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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

 चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...

The Justice Verma Incident

 हास्य व्यंग्य : वाह रे न्याय....!!


फायर ब्रिगेड के ऑफिस में हड़कंप मच गया।

आग लगने की सूचना जो मिली थी उन्हें।

आग भी कहां लगी ?

दिल्ली हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीश “फलाने वर्मा” के सरकारी बंगले में..!

घटना की सूचना मिलने पर फायर ब्रिगेड कर्मचारियों के हाथ पांव फूल गए । "माई लॉर्ड" के बंगले में आग !


हे भगवान ! अब क्या होगा ?

एक मिनट की भी अगर देर हो गई तो माई लॉर्ड सूली पर टांग देंगे ! वैसे भी माई लॉर्ड का गुस्सा सरकार और सरकारी कर्मचारियों पर ही उतरता है।

बाकी के आगे तो ये माई लॉर्ड एक रुपए की हैसियत भी नहीं रखते हैं जिसे प्रशांत भूषण जैसे वकील भरी कोर्ट में उछालते रहते हैं। 

बेचारे फायर ब्रिगेड के कर्मचारी एक साथ कई सारी फायर ब्रिगेड लेकर दौड़ पड़े और आनन फानन में आग बुझाने लग गए।

अचानक एक फायर ऑफिसर की नजर सामने रखे नोटों के बंडलों पर पड़ी। वह एक दम से ठिठक गया। उसके हाथ जहां के तहां रुक गए..!!

नोट अभी जले नहीं थे..!!

लेकिन दमकल के पानी से खराब हो सकते थे..

इसलिए उसने फायर ब्रिगेड से पानी छोड़ना बंद कर दिया और दौड़ा दौड़ा अपने बॉस के पास गया... 


"बॉस...!    मेरे साथ आइए"

वह अपने बॉस को नोटों के बंडलों के पास ले आया और दिखाते हुए बोला "इनका क्या करें" ?

बॉस का सिर चकरा गया। इतने सारे नोटों के बंडल एक माननीय न्यायाधीश के घर में कहां से आए ?

इनकी तो तनख्वाह बैंक में जमा होती होगी ना ?

ये जज कोई और "धंधा" कर नहीं सकते..!!

तो फिर ये नोटों के बंडल कहां से आए ?

प्रश्न बहुत गूढ़ था लेकिन जवाब देने की हिम्मत किसी की नहीं थी, क्योंकि नोटों के बंडल हमारी कट्टर से भी कट्टर ईमानदार न्यायपालिका के सबसे ईमानदार न्यायाधीशों के घर से निकल रहे थे..!!

उन्हें देखकर बॉस के भी हाथ पांव फूल गए..

न्यायपालिका से सरकार भी डरती है। 

तो ये बेचारे हैसियत ही क्या रखते हैं ?

उसने अपने बॉस को सूचना दी.. उसके बॉस के भी हाथ पांव फूल गए.. फिर उस बॉस ने भी अपने सबसे बड़े बॉस को सूचना दे दी..

उसने पुलिस को भेज दिया जिससे उन नोटों को सुरक्षित रखा जा सके.. क्या पता कोई मीडिया कर्मी वहां पहुंच कर वीडियो न बना ले और उसे जनता में प्रसारित न कर दे ?

अगर ऐसा हो जाएगा तो हमारी न्यायपालिका की ईमानदारी सार्वजनिक हो जाएगी ना !

ये वही न्यायपालिका है जो कहती हैं कि चुनावी बॉंड से भी लिया गया चंदा पूरी तरह पारदर्शी होना चाहिए..

लेकिन  इस घटना की भनक भी लगने नहीं देती है, ये वही न्यायपालिका है जो इस समाचार को "ब्लैक आउट" करा देती है।

मजाल है जो कोई मीडिया हाउस उस समाचार को प्रसारित कर दे ? आखिर न्यायपालिका और मीडिया दोनों एक दूसरे के लिए ही तो बने हैं..!!

"तू मुझे बचा मैं तुझे बचाऊंगा" का खेल चल रहा है दोनों टीमों में। आजकल लोकतंत्र के ये दोनों खंभे ही तो सबसे "ईमानदार" बने हुए हैं।

बाकी तो कट्टर बेईमान हैं!

"निष्पक्ष मीडिया" कितना निष्पक्ष है , इस घटना से सिद्ध हो गया और न्यायपालिका कितनी साफ सुथरी और ईमानदार है इसकी भी कलई खुल गई। 

जब यह समाचार सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो हमारे सुप्रीम कोर्ट के बड़े से बड़े मी लॉर्ड बहुत गुस्सा हुए...

हमें आज तक यह पता नहीं लगा कि वे गुस्सा किस पर हुए ? आग लगने की घटना पर ! बंगले में मिले नोटों के बंडल पर ! या उन्हें समाचार देने वाले पर !

पर.....

सुप्रीम कोर्ट की दीवारों का रंग लाल सुर्ख हो गया बताया। इससे पता चला कि "मी लॉर्ड" बहुत गुस्से में हैं।

पूरा सुप्रीम कोर्ट गुस्से से धधकने लगा था..!!

न्यायाधीश के बंगले की आग तो बुझा दी गई थी मगर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के क्रोध की आग अभी तक भड़की हुई थी..!!

उन्होंने आनन फानन में "कॉलेजियम" की मीटिंग बुलाई.. "कॉलेजियम" एक ऐसी असंवैधानिक "संस्था" है जिसे तानाशाही के पूर्ण अधिकार हैं...

