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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

 चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...

MSD The Disaster

 महेंद्र सिंह धोनी ने छुपने के लिए वो जगह चुनी, जिस पर करोड़ों आँखें लगी हुई थीं! वो जीज़ज़ की इस बात को भूल गए कि "पहाड़ पर जो शहर बना है, वह छुप नहीं सकता!" ठीक उसी तरह, आप आईपीएल में भी छुप नहीं सकते। कम से कम धोनी होकर तो नहीं।


अपने जीवन और क्रिकेट में हर क़दम सूझबूझ से उठाने वाले धोनी ने सोचा होगा, एक और आईपीएल खेलकर देखते हैं। यहाँ वे चूक गए। क्योंकि 20 ओवर विकेट कीपिंग करने के बाद उनके बूढ़े घुटनों के लिए आदर्श स्थिति यही रह गई है कि उन्हें बल्लेबाज़ी करने का मौक़ा ही न मिले, ऊपरी क्रम के बल्लेबाज़ ही काम पूरा कर दें। बल्लेबाज़ी का मौक़ा मिले भी तो ज़्यादा रनों या ओवरों के लिए नहीं। लेकिन अगर ऊपरी क्रम में विकेटों की झड़ी लग जाए और रनों का अम्बार सामने हो, तब क्या होगा- इसका अनुमान लगाने से वो चूक गए। खेल के सूत्र उनके हाथों से छूट गए हैं।


यह स्थिति आज से नहीं है, पिछले कई वर्षों से यह दृश्य दिखाई दे रहा है। ऐसा मालूम होता है, जैसे धोनी के भीतर अब खेलने की इच्छा ही शेष नहीं रही। फिर वो क्यों खेल रहे हैं? उनके धुर-प्रशंसक समय को थाम लेना चाहते हैं। वे नश्वरता के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं। वे ख़ुद को उस दिन के लिए तैयार नहीं करना चाहते, जब धोनी खेल को अलविदा कह देंगे और फिर कभी मैदान पर नज़र नहीं आएँगे। वे चाहते हैं कि धोनी की विदावेला लम्बी खिंचती चली जाए। धोनी उनके इस आग्रह से स्तम्भित हो गए हैं। चेपॉक स्टेडियम में पीली जर्सियों के समुद्र के द्वारा उन्हें ईश्वर की तरह पूजा जाता है और धोनी कदाचित् इससे मुक्त नहीं होना चाहते। नतीजतन, उनकी अपेक्षित विदाई अब एक सुदीर्घ प्रहसन बनती जा रही है।


देखें, तो वे भारतीय क्रिकेट की जीवित किंवदंती हैं। वो सचिन-सौरव-राहुल की होली ट्रिनिटी के साथ खेले हैं। उनके हमउम्र खिलाड़ी कबके रिटायर होकर सूर्यास्त की खोह में बिला चुके- युवराज, सहवाग, गम्भीर, इरफ़ान, यूसुफ़। उनके बाद आए कोहली और रोहित भी- जिनको उन्होंने अपनी कप्तानी में निरंतर अवसर देकर निखारा- अब कॅरियर की सन्ध्यावेला में हैं। और धोनी अब भी खेल रहे हैं। ये वो ही धोनी हैं, जिन्होंने कभी फिटनेस के आधार पर मूर्धन्यों को टीम से निकाल बाहर कर दिया था। अब वे स्वयं उम्र के उसी दौर में हैं। इतिहास उन पर दोहरा गया है। वे अपने शिखर के दिनों में अदम्य और अपराजेय मालूम होते थे, किन्तु अब दयनीय लगते हैं। समय उनके भीतर से होकर गुज़र गया है और उन्हें खंख कर गया है। समय ऐसा सबके साथ करता है। और अगर वो यह धोनी के साथ कर सकता है, तो हम-आप क्या हैं?


महान सचिन तेंदुलकर की विदाई के लिए बाक़ायदा एक टेस्ट शृंखला आयोजित की गई थी। वह शृंखला प्रतिस्पर्धात्मक नहीं थी। मानो, सचिन को 'गार्ड ऑफ़ ऑनर' देने की ग़रज़ से कैरेबियाई द्वीप-समूह से कुछ अभिनेताओं को बुलाया गया हो। किन्तु चाहे जो हो, सचिन सम्मान से गए और अपने अंतिम मैच में लय से खेले। सौरव गांगुली ने टीम से बाहर होने के बाद वापसी की और धोनी ने उन्हें अपने अंतिम मैच में चंद मिनटों की कप्तानी करने के लिए मना लिया। राहुल, लक्ष्मण, कुम्बले को विदाई-समारोह नसीब नहीं हुआ। सहवाग, गम्भीर को भी नहीं। 


यह धोनी को नसीब हो सकता है, बशर्ते वे इसी आईपीएल के दौरान संन्यास की घोषणा कर दें और यह उम्मीद करें कि उनके कारण उनकी टीम को आगे ज़्यादा नुक़सान नहीं होगा। तब उनके प्रशंसक भी सोच सकते हैं कि अपने नायक की विदाई के लिए आईपीएल का एक सीज़न क़ुर्बान करने में हर्ज़ नहीं। यक़ीन मानिये, धोनी ने चेन्नई सुपरकिंग्स को बहुत कुछ दिया है। वो इस तरह से दक्षिण की इस फ्रैंचाइज़ी के आइकन हैं, जैसे कोई और खिलाड़ी किसी अन्य क्लब का नहीं हो सकता। उन्होंने महानायकों की तरह इस टीम के लिए अतीत में विलक्षण प्रदर्शन किया है, भारत की राष्ट्रीय टीम के लिए तो किया ही है।


आज जब धोनी अपने बल्लेबाज़ी क्रम को लगातार नीचे धकेलते रहते हैं तो विश्वास नहीं होता कि ये वही महेंद्र सिंह हैं, जो एक ज़माने में खेलने के लिए तरसते थे। वो रेलवे में टिकट चेकर का काम करते थे और क्रिकेट खेलने के लिए कुछ भी कर गुज़रने को तैयार रहते थे। अंतत: उन्हें अवसर मिला और यह उनका सौभाग्य था कि उनके कप्तान सौरव गांगुली ने उन्हें तीसरे क्रम पर बैटिंग करने के लिए भेजा। साल 2005 के उस मैच में उन्होंने 148 रन कूट दिए और फिर पीछे लौटकर नहीं देखा। उनके लम्बे बालों, देशी चेहरे-मोहरे और रैम्बोनुमा क़दकाठी पर देश फिदा हो गया। उन्होंने कई यादगार पारियाँ ऊपरी क्रम पर आकर खेलीं, जिनमें 2011 की विश्वविजयी पारी भी थी। वही धोनी आज बैटिंग करने से कतराते हैं, ख़ुद को छुपाते हैं, नौवें क्रम पर आते हैं, यह कैसी विडम्बना है।


महेंद्र सिंह धोनी ने असंख्य पारियाँ क़रीने से फिनिश की और अपनी टीम को जीत के समुद्रतट पर ले गए, लेकिन अपने कॅरियर को किस बिंदु पर 'फिनिश' करना है, यह तय करने में मात खा गए। यही जीवन है। यही नियति भी है!

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