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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

 चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...

The real meaning of Ram

The meaning of Rama


ऋषि सरभंग


नगर से सैकड़ों कोस दूर सुदूर वन में तपस्या कर रहे उस वृद्ध ऋषि ने दूर उस निश्चित स्थान की ओर दृष्टि डाली, जहाँ वर्षों पहले उन्होंने राक्षसों द्वारा मार दिए गए असंख्य ऋषियों की जूठी अस्थियां इकट्ठी की थी। अस्थियों का ढेर अब भी जस का तस पड़ा था। उनके मुस्कुराते अधर लटक गए, आंखों में जल उतर आया.......उन्होंने अपने आसन पर ही खड़े हो कर दोनों हाथ हवा में लहराया और आकाश की ओर मुँह घुमा कर कहा- "अब आ भी जाओ राम! युगों युगों से तुम्हारी राह निहारते इस शरभंग की बूढ़ी हड्डियां अब थक चुकी हैं। यह नश्वर शरीर, अब और प्रतीक्षा नहीं कर सकता। तुम आओ तो मैं जा सकूँ..." 


     आकाश में खड़े सूर्य देव ने सुना, उसी क्षण लगभग ऐसी ही प्रार्थना उस भीलनी की कुटिया से आ रही थी। ऐसी ही प्रार्थना के स्वर गूंजे थे अहिल्या के उजाड़ गृह से, ऐसी ही प्रार्थना गूंजी थी महर्षि विश्वामित्र के विद्यालय में... ऐसी ही प्रार्थना समग्र आर्यावर्त के वायुमंडल में तैर रही थी। सूर्यदेव मुस्कुरा उठे। मन ही मन कहा,"महाराज दशरथ तो ईश्वर से केवल पुत्र मांग रहे हैं, काश कि वे जान पाते कि समस्त संसार ईश्वर से उनके लिए क्या मांग रहा है।" 


     महर्षि शरभंग के सामने जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने कहा, " हर पीड़ा एक दिन समाप्त होती है, हर तपस्या एक दिन पूरी होती है, हर शरभंग को एक दिन उनके राम मिल ही जाते हैं। मुस्कुराइये महर्षि! आज चैत्र शुक्लपक्ष की नवमी है, वह आ गया है...राम आ गया है।" सुख-दुख, हर्ष-विषाद की अर्गला से बहुत पहले मुक्त हो चुके ऋषि हँस पड़े। 


समस्त संसार में वह अनकहा वाक्य गूँज उठा- "वह आ गया है.......राम आ गया है!" 


राम के आने का या राम होने तात्पर्य जानते हैं आप? राम होने का अर्थ सभ्यता को एक नए नायक का मिलना जिसका अनुसरण कर सभ्यता रामत्व को प्राप्त करे। राम होने का अर्थ मर्यादा की स्थापना है। राम होने का अर्थ समुद्र में भी सेतु बाँधकर संस्कारित प्रणय को प्रतिष्ठित करना है। राम होने का अर्थ प्रेम को एकल पत्नी व्रत के साथ परिभाषित करना है। राम होने का अर्थ एक वंचित निषाद से, शोषित सुग्रीव से, तिरस्कृत विभीषण से मित्रता करना है। राम होने का अर्थ सघन तरूवरों में कोसों कोस चलकर उस भीलनी के समीप इसलिए जाना ताकि किसी गुरुदेव का दिया वचन व्यर्थ न हो। राम होने का अर्थ माँ की अवांछनीय इच्छा को और पिता के वचन को आशीर्वाद समझकर शिरोधार्य करना है। राम होने का अर्थ ताड़का का सुधार, अहिल्या का उद्धार, सीता का श्रृंगार तो सुपर्णखा का तिरस्कार, हर स्त्री से समूचित व्यवहार है। राम होना जहाँ लंकेश संहार के उपरांत शौर्य की पराकाष्ठा तो वहीं लंका को जस का तस छोड़ आना, मर्यादा की पुनर्स्थापना है। राम होने का अर्थ आज के युग में उस विश्वास का आना है जो कभी अपनी मिट्टी, संस्कृति और देश से उखड़ रहे लोगों के लिए सुरक्षा की प्रत्याभूति है, वह विश्वास के साथ कह सके कि 'मेरे साथ मेरे राम हैं'। यूं ही नहीं बनता कोई राम.... यूं ही नहीं बनता कोई पुरुषोत्तम। 


अभिवादन के 'राम-राम' से लेकर शौर्य के 'जय श्री राम' तक, रोम-रोम में तुम ही तुम हो राम.....और कितना लिखूँ? बस अपनी अनुकंपा बनाए रखना प्रभु।

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The Story of Yashaswi Jaiswal

जिस 21 वर्षीय यशस्वी जयसवाल ने ताबड़तोड़ 98* रन बनाकर कोलकाता को IPL से बाहर कर दिया, उनका बचपन आंसुओं और संघर्षों से भरा था। यशस्‍वी जयसवाल मूलरूप से उत्‍तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। वह IPL 2023 के 12 मुकाबलों में 575 रन बना चुके हैं और ऑरेंज कैप कब्जाने से सिर्फ 2 रन दूर हैं। यशस्वी का परिवार काफी गरीब था। पिता छोटी सी दुकान चलाते थे। ऐसे में अपने सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ 10 साल की उम्र में यशस्वी मुंबई चले आए। मुंबई में यशस्वी के पास रहने की जगह नहीं थी। यहां उनके चाचा का घर तो था, लेकिन इतना बड़ा नहीं कि यशस्वी यहां रह पाते। परेशानी में घिरे यशस्वी को एक डेयरी पर काम के साथ रहने की जगह भी मिल गई। नन्हे यशस्वी के सपनों को मानो पंख लग गए। पर कुछ महीनों बाद ही उनका सामान उठाकर फेंक दिया गया। यशस्वी ने इस बारे में खुद बताया कि मैं कल्बादेवी डेयरी में काम करता था। पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और थोड़ी देर के लिए सो जाता था। एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता। नौकरी तो गई ही, रहने का ठिकान...

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