सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

MSD The Disaster

 महेंद्र सिंह धोनी ने छुपने के लिए वो जगह चुनी, जिस पर करोड़ों आँखें लगी हुई थीं! वो जीज़ज़ की इस बात को भूल गए कि "पहाड़ पर जो शहर बना है, वह छुप नहीं सकता!" ठीक उसी तरह, आप आईपीएल में भी छुप नहीं सकते। कम से कम धोनी होकर तो नहीं। अपने जीवन और क्रिकेट में हर क़दम सूझबूझ से उठाने वाले धोनी ने सोचा होगा, एक और आईपीएल खेलकर देखते हैं। यहाँ वे चूक गए। क्योंकि 20 ओवर विकेट कीपिंग करने के बाद उनके बूढ़े घुटनों के लिए आदर्श स्थिति यही रह गई है कि उन्हें बल्लेबाज़ी करने का मौक़ा ही न मिले, ऊपरी क्रम के बल्लेबाज़ ही काम पूरा कर दें। बल्लेबाज़ी का मौक़ा मिले भी तो ज़्यादा रनों या ओवरों के लिए नहीं। लेकिन अगर ऊपरी क्रम में विकेटों की झड़ी लग जाए और रनों का अम्बार सामने हो, तब क्या होगा- इसका अनुमान लगाने से वो चूक गए। खेल के सूत्र उनके हाथों से छूट गए हैं। यह स्थिति आज से नहीं है, पिछले कई वर्षों से यह दृश्य दिखाई दे रहा है। ऐसा मालूम होता है, जैसे धोनी के भीतर अब खेलने की इच्छा ही शेष नहीं रही। फिर वो क्यों खेल रहे हैं? उनके धुर-प्रशंसक समय को थाम लेना चाहते हैं। वे नश्वरता के विरुद्ध...

इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति| The Glorious Revolution

इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति| The Glorious Revolution

English Revolution
The Glorious Revolution

गौरवपूर्ण क्रांति, जिसे प्रायः 1688 का अंग्रेजी पुनर्जागरण भी कहते हैं। इसे रक्तहीन क्रांति भी कहा जाता है। इंग्लैंड में 1688 से लेकर 16 से 89 के बीच हुई थी। इस क्रांति का प्रमुख कार्य ब्रिटेन के कैथोलिक राजा जेम्स द्वितीय को उनकी प्रोटेस्टेंट बेटी मेरी और उसके पति विलियम ऑफ़ ऑरेंज जो कि डच थे के द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना है।
किसी भी क्रांति की तरह इस क्रांति ने भी वर्षों पुरानी चली आ रही राजशाही, राजा के अधिकारों, एवं राजसत्ता पर सीधा प्रभाव डाला। संवैधानिक संसद की स्थापना एवं उसका क्रियान्वयन इस क्रांति का प्रमुख योगदान है।
राजा की निरंकुशता पर लगाम लगाने के लिए इंग्लैंड में सबसे पहला प्रयास 1215 ईस्वी में किया गया था। तब ब्रिटेन के सामंत लोगों ने आपस में मिलकर तात्कालिक राजा को टैक्स में मनचाही वृद्धि करने से रोक लगाने के लिए मैग्नाकार्टा लाया था। मैग्ना कार्टा को किसी भी देश की प्रथम संविधान का एक ड्राफ्ट कहा जा सकता है।

  • इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति : पृष्ठभूमि

1685 में इंग्लैंड के राज सिंहासन पर जेम्स द्वितीय विराजे। यह वह समय था जब क्रिश्चियनिटी में कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट के बीच भारी तनाव चल रहा था। और इसी समय में ही राज सिंहासन और ब्रिटिश पार्लियामेंट के साथ थोड़ी बहुत खींचातान भी चल रही थी। राजा जेम्स जो स्वयं कैथोलिक विचारधारा से प्रभावित थे उन्होंने अपने राज्य में कैथोलिक लोगों को पूजा करने की पूर्ण आजादी दे दी और सेना के प्रमुख पदों पर कैथोलिक अफसरों को नियुक्त कर दिया। इंग्लैंड जो कि एक प्रोटेस्टेंट बहुल राज्य था। इस बात से नाराज हो गया और राजा के इन निर्णयों का विरोध करने लगा। लेकिन यह विरोध प्रदर्शन कभी हिंसक और बढ़ाना हो सका क्योंकि जेम्स द्वितीय की कोई भी संतान पुत्र नहीं था.
King James II
King James II

