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Waqt aur Samose

 .. जब समोसा 50 पैसे का लिया करता था तो ग़ज़ब स्वाद होता था... आज समोसा 10 रुपए का हो गया, पर उसमे से स्वाद चला गया... अब शायद समोसे में कभी वो स्वाद नही मिल पाएगा.. बाहर के किसी भोजन में अब पहले जैसा स्वाद नही, क़्वालिटी नही, शुद्धता नही.. दुकानों में बड़े परातों में तमाम खाने का सामान पड़ा रहता है, पर वो बेस्वाद होता है..  पहले कोई एकाध समोसे वाला फेमस होता था तो वो अपनी समोसे बनाने की गुप्त विधा को औऱ उन्नत बनाने का प्रयास करता था...  बड़े प्यार से समोसे खिलाता, औऱ कहता कि खाकर देखिए, ऐसे और कहीं न मिलेंगे !.. उसे अपने समोसों से प्यार होता.. वो समोसे नही, उसकी कलाकृति थे.. जिनकी प्रसंशा वो खाने वालों के मुंह से सुनना चाहता था,  औऱ इसीलिए वो समोसे दिल से बनाता था, मन लगाकर... समोसे बनाते समय ये न सोंचता कि शाम तक इससे इत्ते पैसे की बिक्री हो जाएगी... वो सोंचता कि आज कितने लोग ये समोसे खाकर वाह कर उठेंगे... इस प्रकार बनाने से उसमे स्नेह-मिश्रण होता था, इसीलिए समोसे स्वादिष्ट बनते थे... प्रेमपूर्वक बनाए और यूँ ही बनाकर सामने डाल दिये गए भोजन में फर्क पता चल जाता है, ...

Kashi ka Assi Book Review

Kashi ka Assi


**किताब समीक्षा: "काशी का अस्सी"**


**लेखक**: काशीनाथ सिंह  

**शैली**: व्यंग्यात्मक कथा साहित्य  

**प्रकाशन वर्ष**: 2004


"काशी का अस्सी" हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण और चर्चित उपन्यास है, जिसे काशीनाथ सिंह ने लिखा है। यह किताब बनारस की जीवनशैली, वहाँ की संस्कृति और आम जनमानस की भाषा और बोलचाल का जीवंत चित्रण करती है। किताब का केंद्र बनारस का प्रसिद्ध अस्सी घाट है, जो सिर्फ एक भौगोलिक स्थल नहीं, बल्कि बनारसी जीवन का प्रतीक है।


### **कहानी का सारांश**:

कहानी अस्सी घाट के इर्द-गिर्द घूमती है, जहाँ विभिन्न तबकों के लोग बैठकर बातचीत, बहस और ठहाके लगाते हैं। यह बनारसी समाज की धड़कनों को पकड़ता है। किताब में कई पात्र हैं, जिनमें मुख्यत: पंडित, टीकाकार, शिक्षक, छात्र, नौकरीपेशा लोग और साधारण नागरिक शामिल हैं। हर व्यक्ति का अपना दृष्टिकोण और जीवन के प्रति अपने अनुभव होते हैं, जो किताब को वास्तविक और मजेदार बनाते हैं।


**काशी का अस्सी** में अस्सी घाट के पंडों और स्थानीय निवासियों के रोजमर्रा के जीवन को बड़े ही सजीव और व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है। काशी का परंपरागत, धार्मिक और सांस्कृतिक पक्ष इस उपन्यास में गहराई से उभरकर सामने आता है।


### **शैली और भाषा**:

काशीनाथ सिंह ने इस उपन्यास में आम बोलचाल की भाषा का उपयोग किया है, जिसमें बनारसी बोली का खासा प्रभाव देखने को मिलता है। यह भाषा पात्रों को जीवंत बनाती है और पाठक को बनारस के जीवन में डुबो देती है। उनकी शैली इतनी सहज और व्यंग्यात्मक है कि गंभीर मुद्दों को भी हंसी-हंसी में कह जाती है। लेखक ने समकालीन राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर भी करारा व्यंग्य किया है, जो किताब को और गहराई देता है।


### **मुख्य विषय**:

"काशी का अस्सी" केवल एक स्थान या समुदाय की कहानी नहीं है; यह आधुनिक भारतीय समाज और उसकी विडंबनाओं का भी आईना है। कहानी के पात्र अस्सी घाट पर बैठकर जीवन, राजनीति, धर्म और समाज पर चर्चा करते हैं। यह किताब धर्म और परंपराओं की आड़ में छिपे पाखंड और राजनीतिकरण पर भी गहरा कटाक्ष करती है। इसमें बनारस की पुरानी संस्कृति और नई पीढ़ी के बीच टकराव को भी सजीव रूप से दर्शाया गया है।


### **व्यंग्य की ताकत**:

उपन्यास का सबसे बड़ा आकर्षण इसका व्यंग्य है। काशीनाथ सिंह ने बड़े ही चुटीले अंदाज में समाज की विडंबनाओं और राजनीति की खामियों पर प्रहार किया है। अस्सी घाट की बैठकी, जिसमें सबकुछ बहस का विषय होता है, उसमें लेखक ने बेहद सजीव और सटीक संवाद लिखे हैं। हर पात्र के माध्यम से समाज का कोई न कोई पहलू सामने आता है, जिसे हास्य और व्यंग्य के साथ प्रस्तुत किया गया है।


### **पात्रों का चित्रण**:

उपन्यास में कई महत्वपूर्ण पात्र हैं, जो पाठकों को जीवन से जुड़े हुए लगते हैं। हर पात्र की अपनी अनोखी पहचान और जीवन दृष्टि है। ये पात्र आपको किसी न किसी रूप में वास्तविक जीवन से जुड़े हुए प्रतीत होते हैं। चाहे वह पंडित हों, जो धर्म और राजनीति की चर्चा में लगे रहते हैं, या फिर नौजवान, जो नए भारत की बात करते हैं – हर कोई अपनी जगह सटीक बैठता है।


### **क्यों पढ़ें?**:

यदि आप बनारस की संस्कृति, उसकी बोली-बानी, वहाँ के लोगों की सोच और उनके जीवन को समझना चाहते हैं, तो "काशी का अस्सी" एक बेहतरीन किताब है। यह न केवल बनारस की एक झलक देती है, बल्कि आपको उस समाज की विविधताओं और विडंबनाओं से भी रूबरू कराती है। इसके व्यंग्य में आपको हंसाने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर करने की ताकत है।


### **निष्कर्ष**:

"काशी का अस्सी" एक अद्वितीय पुस्तक है, जो बनारस के अस्सी घाट के माध्यम से भारतीय समाज, संस्कृति और राजनीति पर तीखा व्यंग्य करती है। काशीनाथ सिंह की सरल लेकिन मारक शैली इस पुस्तक को और भी प्रभावी बनाती है। इस पुस्तक का हर पृष्ठ आपको हंसाएगा, पर साथ ही कुछ गहरे सवाल भी छोड़ जाएगा।


**रेटिंग**: 4.5/5


**नोट**: यह किताब उन लोगों के लिए खास तौर पर अनुशंसित है, जो बनारसी जीवन के रंगों और भारतीय समाज की वास्तविकताओं को समझने में रुचि रखते हैं। 

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