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काग के भाग बड़े सजनी

  पितृपक्ष में रसखान रोते हुए मिले। सजनी ने पूछा -‘क्यों रोते हो हे कवि!’ कवि ने कहा:‘ सजनी पितृ पक्ष लग गया है। एक बेसहारा चैनल ने पितृ पक्ष में कौवे की सराहना करते हुए एक पद की पंक्ति गलत सलत उठायी है कि कागा के भाग बड़े, कृश्न के हाथ से रोटी ले गया।’ सजनी ने हंसकर कहा-‘ यह तो तुम्हारी ही कविता का अंश है। जरा तोड़मरोड़कर प्रस्तुत किया है बस। तुम्हें खुश होना चाहिए । तुम तो रो रहे हो।’ कवि ने एक हिचकी लेकर कहा-‘ रोने की ही बात है ,हे सजनी! तोड़मोड़कर पेश करते तो उतनी बुरी बात नहीं है। कहते हैं यह कविता सूरदास ने लिखी है। एक कवि को अपनी कविता दूसरे के नाम से लगी देखकर रोना नहीं आएगा ? इन दिनों बाबरी-रामभूमि की संवेदनशीलता चल रही है। तो क्या जानबूझकर रसखान को खान मानकर वल्लभी सूरदास का नाम लगा दिया है। मनसे की तर्ज पर..?’ खिलखिलाकर हंस पड़ी सजनी-‘ भारतीय राजनीति की मार मध्यकाल तक चली गई कविराज ?’ फिर उसने अपने आंचल से कवि रसखान की आंखों से आंसू पोंछे और ढांढस बंधाने लगी।  दृष्य में अंतरंगता को बढ़ते देख मैं एक शरीफ आदमी की तरह आगे बढ़ गया। मेरे साथ रसखान का कौवा भी कांव कांव करता चला आ...

Controversy over Indian Cricket Team's Aggressive Behaviour



 ऑस्ट्रेलिया में चल रही टेस्ट सीरीज में भारतीय खिलाड़ियों के आक्रामक व्यवहार को लेकर बहुत चर्चा हो रही है। ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को धक्का देना, उनपर व्यंग्य करना, उन्हें ट्रोल करना... पहली नजर में यह बुरा तो लगता ही है। अपने यहाँ के लोग भी भारतीय खिलाड़ियों की असभ्यता की आलोचना कर रहे हैं।

    मुझे लगता है जिन लोगों ने नब्बे के दशक तक ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों का व्यवहार देखा हो, उन्हें भारतीय खिलाड़ियों का व्यवहार बुरा नहीं लगेगा। सौरभ गांगुली के कप्तान बनने से पहले भारतीय खिलाड़ियों के साथ कैसा व्यवहार होता रहा है, वह हमें खूब याद है।

     एक बार वेस्टइंडीज के गैरी सोबर्स(या शायद विवियन रिचर्ड्स) ने कहा था- "हम भारत में खेलने कहाँ आते हैं, हम तो केवल इसलिए आते हैं कि यहाँ की लड़कियां सुन्दर हैं।" आप समझ रहे हैं यह कितना अपमानजनक बयान है? भारतीय खिलाड़ियों ने लम्बे समय तक ऐसा तिरस्कार और अपमानजनक बर्ताव झेला है।

     क्रिकेट इतिहास में सर्वाधिक अभद्रता ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों ने दिखाई है, और सबसे अधिक भारतीय खिलाड़ियों के विरुद्ध... खिलाड़ी क्या, अंपायर तक भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार करते रहे हैं।

     सचिन तेंदुलकर जैसे सौम्य व्यक्ति को माइकल क्लार्क कोहनी मार कर गिरा चुके हैं। एंड्रयू साइमंड ने किस तरह भारतीय खिलाड़ियों के साथ दर्जनों बार बदतमीजी की है, यह भी हम सब ने देखा है। रिकी पोंटिंग ने आईसीसी के अध्यक्ष रहे शरद पवार तक को धक्का मारा है, वह भी भारत में। कप्तान रहते समय पोंटिंग कैसे हरभजन से उलझे थे, यह भी याद है।

     राहुल द्रविड़ जैसे शांत खिलाड़ी को भी बार बार अपमानित किया है ऑस्ट्रेलिया वालों ने। दरअसल भारत के खिलाफ मैच में उतरने से पहले ही वे तय कर लेते थे कि इन्हें पहले ही बैकफुट पर ला देना है। और वे लम्बे समय तक इसमें सफल भी रहे थे।

      दो हजार के बाद जन्में युवक समझ ही नहीं पाएंगे कि जब पहली बार गांगुली ने ऑस्ट्रेलिया वालों को उन्ही की भाषा में उत्तर देना शुरू किया तो भारत के दर्शकों को कितनी प्रसन्नता हुई थी। वह ऐतिहासिक दिन था जब गांगुली के बल पर पन्द्रह साल के पार्थिव पटेल ने स्टीव वा को चिढ़ाया था। भारतीय क्रिकेट की दशा वास्तव में उस दिन बदली थी। जी हाँ, यब उन अभद्रों को खेल में हराने से से अधिक आनन्ददायक था...

      भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी खेल के मामले में ऑस्ट्रेलिया से कमजोर पड़ जाते हैं इसके अनेक कारण हैं। मानसिकता के स्तर पर भी बहुत अंतर है। भारतीय खिलाड़ियों की हार हमें दुखी तो करती ही है। पर इन बर्बरों को उन्ही की भाषा में उत्तर देना कभी बुरा नहीं लगता। कोहली और सिराज जो कर रहे हैं, उसमें कुछ बुरा नहीं। दर्जनों के सामने सज्जनता बघारना बकलोली होती है दोस्त...

      हां टीम इंडिया के खराब खेल के लिए आलोचना होती रहे। इससे कोई दिक्कत नहीं

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काग के भाग बड़े सजनी

  पितृपक्ष में रसखान रोते हुए मिले। सजनी ने पूछा -‘क्यों रोते हो हे कवि!’ कवि ने कहा:‘ सजनी पितृ पक्ष लग गया है। एक बेसहारा चैनल ने पितृ पक्ष में कौवे की सराहना करते हुए एक पद की पंक्ति गलत सलत उठायी है कि कागा के भाग बड़े, कृश्न के हाथ से रोटी ले गया।’ सजनी ने हंसकर कहा-‘ यह तो तुम्हारी ही कविता का अंश है। जरा तोड़मरोड़कर प्रस्तुत किया है बस। तुम्हें खुश होना चाहिए । तुम तो रो रहे हो।’ कवि ने एक हिचकी लेकर कहा-‘ रोने की ही बात है ,हे सजनी! तोड़मोड़कर पेश करते तो उतनी बुरी बात नहीं है। कहते हैं यह कविता सूरदास ने लिखी है। एक कवि को अपनी कविता दूसरे के नाम से लगी देखकर रोना नहीं आएगा ? इन दिनों बाबरी-रामभूमि की संवेदनशीलता चल रही है। तो क्या जानबूझकर रसखान को खान मानकर वल्लभी सूरदास का नाम लगा दिया है। मनसे की तर्ज पर..?’ खिलखिलाकर हंस पड़ी सजनी-‘ भारतीय राजनीति की मार मध्यकाल तक चली गई कविराज ?’ फिर उसने अपने आंचल से कवि रसखान की आंखों से आंसू पोंछे और ढांढस बंधाने लगी।  दृष्य में अंतरंगता को बढ़ते देख मैं एक शरीफ आदमी की तरह आगे बढ़ गया। मेरे साथ रसखान का कौवा भी कांव कांव करता चला आ...

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