लज्जा: एक समीक्षा तसलीमा नसरीन का उपन्यास 'लज्जा' 1993 में प्रकाशित हुआ था और इसने तुरंत ही विवादों का बवंडर खड़ा कर दिया था। बांग्लादेश की पृष्ठभूमि पर आधारित यह उपन्यास, एक हिंदू परिवार के जीवन के माध्यम से, सांप्रदायिक हिंसा, धार्मिक कट्टरता, और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के गंभीर मुद्दों को उठाता है। यह समीक्षा 'लज्जा' के साहित्यिक, सामाजिक, और राजनीतिक पहलुओं का विश्लेषण करने का प्रयास है। कथावस्तु: उपन्यास की कहानी दत्ता परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है, जो ढाका में रहता है। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद बांग्लादेश में फैली सांप्रदायिक हिंसा के दौरान, यह परिवार अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करता है। सुरंजन, किरणमयी, और उनके बच्चे, अपनी जान बचाने के लिए भागने को मजबूर हो जाते हैं। उपन्यास इस दौरान उनके द्वारा झेली गई पीड़ा, भय, और अनिश्चितता का मार्मिक चित्रण करता है। साहित्यिक पहलू: नसरीन की लेखन शैली सीधी और स्पष्ट है। वे बिना किसी लाग-लपेट के, हिंसा और उत्पीड़न के दृश्यों को चित्रित करती हैं, जो पाठक को झकझोर कर रख देता है। उपन्यास की भाषा सरल है, जो इसे व्यापक दर्शकों...
अफगानी तालिबान एवं ISIS के झंडों पर आखिर लिखा क्या होता है? What is written on New flag of Afghanistan & ISIS flag? A blogpost by Abiiinabu
अफगानी तालिबान एवं ISIS के झंडों पर आखिर लिखा क्या होता है? What is written on New flag of Afghanistan & ISIS flag? ISIS ke jhande pr kya likha hota hai?
Isis Flag |
लेकिन यह चरमपंथी संगठन जिस ध्वज का प्रदर्शन करके चरमपंथ की नई परिभाषा एवं कट्टरवाद को प्रदर्शित करते रहे हैं उसका इतिहास उसके वर्तमान परिपेक्ष से बिल्कुल जुदा है। इतिहास को जानने वाले यहां तक कहते हैं कि इस झंडे का उपयोग केवल व्यक्तिगत चरमपंथ को बढ़ावा देने, एवं स्वार्थ सिद्धि के लिए ही अधिकतर हुआ है। आतंकवादी संगठन इसे अपने तरीके से तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं और केवल अपने स्वार्थ के लिए इसका उपयोग करते हैं यह ईसाइयत के Klu Klux Klan Co-opted ऑपरेशन की तरह है जिसने 1900 के दशक में अमेरिका में अवैध तरीके से कई कार्य किए एवं अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने के उद्देश्य से अन्य धर्मों के लोगों को आतंकित किया।
इन धार्मिक ध्वजा को व्यक्तिगत चरमपंथ से दूर रखने के सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक कारक तो यही है किसका उपयोग ही बंद कर दिया जाए जोकि सैद्धांतिक रूप से तो ठीक प्रतीत होता है। लेकिन प्रायोगिक रूप से उतना विचारणीय नहीं है। क्योंकि ना रहेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी। पहली बात तो यह कि यह झंडे असल में जिहाद के काले झंडे है ही नहीं, इन्हें तो बस वेस्टर्न मीडिया इस तरह से दिखा रहा है क्योंकि जो दिखता है वही तो बिकता है, और उसी पर हम विश्वास कर लेते हैं। आखिर मीडिया हमारे साथ इस तरह का बर्ताव क्यों कर पाता है? क्योंकि मीडिया को इसके बारे में जानकारी है और हमको नहीं है। यदि हमें किसी चीज के बारे में गुमराह होने से बचना है, तो हमें स्वयं अपने आप को शिक्षित करना होगा और यह तभी होगा जब हम पढ़ना शुरू करेंगे। वे लोग जो इन झंडों को लेकर इनके आसपास मंडराते हैं वह इन्हें Black Standards या Flag of the Eagle और साधारण रूप से बैनर कहते हैं।
काले रंग का उपयोग करके यह आतंकवादी संगठन केवल लोगों को हजरत मोहम्मद के नाम का सहारा लेकर परेशान करते हैं और यह केवल अकेले वही लोग नहीं है जो काले रंग का अपने झंडों में इस्तेमाल करते हैं कई अन्य देश जो अपेक्षाकृत रूप से शांत माने जाते हैं भी अपने झंडे में काले रंग का प्रदर्शन करते हैं जैसे मिस्र, इराक, जॉर्डन, कुवैत और कई अन्य मुस्लिम देश अपने झंडे में काले रंग को मोहम्मद की सेना के झंडे के साथ परिलक्षित करवाने के लिए काले रंग की पट्टी का उपयोग करते हैं।
इसमें कुछ भी गलत नहीं है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार हजरत मोहम्मद युद्ध के समय अपनी सेना के साथ काले झंडे का उपयोग करते थे। ISIS एक काले झंडे में केवल रंग के अलावा अन्य चीजें भी आम जनमानस की आंखों में धूल झोंकने के लिए ही है। झंडे के बीच से थोड़ा ऊपर अरबी लिपि में जो लिखा हुआ है उसे शहादा (Shahada) बोला जाता है.