उनकी जितनी भी लड़कियां थी वह सभी प्रोटेस्टेंट थी एवं उनके पति भी प्रोटेस्टेंट थे। इसीलिए इंग्लैंड वासी ये सोच रहे थे कि आज नहीं तो कल जेम्स द्वितीय की मृत्यु के बाद कोई ना कोई राजा प्रोटेस्टेंट धर्म को मानने वाला ही बनेगा। लेकिन कहानी में ट्विस्ट तो 1688 में आया जब जेम्स द्वितीय की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। और बेटे के जन्म से प्रसन्न राजा ने ये घोषणा कर दी कि मेरा बेटा कैथोलिक होगा और आगे चलकर वही राजा बनेगा। इस घोषणा के बाद इंग्लैंड में भारी विरोध हुआ और हिंसक घटनाएं होने लगी। इंग्लैंड की संसद भी राजा के इस निर्णय से खुश नहीं थी। इसीलिए राजा जेम्स द्वितीय ने कार्यरत संसद को भंग करने की एवं उसकी जगह अपने द्वारा गठित की गई संसद बनाने का प्रयास किया, जो राजा के हर निर्णय को सही साबित करें और राजा निरंकुश बन जाए। लेकिन राजा के इस प्रयास ने इंग्लैंड में बढने वाले उपद्रव को अधिक गहरा और तेज कर दिया।
राजा के बेटे जिसका नाम जेम्स फ्रांसिस एडवर्ड स्टुअर्ट रखा गया था, के जन्म से पहले इंग्लैंड की गद्दी का वारिस जेम्स द्वितीय की बड़ी बेटी मेरी थी। जो कि एक प्रोटेस्टेंट भी थी। लेकिन बेटे के जन्म ने ना केवल मेरी से उसकी राजगद्दी का सपना भी छीन लिया, बल्कि ब्रिटेन के लोगों को कैथोलिक राजा होने का डर भी लगा दिया। जेम्स के बेटे के जन्म ने राजशाही की सत्ता को हमेशा के लिए बदल के रख दिया। क्योंकि पुत्र के रहते पुत्री कभी सिंहासन की वारिस नहीं बन सकती। प्रोटेस्टेंट लोगों को यह डर सताने लगा कि अब शायद कैथोलिक राजा हमेशा के लिए हम पर शासन करेंगे। जिसकी वजह से इंग्लैंड में जगह-जगह कैथोलिक उत्तराधिकारी का विरोध होने लगा और प्रोटेस्टेंट समर्थक गुट सिर उठाने लगे।

  • इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति : क्रांति का आगाज़

नए राजकुमार के जन्म से नाखुश जेम्स द्वितीय के सात राजाओं ने नीदरलैंड के शासक विलियम ऑफ़ ऑरेंज जो जेम्स द्वितीय की पुत्री मेरी के पति भी थे, को इंग्लैंड पर आक्रमण करने के लिए 1688 में आमंत्रित किया।
Wiliam of Orange and Mery
Wiliam of Orange and Mery

William of Orange इंग्लैंड पर आक्रमण करने की अपनी नियत बना चुके थे। लेकिन इंग्लैंड की तरफ से मिले समर्थन में उनका काम बहुत आसान कर दिया। जब यह समाचार जेम्स द्वितीय को पता चला तो उन्होंने अपनी सेना को इकट्ठा तो किया लेकिन मैं मन ही मन हार मान चुके थे। जब उन्होंने विलियम ऑफ ऑरेंज की सेना को युद्ध करने के उद्देश्य से इंग्लैंड में घुसता पाया तो वे अपनी जान बचाने के उद्देश्य से फ्रांस भाग गए। फ्रांस एक कैथोलिक राष्ट्र था। लेकिन जेम्स द्वितीय के फ्रांस तक पहुंचने का यह सफर इतना आसान भी नहीं रहा। राज परिवार के कुछ सदस्य अंतिम समय में पाला बदलकर नीदरलैंड के शासक के साथ हो गए। यह देखकर जेम्स द्वितीय का दिल टूट गया और उनकी तबीयत पहले से ज्यादा खराब रहने लगी। फ्रांस में उस समय जेम्स द्वितीय के चचेरे भाई लुईस 14वें का शासन था। अपना राज्य एवं अपने परिवार को इस प्रकार जाता देख जेम्स द्वितीय की 1701 में फ्रांस में ही मृत्यु हो गई।  और जब राजा इंग्लैंड छोड़कर भाग गए तो अपने आप ही नीदरलैंड का शासक जीत गया।
इस प्रकार बिना एक भी खून की बूंद बहाए बिना इंग्लैंड में सत्ता परिवर्तन हो चुका था। इंग्लैंड की क्रांति को गौरवपूर्ण क्रांति इसीलिए कहते हैं क्योंकि यहां पर किसी की भी जान नहीं गई।
इधर इंग्लैंड में विलियम ऑफ़ ऑरेंज युद्ध जीत चुके थे, लेकिन सत्ता अब संसद ने हथिया ली थी। संसद ने युद्ध को बढ़ावा देते समय साफ कहा था कि यदि आप युद्ध जीत गए तो आप केवल नाम के राजा बनेंगे। असली शक्ति संसद के पास रहेगी। जिसे विलियम ऑफ ऑरेंज ने स्वीकार कर लिया था।

  • इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति : क्रांति के बाद

इंग्लैंड की संसद, राजा की निरंकुशता से परेशान तो थी ही। साथ ही साथ वह देशवासियों के साथ हो रहे अत्याचार के प्रति दयालु भी थी। इसीलिए 1689 में जब ब्रिटेन में सत्ता का तख्तापलट हुआ और सत्ता संसद के हाथों में आई तो संसद ने आम नागरिक को सुरक्षा एवं स्वतंत्रता प्रदान करते हुए कुछ अधिकार प्रदान किए। जिन्हें इंग्लैंड वासी बहुत समय से राजा से मांगते आ रहे थे हिंदू राजा ने उनकी एक न सुनी थी। इंग्लैंड की संसद ने अपने आम नागरिकों को जो अधिकार प्रदान किए उन्हें Bill Of Rights कहा गया। यह बिल ऑफ राइट्स बाद में पूरी दुनिया में लोकतंत्र एवं दवे कुछ लोगों को अधिकार प्रदान करने के लिए एक मानक इकाई बन गया। अमेरिका, फ्रांस, और भारत में भी Bill Of Rights का उपयोग किया जाता है, जो यहां की संविधान ने यहां के निवासियों को प्रदान किए हैं। 

टिप्पणियाँ

Best From the Author

The Story of Yashaswi Jaiswal

जिस 21 वर्षीय यशस्वी जयसवाल ने ताबड़तोड़ 98* रन बनाकर कोलकाता को IPL से बाहर कर दिया, उनका बचपन आंसुओं और संघर्षों से भरा था। यशस्‍वी जयसवाल मूलरूप से उत्‍तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। वह IPL 2023 के 12 मुकाबलों में 575 रन बना चुके हैं और ऑरेंज कैप कब्जाने से सिर्फ 2 रन दूर हैं। यशस्वी का परिवार काफी गरीब था। पिता छोटी सी दुकान चलाते थे। ऐसे में अपने सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ 10 साल की उम्र में यशस्वी मुंबई चले आए। मुंबई में यशस्वी के पास रहने की जगह नहीं थी। यहां उनके चाचा का घर तो था, लेकिन इतना बड़ा नहीं कि यशस्वी यहां रह पाते। परेशानी में घिरे यशस्वी को एक डेयरी पर काम के साथ रहने की जगह भी मिल गई। नन्हे यशस्वी के सपनों को मानो पंख लग गए। पर कुछ महीनों बाद ही उनका सामान उठाकर फेंक दिया गया। यशस्वी ने इस बारे में खुद बताया कि मैं कल्बादेवी डेयरी में काम करता था। पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और थोड़ी देर के लिए सो जाता था। एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता। नौकरी तो गई ही, रहने का ठिकान...

The Justice Verma Incident

 हास्य व्यंग्य : वाह रे न्याय....!! फायर ब्रिगेड के ऑफिस में हड़कंप मच गया। आग लगने की सूचना जो मिली थी उन्हें। आग भी कहां लगी ? दिल्ली हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीश “फलाने वर्मा” के सरकारी बंगले में..! घटना की सूचना मिलने पर फायर ब्रिगेड कर्मचारियों के हाथ पांव फूल गए । "माई लॉर्ड" के बंगले में आग ! हे भगवान ! अब क्या होगा ? एक मिनट की भी अगर देर हो गई तो माई लॉर्ड सूली पर टांग देंगे ! वैसे भी माई लॉर्ड का गुस्सा सरकार और सरकारी कर्मचारियों पर ही उतरता है। बाकी के आगे तो ये माई लॉर्ड एक रुपए की हैसियत भी नहीं रखते हैं जिसे प्रशांत भूषण जैसे वकील भरी कोर्ट में उछालते रहते हैं।  बेचारे फायर ब्रिगेड के कर्मचारी एक साथ कई सारी फायर ब्रिगेड लेकर दौड़ पड़े और आनन फानन में आग बुझाने लग गए। अचानक एक फायर ऑफिसर की नजर सामने रखे नोटों के बंडलों पर पड़ी। वह एक दम से ठिठक गया। उसके हाथ जहां के तहां रुक गए..!! नोट अभी जले नहीं थे..!! लेकिन दमकल के पानी से खराब हो सकते थे.. इसलिए उसने फायर ब्रिगेड से पानी छोड़ना बंद कर दिया और दौड़ा दौड़ा अपने बॉस के पास गया...  "बॉस...!    म...

