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Tyagpatra by Jainendra Book Review

 त्यागपत्र: एक अंतर्मुखी पीड़ा की कहानी जैनेंद्र कुमार का उपन्यास 'त्यागपत्र' भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह उपन्यास मृणाल की कहानी है, जो अपने पति प्रमोद के द्वारा त्याग दी जाती है। कहानी मृणाल के अंतर्मुखी पीड़ा, सामाजिक बंधनों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संघर्ष को दर्शाती है। जैनेंद्र कुमार की लेखन शैली सरल और गहरी है। उन्होंने मृणाल के मन की उलझनों और भावनात्मक जटिलताओं को बहुत ही संवेदनशील तरीके से चित्रित किया है। कहानी में सामाजिक रूढ़ियों और व्यक्तिगत इच्छाओं के बीच का द्वंद्व स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। मृणाल का त्यागपत्र केवल एक शारीरिक त्यागपत्र नहीं है, बल्कि यह उसके आंतरिक संघर्ष और मुक्ति की खोज का प्रतीक है। उपन्यास में प्रमोद का चरित्र भी जटिल है। वह एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है जो सामाजिक दबावों और अपनी कमजोरियों के कारण मृणाल को त्याग देता है। यह उपन्यास उस समय के समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके संघर्षों पर प्रकाश डालता है। 'त्यागपत्र' एक ऐसा उपन्यास है जो पाठक को सोचने पर मजबूर करता है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजि...

Chhatrapati Sambhaji Maharaj: The forgetten Hero

 छावा 

Chhava


छत्रपति संभाजी महाराज हिंदवी स्वराज के दूसरे छत्रपति तथा छत्रपति श्री शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ सुपुत्र थे । इन की माता जी सई बाई जी का इन्हे जन्म देने के बाद साल भर में देहांत हुआ तो संभाजी राजे को भी शिवाजी महाराज की माता जिजाऊ मां साहब ने ही बड़ा किया ।इस साध्वी के हिन्दुस्थान पर बहुत अहसान है।इन्होंने चारो तरफ से इस्लामी आक्रांताओं से घिरी जमीन पर दो हिंदू छत्रपतियो को बड़ा किया 🔥


संभाजी महाराज बचपन से होशियार थे ।उन का नसीब देखिए,बचपन में ही उन्हें शिवाजी महाराज की मुगलों के साथ हुए एक समझौते के लिए मुगलों के पास अमानत के तौर पर रहना पड़ा।पांच वर्ष की उमर से वो उन के पिता की आर्मी में ही बड़े हुए तो वो उन की आर्मी में बहुत लोकप्रिय थे।जब शिवाजी महाराज आगरा गए थे और औरंगजेब तथा सब की नजरो में धूल झोंक कर वापस आए तब संभाजी महाराज भी उन के साथ थे ।शिवाजी महाराज मध्यम कद काठी के एक प्रभावशाली व्यक्तित्व थे तो संभाजी महाराज की कद काठी बहुत अच्छी थी।सौ लोगो में भी वो नजर आते थे और ये खुद मुगलों ने लिख रखा है !मराठी,पाली,संस्कृत ,फारसी ,उर्दू ,हिंदी पर उन का प्रभुत्व था और संभाजी महाराज ने संस्कृत में किताबे भी लिखी है वो भी चौदह वर्ष की उमर में !महाराज भी अपने पिता की तरह तलवार,तीरंदाजी,घुड़सवारी और बंदूक की निशाने बाजी में माहिर थे ।


शिवाजी महाराज के देहावसान के बाद संभाजी महाराज ने गद्दी संभाली।शिवाजी मर गए तो अब दक्षिण जितना आसान होगा ये सोच कर औरंगजेब दक्षिण में उतरा।लेकिन संभाजी राजे की तेजी देख वो पहले बीजापुर गया।वहा की मुस्लिम गद्दी आदिलशाही को उस ने उखाड़ा! फिर हैदराबाद जाकर दूसरी मुस्लिम गद्दी निजाम शाही को उखाड़ा !! इस दौरान संभाजी महाराज ने गोवा के पोर्तुगीज,मुंबई के अंग्रेज ,जंजीरे के सिद्दी को सबक सिखाया।जितने मुगल सरदार आए उन सब को धूल चटाई।शिवाजी महाराज के समय महाराज ने अपने कामकाज की राजमुद्रा अपने माता जी को दे रखी थी।संभाजी महाराज ने तो श्री सखी रादनी जयति नाम से अपनी पत्नी के नाम से ही राजमुद्रा बनाई। मराठाओं की खासियत रही की उन्होंने अपनी औरतों को राज कामकाज देखने को प्रोत्साहित किया और मरने की जगह लड़ने को प्रोत्साहित किया !आज हम जो तहसील और खेती बाड़ी के टैक्स वाला सिस्टम देखते है वो संभाजी महाराज की देन है !