जोकि इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार इस्लाम में भरोसा करने वालों के लिए आवश्यक है। ISIS, ALQUEDA, इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान जैसे अन्य झंडे पर यह लिखा हुआ है इसका मतलब होता है अल्लाह के अलावा और कोई ईश्वर नहीं है मोहम्मद अल्लाह के पैगंबर है (ला इलाहा इल्लल्लाह मोहम्मद उर रसूल अल्लाह).
जो कि इस्लाम को मानने वालों के लिए पवित्र है ठीक वैसे ही जैसे Christianity में बाइबल की सूक्तियां, Judiasm में ईश्वर के पैगाम और Hindus में गीता रामायण या महाभारत के श्लोक। यह कहीं से भी सीधे तौर पर आतंकवाद से नहीं जुड़ता है। आमतौर पर यह आस्था के प्रतीक के रूप में व्यक्त किया जाता है ना कि युद्ध घोष के समय। यह केवल विकृत मानसिकता एवं उसको अंधविश्वासी रूप से पालन करने वालों की समझ पर निर्भर करता है कि वह सामान्य सी वस्तु को किस प्रकार प्रदर्शित करते हैं। यदि सब्जी काटने वाले चाकू से कोई अपनी नाक काट ले तो इसमें दोष चाकू का नहीं बल्कि उस व्यक्ति जी विकृत मानसिकता का है जो उसे इतना विवेक नहीं दे पा रही जिससे वह यह स्पष्ट कर सकें कि कौन सी चीज किस संदर्भ में उपयोग में ली जा सकती है।
ISIS के झंडे में भी बड़े बड़े अक्षरों में शहादा लिखा हुआ है जो ऊपर से देखने पर यही दिखता है कि अल्लाह के अलावा और कोई ईश्वर नहीं है मोहम्मद ही अल्लाह के पैगंबर हैं। इसी के नीचे मोहम्मद की सील भी लगी हुई है। जिसे मुश्किल से मोहम्मद के रूप में अनुवाद किया गया है। इसका मतलब है अल्लाह के पैगंबर और यह मोहर भी इस्लामिक दृष्टि से पवित्र मानी जाती है। यह ठीक वही मोहर है, जिसे हजरत मोहम्मद अपने आधिकारिक कार्यों में उपयोग में लाते थे।
अफगानिस्तान के नए झंडे में तालिबान ने काले रंग की बजाय सफेद रंग का चुनाव किया है। जिसका अर्थ वह वहां की सरकार एवं वहां के विकास को लक्षित करने में दे रहे हैं। अब देखना यह है कि क्या TALIBAN सच में अफगानिस्तान का विकास करने का इच्छुक है या फिर कट्टर इस्लामिक रीति से इसका संचालन करने की मुहिम में आया हुआ है?
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...हम आशा करते हैं कि आपको ISIS के झंडे एवं AFGHANISTAN के नए झंडे के बारे में हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई होगी। यदि आपको यह पसंद आया है तो इस ब्लॉग को शेयर कीजिए ताकि लोग विकृत मानसिकता का विरोध करें ना की एक पूरे समाज का...
धन्यवाद...🙏
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