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Waqt aur Samose

 .. जब समोसा 50 पैसे का लिया करता था तो ग़ज़ब स्वाद होता था... आज समोसा 10 रुपए का हो गया, पर उसमे से स्वाद चला गया... अब शायद समोसे में कभी वो स्वाद नही मिल पाएगा.. बाहर के किसी भोजन में अब पहले जैसा स्वाद नही, क़्वालिटी नही, शुद्धता नही.. दुकानों में बड़े परातों में तमाम खाने का सामान पड़ा रहता है, पर वो बेस्वाद होता है..  पहले कोई एकाध समोसे वाला फेमस होता था तो वो अपनी समोसे बनाने की गुप्त विधा को औऱ उन्नत बनाने का प्रयास करता था...  बड़े प्यार से समोसे खिलाता, औऱ कहता कि खाकर देखिए, ऐसे और कहीं न मिलेंगे !.. उसे अपने समोसों से प्यार होता.. वो समोसे नही, उसकी कलाकृति थे.. जिनकी प्रसंशा वो खाने वालों के मुंह से सुनना चाहता था,  औऱ इसीलिए वो समोसे दिल से बनाता था, मन लगाकर... समोसे बनाते समय ये न सोंचता कि शाम तक इससे इत्ते पैसे की बिक्री हो जाएगी... वो सोंचता कि आज कितने लोग ये समोसे खाकर वाह कर उठेंगे... इस प्रकार बनाने से उसमे स्नेह-मिश्रण होता था, इसीलिए समोसे स्वादिष्ट बनते थे... प्रेमपूर्वक बनाए और यूँ ही बनाकर सामने डाल दिये गए भोजन में फर्क पता चल जाता है, ...

इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति| The Glorious Revolution

इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति| The Glorious Revolution

English Revolution
The Glorious Revolution

गौरवपूर्ण क्रांति, जिसे प्रायः 1688 का अंग्रेजी पुनर्जागरण भी कहते हैं। इसे रक्तहीन क्रांति भी कहा जाता है। इंग्लैंड में 1688 से लेकर 16 से 89 के बीच हुई थी। इस क्रांति का प्रमुख कार्य ब्रिटेन के कैथोलिक राजा जेम्स द्वितीय को उनकी प्रोटेस्टेंट बेटी मेरी और उसके पति विलियम ऑफ़ ऑरेंज जो कि डच थे के द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना है।
किसी भी क्रांति की तरह इस क्रांति ने भी वर्षों पुरानी चली आ रही राजशाही, राजा के अधिकारों, एवं राजसत्ता पर सीधा प्रभाव डाला। संवैधानिक संसद की स्थापना एवं उसका क्रियान्वयन इस क्रांति का प्रमुख योगदान है।
राजा की निरंकुशता पर लगाम लगाने के लिए इंग्लैंड में सबसे पहला प्रयास 1215 ईस्वी में किया गया था। तब ब्रिटेन के सामंत लोगों ने आपस में मिलकर तात्कालिक राजा को टैक्स में मनचाही वृद्धि करने से रोक लगाने के लिए मैग्नाकार्टा लाया था। मैग्ना कार्टा को किसी भी देश की प्रथम संविधान का एक ड्राफ्ट कहा जा सकता है।

  • इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति : पृष्ठभूमि

1685 में इंग्लैंड के राज सिंहासन पर जेम्स द्वितीय विराजे। यह वह समय था जब क्रिश्चियनिटी में कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट के बीच भारी तनाव चल रहा था। और इसी समय में ही राज सिंहासन और ब्रिटिश पार्लियामेंट के साथ थोड़ी बहुत खींचातान भी चल रही थी। राजा जेम्स जो स्वयं कैथोलिक विचारधारा से प्रभावित थे उन्होंने अपने राज्य में कैथोलिक लोगों को पूजा करने की पूर्ण आजादी दे दी और सेना के प्रमुख पदों पर कैथोलिक अफसरों को नियुक्त कर दिया। इंग्लैंड जो कि एक प्रोटेस्टेंट बहुल राज्य था। इस बात से नाराज हो गया और राजा के इन निर्णयों का विरोध करने लगा। लेकिन यह विरोध प्रदर्शन कभी हिंसक और बढ़ाना हो सका क्योंकि जेम्स द्वितीय की कोई भी संतान पुत्र नहीं था.
King James II
King James II

