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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

 चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...

Vivek Pangani's love story



 सालों पहले एक फिल्म आई थी बर्फ़ी.. रनबीर कपूर अभिनीत इस फिल्म में कईं सम्मोहित कर देने वाले दृश्य थे.. फिल्म की सिनेमेटोग्राफ़ी भी उल्लेखनीय थी.. फिल्म में एक दृश्य है जो मेरे मन में बार बार उभरता है, जिसे  रनबीर के अलावा तीन अलग अलग किरदारों के साथ पिक्चराइज़ किया गया था.. यह दृश्य किसी के प्रति प्रेम, निष्ठा और विश्वास को जाँचने के लिए किया गया एक किस्म का लिटमस टेस्ट है.. प्रोटेगनिस्ट बर्फ़ी यह जानना चाहता है कि क्या संसार में कोई ऐसा भी है जिसका मन उसके लिए निश्छल और निस्वार्थ प्रेम से भरा हुआ है.. यह जानने के लिए वह सबसे पहले अपने दोस्त का हाथ पकड़कर एक लकड़ी के बने लैम्प पोस्ट के नीचे खड़ा हो जाता है.. बर्फ़ी उस चरमराती हुई लकड़ी के बने लैम्प पोस्ट के कभी भी गिर जाने की बात से अनजान नहीं.. बस वह यह देखना चाहता है कि उसका दोस्त मुसीबत की घड़ी में उसका हाथ छोड़कर भाग तो नहीं जाता.. और यही होता है.. लैम्प पोस्ट के नीचे गिरने से पहले ही उसका वह दोस्त अपना हाथ छुड़वा कर पीछे हट जाता है.. फिल्म आगे बढ़ती है, दूसरी बार उसी फ्रेम में बर्फ़ी के साथ वह लड़की खड़ी है जिसे वह चाहता है.. लकड़ी के चरमराने भर की आवाज़ सुनकर वह भी बर्फ़ी का हाथ छोड़ पीछे हट जाती है.. फिल्म और आगे बढ़ती है.. इस बार बर्फ़ी का हाथ एक निष्पाप व अबोध लड़की ने पकड़ा हुआ है, जो संसार के सभी प्रपंचों से अंजान है, जो केवल और केवल विश्वास करना जानती है, यह जाने बिना कि उसका यह विश्वास उसके लिए किसी असाध्य पीड़ा का ‌कारण भी बन सकता है.. इस बार फ्रेम में बर्फ़ी का हाथ झिलमिल ने पकड़ा हुआ है.. लैम्प पोस्ट गिरने को है.. पर झिलमिल की नज़र केवल बर्फ़ी पर है.. लैम्प पोस्ट‌ गिरता है, उस पर लगे बल्ब का काँच चूर चूर हो कर ज़मीन पर बिखर जाता है, पर झिलमिल और बर्फ़ी एक दूसरे का हाथ पकड़े वहीं जस के तस खड़े हैं.. बर्फ़ी को जिस सच्चे प्रेम की तलाश थी वह पूरी होती है.. अंततः प्रेम व अकपट की जय होती है.. 


विवेक पंगेनी की बीमारी के दौरान उनकी और श्रीजना की विडियो देखते हुए बार बार मुझे बर्फ़ी और झिलमिल की याद आती रही.. यहाँ विवेक के लगातार गिरते हुए स्वास्थ्य को लकड़ी के उस चरमराते हुए लैम्प पोस्ट की तरह समझा जा सकता है जो कभी भी गिर सकता था, पर श्रीजना ने कसकर उनका हाथ पकड़े रखा, ज़रा भी पीछे न हटीं.. वे झिलमिल की तरह अबोध नहीं थीं, परिणति जानतीं थीं.. किंतु विवेक के प्रति उनका समर्पण अद्भुत रहा.. जीवन के अंतिम क्षण तक उन्होंने विवेक के हाथ को थामे रखा.. पर किसी ने ठीक ही कहा है, संसार की सबसे सुन्दर प्रेम कहानियाँ सदा अपूर्ण रह जाती हैं.. :(

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The Story of Yashaswi Jaiswal

जिस 21 वर्षीय यशस्वी जयसवाल ने ताबड़तोड़ 98* रन बनाकर कोलकाता को IPL से बाहर कर दिया, उनका बचपन आंसुओं और संघर्षों से भरा था। यशस्‍वी जयसवाल मूलरूप से उत्‍तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। वह IPL 2023 के 12 मुकाबलों में 575 रन बना चुके हैं और ऑरेंज कैप कब्जाने से सिर्फ 2 रन दूर हैं। यशस्वी का परिवार काफी गरीब था। पिता छोटी सी दुकान चलाते थे। ऐसे में अपने सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ 10 साल की उम्र में यशस्वी मुंबई चले आए। मुंबई में यशस्वी के पास रहने की जगह नहीं थी। यहां उनके चाचा का घर तो था, लेकिन इतना बड़ा नहीं कि यशस्वी यहां रह पाते। परेशानी में घिरे यशस्वी को एक डेयरी पर काम के साथ रहने की जगह भी मिल गई। नन्हे यशस्वी के सपनों को मानो पंख लग गए। पर कुछ महीनों बाद ही उनका सामान उठाकर फेंक दिया गया। यशस्वी ने इस बारे में खुद बताया कि मैं कल्बादेवी डेयरी में काम करता था। पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और थोड़ी देर के लिए सो जाता था। एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता। नौकरी तो गई ही, रहने का ठिकान...

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