संभाजी महाराज धार्मिक हिंदू थे।ये मैं नही कह रही,खुद औरंगजेब ने लिखवा कर रखा है ।जबरन धर्मांतरण करवाने वाले मौलवियों को और गोवा के जबरन धर्मांतरण करवाने वाले पादरियों को संभाजी महाराज ने मृत्युदंड दिया था ।वो बहुत अच्छे जनरल थे। घोड़े और अपने मावले मतलब सैनिक लोग की उन्हे अच्छी पहचान  थी।हुजूर,मरहट्टे आ गए,भागो ! वाला डायलॉग दक्षिण में हर एक जगह मोगली सेना में सुनाई देना शुरू हुआ संभाजी महाराज के चलते ! औरंगजेब ने संभाजी महाराज को अपने ईगो का विषय बनाया था क्युकी आलमगीर के बड़े बेटे अकबर को महाराज ने पनाह दी थी !आदिलशाही और निजाम शाही में कार्यरत मराठा सरदारों को औरंगजेब ने पैसा और जमीन देकर अपने साथ किया।महाराज के दरबार के निष्क्रिय सरदारों को अपने साथ किया और कोंकण के संगमेश्वर में महाराज को धोखे से कैद करवाया।


संभाजी महाराज के सामने औरंगजेब ने शर्ते रखी।इस्लाम कबुल कर के हमारे सरदार बनो और दक्षिण तुम्हारा ही रहेगा।अपने स्वराज का सारा खजाना हमारे हवाले करो।हमारे सामने झुक कर छत्रपति नाम की गद्दी को त्याग दो! बदले में महाराज में उसी के दरबार में उसे गालियां सुनाई।फिर महाराज और महाराज के सेनापति यूपी का तलवार लेकर लड़ने वाला बम्मन कवि कुलेश को औरंगजेब ने दर्दनाक मौत दी।महाराज की चीख सुनने के लिए उस ने पहले महाराज की आंखे निकाली,फिर जिव्हा काट दी। आह भी नही निकली तो महाराज की चमड़ी निकालने का काम शुरू हुआ और बारह दिन के बाद महाराज के प्राण निकले लेकिन आह नही निकली !महाराज खत्म तो मराठा और छत्रपति की गद्दी खतम यही आलमगीर ने सोचा था ।इस के लिए तुरंत उस ने रायगढ़ जीत कर जलाया और महाराज के परिवार को कैद किया ।उस से पहले महाराज की पत्नी ने महाराज के छोटे भाई राजाराम महाराज को छत्रपति बनाकर उन्हें दक्षिण में जिन्जी किले पर भेजा था।


शिवाजी महाराज की सोच और संभाजी महाराज का बलिदान क्या चीज है ये औरंगजेब को संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद पता चला।पुणे के पास तुलापुर नाम के गांव में राजे के शरीर के टुकड़े टुकड़े कर के औरंगजेब ने फेंकवाए थे और कहा था जो हाथ लगाएगा उस का परिवार निर्वंश कर दो ।लेकिन लोकल जनता जिस में दलित बांधव भी थे उन्होंने जान की परवाह किए बिना महाराज के अंतिम संस्कार करवाए।महाराज के बलिदान से मराठाओं के आत्म सम्मान को ठेस पहुंची।औरंगजेब से लेकर यहां वहा हर जगह के मराठा सरदारों ने बगावत की।आलम ये था की अपनी जान सुरक्षित रहे इसलिए औरंगजेब ने महाराज के परिवार को पहले आगरा और फिर दिल्ली भेज उन्हे राज पाट के साथ रखा !पहले राजाराम महाराज,फिर उन की पत्नी शेरनी तारा बाई ने लड़ाई जारी रखी।धीरे धीरे मुगलों की अवस्था ना घर का न घाट का हुई और महाराष्ट्र में एक गुमनाम जगह पर जिल्लत की मौत औरंगजेब के नसीब में आई! बाद में मराठाओं ने दिल्ली जाकर महाराज के परिवार और सुपुत्र शाहू को वापस लाकर उन्हें छत्रपति बनाया।शाहू महाराज ने बब्बर शेर बाजीराव जी को अपना पेशवा बनाया और आगे का आप सब जानते है ! मराठाओं की निष्ठा और विजन ऑफ क्लैरिटी का जवाब नही था।एक शिवाजी महाराज जिन्हे देखा भी नहीं वो राष्ट्र धर्म का विचार देकर गए है उस विचार को सामान्य कद काठी के हल चलाने वाले लोगो ने अपना जीवन बनाया।राजे के वंशजों को राजे वाला ही दर्जा दिया।एक के भी मन में नही आया की हम गद्दी हथिया ले।


संभाजी महाराज की जीवनी पर मराठी में छावा नाम की एक नॉवेल है ।वही से महाराज पर बनी फिल्म का नाम छावा रखा गया है। छावा बोले तो शेर का बच्चा ! शिवाजी महाराज या संभाजी महाराज का राज्य बड़ा नही था।वो तो भगवन कृष्ण या प्रभु श्री राम का भी नही था ।फिर भी हम आज राम राज्य ,कृष्ण नीति या हिंदवी स्वराज के ही उदाहरण देते है क्युकी इन राज्यों से जुड़ी हर एक चीज का स्टैंडर्ड इतना महान था की उस के आगे हाथ अपने आप जुड़ जाए !उम्मीद है बॉलीवुड वाले उस युगपुरुष धर्मरक्षक छत्रपति संभाजी महाराज जी की जीवनी को न्याय दिए होंगे।


छत्रपति शिवाजी महाराज की जय 🙏

छत्रपति संभाजी महाराज की जय 🙏

जय भवानी,जय शिवाजी , हर हर महादेव 🙏🙏

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