उनकी जितनी भी लड़कियां थी वह सभी प्रोटेस्टेंट थी एवं उनके पति भी प्रोटेस्टेंट थे। इसीलिए इंग्लैंड वासी ये सोच रहे थे कि आज नहीं तो कल जेम्स द्वितीय की मृत्यु के बाद कोई ना कोई राजा प्रोटेस्टेंट धर्म को मानने वाला ही बनेगा। लेकिन कहानी में ट्विस्ट तो 1688 में आया जब जेम्स द्वितीय की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। और बेटे के जन्म से प्रसन्न राजा ने ये घोषणा कर दी कि मेरा बेटा कैथोलिक होगा और आगे चलकर वही राजा बनेगा। इस घोषणा के बाद इंग्लैंड में भारी विरोध हुआ और हिंसक घटनाएं होने लगी। इंग्लैंड की संसद भी राजा के इस निर्णय से खुश नहीं थी। इसीलिए राजा जेम्स द्वितीय ने कार्यरत संसद को भंग करने की एवं उसकी जगह अपने द्वारा गठित की गई संसद बनाने का प्रयास किया, जो राजा के हर निर्णय को सही साबित करें और राजा निरंकुश बन जाए। लेकिन राजा के इस प्रयास ने इंग्लैंड में बढने वाले उपद्रव को अधिक गहरा और तेज कर दिया।
राजा के बेटे जिसका नाम जेम्स फ्रांसिस एडवर्ड स्टुअर्ट रखा गया था, के जन्म से पहले इंग्लैंड की गद्दी का वारिस जेम्स द्वितीय की बड़ी बेटी मेरी थी। जो कि एक प्रोटेस्टेंट भी थी। लेकिन बेटे के जन्म ने ना केवल मेरी से उसकी राजगद्दी का सपना भी छीन लिया, बल्कि ब्रिटेन के लोगों को कैथोलिक राजा होने का डर भी लगा दिया। जेम्स के बेटे के जन्म ने राजशाही की सत्ता को हमेशा के लिए बदल के रख दिया। क्योंकि पुत्र के रहते पुत्री कभी सिंहासन की वारिस नहीं बन सकती। प्रोटेस्टेंट लोगों को यह डर सताने लगा कि अब शायद कैथोलिक राजा हमेशा के लिए हम पर शासन करेंगे। जिसकी वजह से इंग्लैंड में जगह-जगह कैथोलिक उत्तराधिकारी का विरोध होने लगा और प्रोटेस्टेंट समर्थक गुट सिर उठाने लगे।

  • इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति : क्रांति का आगाज़

नए राजकुमार के जन्म से नाखुश जेम्स द्वितीय के सात राजाओं ने नीदरलैंड के शासक विलियम ऑफ़ ऑरेंज जो जेम्स द्वितीय की पुत्री मेरी के पति भी थे, को इंग्लैंड पर आक्रमण करने के लिए 1688 में आमंत्रित किया।
Wiliam of Orange and Mery
Wiliam of Orange and Mery

William of Orange इंग्लैंड पर आक्रमण करने की अपनी नियत बना चुके थे। लेकिन इंग्लैंड की तरफ से मिले समर्थन में उनका काम बहुत आसान कर दिया। जब यह समाचार जेम्स द्वितीय को पता चला तो उन्होंने अपनी सेना को इकट्ठा तो किया लेकिन मैं मन ही मन हार मान चुके थे। जब उन्होंने विलियम ऑफ ऑरेंज की सेना को युद्ध करने के उद्देश्य से इंग्लैंड में घुसता पाया तो वे अपनी जान बचाने के उद्देश्य से फ्रांस भाग गए। फ्रांस एक कैथोलिक राष्ट्र था। लेकिन जेम्स द्वितीय के फ्रांस तक पहुंचने का यह सफर इतना आसान भी नहीं रहा। राज परिवार के कुछ सदस्य अंतिम समय में पाला बदलकर नीदरलैंड के शासक के साथ हो गए। यह देखकर जेम्स द्वितीय का दिल टूट गया और उनकी तबीयत पहले से ज्यादा खराब रहने लगी। फ्रांस में उस समय जेम्स द्वितीय के चचेरे भाई लुईस 14वें का शासन था। अपना राज्य एवं अपने परिवार को इस प्रकार जाता देख जेम्स द्वितीय की 1701 में फ्रांस में ही मृत्यु हो गई।  और जब राजा इंग्लैंड छोड़कर भाग गए तो अपने आप ही नीदरलैंड का शासक जीत गया।
इस प्रकार बिना एक भी खून की बूंद बहाए बिना इंग्लैंड में सत्ता परिवर्तन हो चुका था। इंग्लैंड की क्रांति को गौरवपूर्ण क्रांति इसीलिए कहते हैं क्योंकि यहां पर किसी की भी जान नहीं गई।
इधर इंग्लैंड में विलियम ऑफ़ ऑरेंज युद्ध जीत चुके थे, लेकिन सत्ता अब संसद ने हथिया ली थी। संसद ने युद्ध को बढ़ावा देते समय साफ कहा था कि यदि आप युद्ध जीत गए तो आप केवल नाम के राजा बनेंगे। असली शक्ति संसद के पास रहेगी। जिसे विलियम ऑफ ऑरेंज ने स्वीकार कर लिया था।

  • इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति : क्रांति के बाद

इंग्लैंड की संसद, राजा की निरंकुशता से परेशान तो थी ही। साथ ही साथ वह देशवासियों के साथ हो रहे अत्याचार के प्रति दयालु भी थी। इसीलिए 1689 में जब ब्रिटेन में सत्ता का तख्तापलट हुआ और सत्ता संसद के हाथों में आई तो संसद ने आम नागरिक को सुरक्षा एवं स्वतंत्रता प्रदान करते हुए कुछ अधिकार प्रदान किए। जिन्हें इंग्लैंड वासी बहुत समय से राजा से मांगते आ रहे थे हिंदू राजा ने उनकी एक न सुनी थी। इंग्लैंड की संसद ने अपने आम नागरिकों को जो अधिकार प्रदान किए उन्हें Bill Of Rights कहा गया। यह बिल ऑफ राइट्स बाद में पूरी दुनिया में लोकतंत्र एवं दवे कुछ लोगों को अधिकार प्रदान करने के लिए एक मानक इकाई बन गया। अमेरिका, फ्रांस, और भारत में भी Bill Of Rights का उपयोग किया जाता है, जो यहां की संविधान ने यहां के निवासियों को प्रदान किए हैं। 

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