.. जब समोसा 50 पैसे का लिया करता था तो ग़ज़ब स्वाद होता था... आज समोसा 10 रुपए का हो गया, पर उसमे से स्वाद चला गया... अब शायद समोसे में कभी वो स्वाद नही मिल पाएगा.. बाहर के किसी भोजन में अब पहले जैसा स्वाद नही, क़्वालिटी नही, शुद्धता नही.. दुकानों में बड़े परातों में तमाम खाने का सामान पड़ा रहता है, पर वो बेस्वाद होता है.. पहले कोई एकाध समोसे वाला फेमस होता था तो वो अपनी समोसे बनाने की गुप्त विधा को औऱ उन्नत बनाने का प्रयास करता था... बड़े प्यार से समोसे खिलाता, औऱ कहता कि खाकर देखिए, ऐसे और कहीं न मिलेंगे !.. उसे अपने समोसों से प्यार होता.. वो समोसे नही, उसकी कलाकृति थे.. जिनकी प्रसंशा वो खाने वालों के मुंह से सुनना चाहता था, औऱ इसीलिए वो समोसे दिल से बनाता था, मन लगाकर... समोसे बनाते समय ये न सोंचता कि शाम तक इससे इत्ते पैसे की बिक्री हो जाएगी... वो सोंचता कि आज कितने लोग ये समोसे खाकर वाह कर उठेंगे... इस प्रकार बनाने से उसमे स्नेह-मिश्रण होता था, इसीलिए समोसे स्वादिष्ट बनते थे... प्रेमपूर्वक बनाए और यूँ ही बनाकर सामने डाल दिये गए भोजन में फर्क पता चल जाता है, ...
ये हैं अरामज़द (Aramazd)...!
अरामज़द को अर्मेनिया के प्री-क्रिश्चन (पारसी) गॉड माना जाता है.
इन्हें सिर्फ... गॉड ही नहीं माना जाता है...
बल्कि, इन्हें फादर ऑफ गोड्स एंड गोडेज... अर्थात, सभी देवी देवताओं के पिता अथवा रचयिता माना जाता है.
आर्मेनिया में इनकी पूजा सर्वोच्च देवता के तौर पे की जाती थी.
और, ऐसी मान्यता है कि इन्होंने ही स्वर्ग और पृथ्वी बनाई.
साथ ही.... इन्होंने ही पृथ्वी की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जिसके कारण पृथ्वी में पेड़-पौधे उगे और पृथ्वी फलवान हुई.
अर्थात.... प्राचुर्य, वर्षा और उर्वरता के भगवान.
लेकिन, मुझे आर्मेनिया फर्मेनिया में नहीं बल्कि उनके देवता के इस फोटो में रुचि है...
क्योंकि, इस देवता के चित्र में स्वस्तिक और हाथों पर बैठा गरुड़ साफ साफ नजर आ रहा है.
तो, क्या ये मान लिया जाए कि ये
अरामज़द देवता और कोई नहीं बल्कि भगवान विष्णु ही थे... जिन्हें आर्मेनिया की अपनी भाषा अथवा उच्चारण में Aramazd पुकारा जाता था ?
क्योंकि.... काल, मान्यता, देव के गुणों की समानता तो कुछ इसी तरफ इशारा कर रहे है...
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