चप्पदचिडी जैसी जगहों पर अपने बच्चों को घुमाने लेकर जाइए और उन्हें बताइये की हम जोकरों के नहीं सनातनी वीरों के वंशज है।
  
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