ये अधिकार संविधान ने नहीं दिए ,

बल्कि इन ईमानदार न्यायाधीशों ने खुद हथिया लिए और ये असंवैधानिक संस्था संसद से पास संवैधानिक कानूनों को रद्दी की टोकरी में फेंक देने की ताकत  रखती है।

तो आपको पता चल गया होगा कि यह "कॉलेजियम" नामक संस्था कितनी संवैधानिक है और कितनी पॉवरफुल है..!!जैसे ही मुख्य न्यायाधीश ने कॉलेजियम की मीटिंग बुलाई तो हम जैसे साधारण से लोगों के दिल जोर जोर से धड़कने लगे..!!

"आज तो जलजला आने वाला है"

ऐसा सोच सोचकर हम लोग थर थर कांपने लगे, क्योंकि देश के पांच सबसे बड़े न्यायाधीश नोटों के बंडलों पर चर्चा कर रहे थे..!

यह भी न्यायपालिका की ईमानदारी है जो उसने आज तक देश को यह पता नहीं लगने दिया कि माननीय न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले से कितने नोट बरामद हुए थे ?

वे खोजी पत्रकार कहां मर गए जो लोगों के बैडरूम में भी तांक झांक करते रहते हैं। उन्हें भी ये नोट दिखाई नहीं दिए ?

कॉलेजियम में उस अनहोनी घटना पर घंटों विचार विमर्श हुआ। अंत में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि जिस जज के घर से नोटों के बंडल निकले थे , उस जज की कोई गलती नहीं है।सारी गलती फायर ब्रिगेड वालों की है। उन्होंने वे नोट देखे ही क्यों ? दूसरे के पैसों पर निगाह डालना डकैती नहीं तो और क्या  है ? तो कॉलेजियम ने निर्णय लिया कि फायर ब्रिगेड के अफसरों को पहले जज साहब से पूछना चाहिए कि वे नोटों को देखें या नहीं ?

यदि देख भी लें तो उन्हें जलने से बचावें या नहीं ? यदि बचा भी लें तो उन्हें अपने बॉस को बतावें या नहीं ! 

कॉलेजियम अब निर्देश तैयार करने में लग गई है कि यदि किसी जज के बंगले में आग लग जाए तो फायर ब्रिगेड क्या क्या प्रोटोकॉल अपनाएगी....

और यदि किसी और के घर में आग लगेगी तो क्या प्रोटोकॉल होगा।

इसके अलावा कॉलेजियम मीडिया के लिए भी दिशा निर्देश तैयार कर रही है कि- जज के घर नोटों के बंडल पाए जाने पर मीडिया में क्या रिपोर्ट जाएगी या कोई समाचार प्रसारित किया जाएगा अथवा नहीं।

जैसा कि इस केस में किया गया है।

और किसी और के घर नोटों के बंडल पाए जाने पर क्या समाचार प्रसारित किए जाएंगे।

हां, न्यायाधीशों के लिए भी कुछ दिशा निर्देश तैयार किए जा रहे हैं। मसलन , नोटों को कहां कहां रखना है ! आग लगने पर क्या क्या करना है।

आदि आदि...!!

इसके अतिरिक्त सरकार के लिए भी कुछ दिशा निर्देश तैयार किए जा रहे हैं 

मसलन , प्रत्येक न्यायाधीश के घर में एक फायर ब्रिगेड हमेशा खड़ी रहेगी। उसके कर्मचारी न्यायाधीश के अंडर में काम करेंगे जिनकी ACR न्यायाधीश ही भरेंगे। इसके अलावा प्रत्येक न्यायाधीश और उसके परिवार वालों को आग बुझाने का प्रशिक्षण सरकार दिलवाएगी।

आदि आदि...!!!

सुना है कि जिन जज साहब के घर से नोटों के बंडल मिले थे उन पर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत "सख्त" कार्यवाही की है।

उन्हें इतना दंडित किया है कि-

उनका स्थानांतरण उसी हाईकोर्ट में कर दिया है जहां से वे दिल्ली हाईकोर्ट में आए थे। यानि उन्हें फिर से इलाहाबाद हाईकोर्ट....अरे जनता के लिए इलाहाबाद का नाम प्रयागराज हो गया है लेकिन माननीयों के लिए तो वह आज भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ही है।तो उन्हें फिर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में भेज दिया है। 

इस ख़तरनाक दंड से पूरी न्यायपालिका थर थर कांप रही है। ऐसा न्याय किया है माननीय कॉलेजियम ने जैसा न तो कभी भूत काल में हुआ है और न कभी भविष्य में होगा।


वाह रे न्याय....!


श्री हरि


नोट : यह पोस्ट अपने रिस्क पर आप शेयर कर सकते हैं मियांलर्ड कही नाराज हो गए तो अवमानना, Contempts of Court और न जाने क्या क्या सजाएं आप पर मुकर्रर कर सकते है, पोस्ट सिर्फ मनोरंजन के उद्देश्य से लिखा गया है इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है।यदि इस लेख से मिलता जुलता कोई घटना होता है तो उसे संयोग मात्र समझा जाए। एक बात और नालायक आग को अगर लगना था तो 24, अकबर रोड या 10 जनपथ में भी लग सकती थी जहां नोटों के गोडाउन मिलते लेकिन न जाने मुई को क्या सुझी मिलार्ड के घर पर लाग गई।😃😁🤪😂🤣😉😅😜

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