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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

 चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...

मतलब अमेरिका की खोज कोलंबस ने नहीं की थी| Who Discovered America

मतलब अमेरिका की खोज कोलंबस ने नहीं की थी| Who Discovered America

छठी कक्षा. इतिहास का घंटा...
प्रो इतिहासकार मास्टर जी - अमेरिका की खोज किसने की थी?
ले टॉपर बेटा - अमेरिका की खोज कोलंबस ने की थी।
हो सकता है आने वाले समय में यह जवाब गलत हो। आखिर क्यों चलिए जानते हैं इस ब्लॉग में-
Colombus
Who Really Discovered America?
अगर आप भी आज तक यही मानते आए हैं कि अमेरिका की खोज क्रिस्टोफर कोलंबस ने की थी तो शायद यह ब्लॉग आप को गलत साबित कर दे।
अभी तक तो यही माना जाता आ रहा है कि अमेरिका की खोज क्रिस्टोफर कोलंबस ने 12 अक्टूबर 1492 को की थी। लेकिन सयाने लोगों की नई स्टडी ने यह दावा कर दिया है कि अमेरिका की खोज कोलंबस ने नहीं यूरोपीय लोगों ने कोलंबस से बहुत पहले कर दी थी।
शोधकर्ताओं का मानना है कि अमेरिका की खोज वाइकिंगस ने कोलंबस से तकरीबन 500 साल पहले कर दी थी। उस जमाने में वाइकिंग्स को समुद्री डाकू खोजकर्ता या व्यापारी कहा जाता रहा होगा। 

  • क्या दावा किया गया है नए शोध में

शोधकर्ताओं का दावा है कि उन्होंने वह वर्ष ज्ञात कर लिया है जब क्रिस्टोफर कोलंबस से पहले नॉर्थ अमेरिका में यूरोपीय लोगों ने अपनी बस्ती बसाई थी। L' Anse aux Meadows नामक Norse बस्ती जिसे यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थल घोषित कर रखा है, से प्राप्त एक लकड़ी की Carbon Dating करके वह वर्ष ज्ञात कर लिया है जब उसे बसाया गया था। यह वर्ष 1021 ईस्वी के आसपास का रहा होगा। गौरतलब हो कि कोलंबस ने अमेरिका को 1492 में खोजा था, इसका मतलब हुआ कि कोलंबस के 471 साल पहले अमेरिका में बस्तियां बनी हुई थी। 

  • क्या है शोधकर्ताओं के इस दावे का आधार

इस प्रचंड जानकारी का आधार शोधकर्ता अपनी नई स्टडी को मानते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि कोलंबस के अटलांटिक महासागर पार करने से बहुत पहले ही कनाडा के न्यूफाउंडलैंड (New Foundland) में लकड़ी की इमारतें बनी हुई थी. जिससे यह साबित हो जाता है कि क्रिस्टोफर कोलंबस से पहले भी वहां कोई रह रहा था। इन्हे वाइकिंग्स कहा जा रहा है।

  • आखिर कौन थे वाइकिंगस Vikings

वर्तमान नार्वे स्वीडन और डेनमार्क के आसपास के इलाकों में रहने वाले वाइकिंग्स उस समय के सबसे शानदार नाविक बेहतरीन शिकारी और उचित दिशा ज्ञात करने में माहिर थे।
Vikings
Vikings
उन्होंने आइसलैंड और ग्रीनलैंड पर कब्जा करके वहां बस्तियां बसाई। इन्हें 800 से 1100 ईस्वी के बीच आया हुआ माना जाता है।  नीदरलैंड के प्रसिद्ध भू वैज्ञानिक माइकल डी का मानना है कि वाइकिंग्स नहीं सबसे पहले अटलांटिक महासागर को पार किया जिसके लिए निश्चित तौर पर हमें इनका सम्मान करना चाहिए। 
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हमारा यह ब्लॉग प्रसिद्ध पत्रिका नेचर के एक लेख से प्रेरित है। अगर आपको हमारा यह ब्लॉक पसंद आया हो तो इसे शेयर कीजिए 
धन्यवाद🙏

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The Story of Yashaswi Jaiswal

जिस 21 वर्षीय यशस्वी जयसवाल ने ताबड़तोड़ 98* रन बनाकर कोलकाता को IPL से बाहर कर दिया, उनका बचपन आंसुओं और संघर्षों से भरा था। यशस्‍वी जयसवाल मूलरूप से उत्‍तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। वह IPL 2023 के 12 मुकाबलों में 575 रन बना चुके हैं और ऑरेंज कैप कब्जाने से सिर्फ 2 रन दूर हैं। यशस्वी का परिवार काफी गरीब था। पिता छोटी सी दुकान चलाते थे। ऐसे में अपने सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ 10 साल की उम्र में यशस्वी मुंबई चले आए। मुंबई में यशस्वी के पास रहने की जगह नहीं थी। यहां उनके चाचा का घर तो था, लेकिन इतना बड़ा नहीं कि यशस्वी यहां रह पाते। परेशानी में घिरे यशस्वी को एक डेयरी पर काम के साथ रहने की जगह भी मिल गई। नन्हे यशस्वी के सपनों को मानो पंख लग गए। पर कुछ महीनों बाद ही उनका सामान उठाकर फेंक दिया गया। यशस्वी ने इस बारे में खुद बताया कि मैं कल्बादेवी डेयरी में काम करता था। पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और थोड़ी देर के लिए सो जाता था। एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता। नौकरी तो गई ही, रहने का ठिकान...

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