Tyagpatra by Jainendra Book Review

 त्यागपत्र: एक अंतर्मुखी पीड़ा की कहानी जैनेंद्र कुमार का उपन्यास 'त्यागपत्र' भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह उपन्यास मृणाल की कहानी है, जो अपने पति प्रमोद के द्वारा त्याग दी जाती है। कहानी मृणाल के अंतर्मुखी पीड़ा, सामाजिक बंधनों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संघर्ष को दर्शाती है। जैनेंद्र कुमार की लेखन शैली सरल और गहरी है। उन्होंने मृणाल के मन की उलझनों और भावनात्मक जटिलताओं को बहुत ही संवेदनशील तरीके से चित्रित किया है। कहानी में सामाजिक रूढ़ियों और व्यक्तिगत इच्छाओं के बीच का द्वंद्व स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। मृणाल का त्यागपत्र केवल एक शारीरिक त्यागपत्र नहीं है, बल्कि यह उसके आंतरिक संघर्ष और मुक्ति की खोज का प्रतीक है। उपन्यास में प्रमोद का चरित्र भी जटिल है। वह एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है जो सामाजिक दबावों और अपनी कमजोरियों के कारण मृणाल को त्याग देता है। यह उपन्यास उस समय के समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके संघर्षों पर प्रकाश डालता है। 'त्यागपत्र' एक ऐसा उपन्यास है जो पाठक को सोचने पर मजबूर करता है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजि...

Vivek Pangani's love story

 सालों पहले एक फिल्म आई थी बर्फ़ी.. रनबीर कपूर अभिनीत इस फिल्म में कईं सम्मोहित कर देने वाले दृश्य थे.. फिल्म की सिनेमेटोग्राफ़ी भी उल्लेखनीय थी.. फिल्म में एक दृश्य है जो मेरे मन में बार बार उभरता है, जिसे  रनबीर के अलावा तीन अलग अलग किरदारों के साथ पिक्चराइज़ किया गया था.. यह दृश्य किसी के प्रति प्रेम, निष्ठा और विश्वास को जाँचने के लिए किया गया एक किस्म का लिटमस टेस्ट है.. प्रोटेगनिस्ट बर्फ़ी यह जानना चाहता है कि क्या संसार में कोई ऐसा भी है जिसका मन उसके लिए निश्छल और निस्वार्थ प्रेम से भरा हुआ है.. यह जानने के लिए वह सबसे पहले अपने दोस्त का हाथ पकड़कर एक लकड़ी के बने लैम्प पोस्ट के नीचे खड़ा हो जाता है.. बर्फ़ी उस चरमराती हुई लकड़ी के बने लैम्प पोस्ट के कभी भी गिर जाने की बात से अनजान नहीं.. बस वह यह देखना चाहता है कि उसका दोस्त मुसीबत की घड़ी में उसका हाथ छोड़कर भाग तो नहीं जाता.. और यही होता है.. लैम्प पोस्ट के नीचे गिरने से पहले ही उसका वह दोस्त अपना हाथ छुड़वा कर पीछे हट जाता है.. फिल्म आगे बढ़ती है, दूसरी बार उसी फ्रेम में बर्फ़ी के साथ वह लड़की खड़ी है जिसे वह चाहता...

Kunal Kamra Controversy

 कुणाल कामरा विवाद: इस हमाम में सब नंगे हैं! कुणाल कामरा के मामले में दो तरह के रिएक्शन देखने को मिल रहे हैं। एक तरफ ऐसे लोग हैं जो स्टूडियो में हुई तोड़फोड़ और उन्हें मिल रही धमकियों को ठीक मान रहे हैं और दूसरी तरफ ऐसे लोग हैं जो बेखौफ और बेचारा बता रहे हैं। मगर मुझे ऐसा लगता है कि सच्चाई इन दोनों के बीच में कहीं है।  इससे पहले कि मैं कुणाल कामरा के कंटेंट की बात करूं जिस पर मेरे अपने ऐतराज़ हैं, इस बात में तो कोई अगर मगर नहीं है कि आप किसी भी आदमी के साथ सिर्फ उसके विचारों के लिए मरने मारने पर उतारू कैसे हो सकते हैं? आप कह रहे हैं कि कुणाल कामरा ने एक जोक मारकर एक नेता का अपमान किया, तो मैं पूछता हूं कि महाराष्ट्र की पिछली सरकार में जो बीसियों दल-बदल हुए क्या वो जनता का अपमान नहीं था? पहले तो जनता ने जिस गठबंधन को बहुमत दिया, उसने सरकार नहीं बनाई, ये जनता का मज़ाक था। फिर सरकार बनी तो कुछ लोगों ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते सरकार गिरा दी। पहले कौन किसके साथ था, फिर किसके साथ चला गया और अब किसके साथ है, ये जानने के लिए लोगों को उस वक्त डायरी मेंटेन करनी पड़ती थी।...