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MSD The Disaster

 महेंद्र सिंह धोनी ने छुपने के लिए वो जगह चुनी, जिस पर करोड़ों आँखें लगी हुई थीं! वो जीज़ज़ की इस बात को भूल गए कि "पहाड़ पर जो शहर बना है, वह छुप नहीं सकता!" ठीक उसी तरह, आप आईपीएल में भी छुप नहीं सकते। कम से कम धोनी होकर तो नहीं। अपने जीवन और क्रिकेट में हर क़दम सूझबूझ से उठाने वाले धोनी ने सोचा होगा, एक और आईपीएल खेलकर देखते हैं। यहाँ वे चूक गए। क्योंकि 20 ओवर विकेट कीपिंग करने के बाद उनके बूढ़े घुटनों के लिए आदर्श स्थिति यही रह गई है कि उन्हें बल्लेबाज़ी करने का मौक़ा ही न मिले, ऊपरी क्रम के बल्लेबाज़ ही काम पूरा कर दें। बल्लेबाज़ी का मौक़ा मिले भी तो ज़्यादा रनों या ओवरों के लिए नहीं। लेकिन अगर ऊपरी क्रम में विकेटों की झड़ी लग जाए और रनों का अम्बार सामने हो, तब क्या होगा- इसका अनुमान लगाने से वो चूक गए। खेल के सूत्र उनके हाथों से छूट गए हैं। यह स्थिति आज से नहीं है, पिछले कई वर्षों से यह दृश्य दिखाई दे रहा है। ऐसा मालूम होता है, जैसे धोनी के भीतर अब खेलने की इच्छा ही शेष नहीं रही। फिर वो क्यों खेल रहे हैं? उनके धुर-प्रशंसक समय को थाम लेना चाहते हैं। वे नश्वरता के विरुद्ध...

Controversy over Indian Cricket Team's Aggressive Behaviour



 ऑस्ट्रेलिया में चल रही टेस्ट सीरीज में भारतीय खिलाड़ियों के आक्रामक व्यवहार को लेकर बहुत चर्चा हो रही है। ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को धक्का देना, उनपर व्यंग्य करना, उन्हें ट्रोल करना... पहली नजर में यह बुरा तो लगता ही है। अपने यहाँ के लोग भी भारतीय खिलाड़ियों की असभ्यता की आलोचना कर रहे हैं।

    मुझे लगता है जिन लोगों ने नब्बे के दशक तक ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों का व्यवहार देखा हो, उन्हें भारतीय खिलाड़ियों का व्यवहार बुरा नहीं लगेगा। सौरभ गांगुली के कप्तान बनने से पहले भारतीय खिलाड़ियों के साथ कैसा व्यवहार होता रहा है, वह हमें खूब याद है।

     एक बार वेस्टइंडीज के गैरी सोबर्स(या शायद विवियन रिचर्ड्स) ने कहा था- "हम भारत में खेलने कहाँ आते हैं, हम तो केवल इसलिए आते हैं कि यहाँ की लड़कियां सुन्दर हैं।" आप समझ रहे हैं यह कितना अपमानजनक बयान है? भारतीय खिलाड़ियों ने लम्बे समय तक ऐसा तिरस्कार और अपमानजनक बर्ताव झेला है।

     क्रिकेट इतिहास में सर्वाधिक अभद्रता ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों ने दिखाई है, और सबसे अधिक भारतीय खिलाड़ियों के विरुद्ध... खिलाड़ी क्या, अंपायर तक भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार करते रहे हैं।

     सचिन तेंदुलकर जैसे सौम्य व्यक्ति को माइकल क्लार्क कोहनी मार कर गिरा चुके हैं। एंड्रयू साइमंड ने किस तरह भारतीय खिलाड़ियों के साथ दर्जनों बार बदतमीजी की है, यह भी हम सब ने देखा है। रिकी पोंटिंग ने आईसीसी के अध्यक्ष रहे शरद पवार तक को धक्का मारा है, वह भी भारत में। कप्तान रहते समय पोंटिंग कैसे हरभजन से उलझे थे, यह भी याद है।

     राहुल द्रविड़ जैसे शांत खिलाड़ी को भी बार बार अपमानित किया है ऑस्ट्रेलिया वालों ने। दरअसल भारत के खिलाफ मैच में उतरने से पहले ही वे तय कर लेते थे कि इन्हें पहले ही बैकफुट पर ला देना है। और वे लम्बे समय तक इसमें सफल भी रहे थे।

      दो हजार के बाद जन्में युवक समझ ही नहीं पाएंगे कि जब पहली बार गांगुली ने ऑस्ट्रेलिया वालों को उन्ही की भाषा में उत्तर देना शुरू किया तो भारत के दर्शकों को कितनी प्रसन्नता हुई थी। वह ऐतिहासिक दिन था जब गांगुली के बल पर पन्द्रह साल के पार्थिव पटेल ने स्टीव वा को चिढ़ाया था। भारतीय क्रिकेट की दशा वास्तव में उस दिन बदली थी। जी हाँ, यब उन अभद्रों को खेल में हराने से से अधिक आनन्ददायक था...

      भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी खेल के मामले में ऑस्ट्रेलिया से कमजोर पड़ जाते हैं इसके अनेक कारण हैं। मानसिकता के स्तर पर भी बहुत अंतर है। भारतीय खिलाड़ियों की हार हमें दुखी तो करती ही है। पर इन बर्बरों को उन्ही की भाषा में उत्तर देना कभी बुरा नहीं लगता। कोहली और सिराज जो कर रहे हैं, उसमें कुछ बुरा नहीं। दर्जनों के सामने सज्जनता बघारना बकलोली होती है दोस्त...

      हां टीम इंडिया के खराब खेल के लिए आलोचना होती रहे। इससे कोई दिक्कत नहीं

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