11th January, 1966: The Prime Minister of India, Lal Bahadur Shastri dies in Tashkent. 24th January, 1966: India’s top nuclear scientist, Homi Jehangir Baba vanishes. Same month, same mystery. Lal Bahadur Shastri. Homi Jehangir Bhabha. One poisoned in a Soviet villa. One swallowed by French snow. And a nation… too scared to ask why? What if India’s greatest minds were not lost… …but eliminated? Let me lay out some facts. No filters. No fiction. And then, you decide. You carry the question home. Because some truths don’t scream. They whisper. And they wait. The year of 1964. China tests its first nuclear bomb. The world watches. India trembles. But one man stands tall. Dr. Homi Bhabha. A Scientist. A Visionary. And may be... a threat. To whom? That is the question. Late 1964. He walks into the Prime Minister’s office. Shastri listens. No filters. No committees. Just two patriots. And a decision that could change India forever. The year of1965. Sh...
History and Significance of Taking The Knee| Why Players Kneeling on the ground
T20 World Cup में खिलाड़ियों द्वारा किया जाने वाला Taking The Knee क्या है? |
बीते कुछ समय से हम सभी लोग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चलने वाले खेलों में खिलाड़ियों को अपने एक घुटने के बल बैठता हुआ देखते आए हैं। चाहे फुटबॉल हो, क्रिकेट हो अथवा ओलंपिक खेल ही क्यों ना हो, खिलाड़ियों को अपने घुटने के बल बैठकर एक खास प्रदर्शन करना आखिर क्या दिखाता है? आखिर क्यों दुनिया भर के खिलाड़ी अपने अपने क्षेत्र में इस प्रकार की Body Language बना रहे हैं?
Football Players Kneeling |
18वीं और 19वीं शताब्दी में जब ब्रिटेन पूरी दुनिया पर अपना राज कर रहा था। तब ब्रिटिश अधिकारी कई अलग-अलग तरीकों से उन देशों के मूल निवासियों के प्रति घृणा का भाव रखते थे। जिनमें सबसे बड़ा भाव था रंग के आधार पर भेदभाव करना। रंगभेद, नस्लभेद या Racism भी कहा जाता है। रंगभेद और नस्ल भेद वक्त के साथ कमजोर पड़ते गए लेकिन कभी पूर्ण रूप से खत्म नहीं हो पाए। कुछ लोगों का केवल अपने त्वचा के रंग आधार पर यह मानना कि वह बाकी दुनिया से श्रेष्ठ हैं, एक प्रकार की विकृत मानसिकता की ओर परिलक्षित करता है। किसी भी व्यक्ति का उसकी स्वयं की त्वचा के रंग में किसी भी प्रकार का कोई योगदान नहीं होता। लेकिन फिर भी कुछ लोग अपने गोरे रंग के कारण सांवले एवं काले लोगों के प्रति घृणा का भाव रखते हैं। नस्लभेद और रंगभेद अधिकतर आज यूरोप, ब्रिटेन, और अमेरिका जैसे विकसित देशों की अविकसित मानसिकता को प्रदर्शित करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में आए दिन किसी भी व्यक्ति की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी जाती है क्योंकि उसका रंग बाकी लोगों की तरह सफेद नहीं है। किसी व्यक्ति पर चोरी के झूठे इल्जाम केवल इसीलिए लगा दिए जाते हैं क्योंकि उसका रंग सफेद नहीं है। किसी व्यक्ति को उसकी प्रतिभा दिखाने का मंच केवल इसीलिए नहीं दिया जाता क्योंकि उसका रंग साफ नहीं है। कोई व्यक्ति सिर्फ इसीलिए आतंकवादी करार दे दिया जाता है क्योंकि उसका रंग खुद को श्रेष्ठ मानने वाले लोगों की मानसिकता की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाता।
- Racism का इतिहास
सोलवीं सदी के अंत तक ब्रिटिश राज अमेरिका पर कब्जा कर चुका था और अमेरिका डटकर इस कब्जे का विरोध कर रहा था। ब्रिटिशरों ने स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के लिए अमेरिका के मूल निवासी रेड इंडियन्स को अपना गुलाम बनाना शुरू कर दिया था। वे उनसे अपने साथ सभी व्यक्तिगत कार्य एवं अन्य प्रकार के कार्य करवाते थे। 18 वीं सदी का दूसरा दशक आते-आते अमेरिका ने ब्रिटेन को अपनी जमीन से खदेड़ दिया। ब्रिटेन अमेरिका से चला तो गया था, लेकिन अपने पीछे रंगभेद और नस्लभेद का जहर अमेरिका की धरती में बो गया। ब्रिटेन के जाने के बाद भी अब वहां के आजाद नागरिकों ने अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने के लिए अफ्रीका से आए हुए मजदूरों से अपने व्यक्तिगत कार्य करने शुरू कर दिए। और धीरे-धीरे अमेरिका एक आजाद देश में गुलाम मानसिकता का शिकार देश बन गया। अमेरिका में दास प्रथा आम हो चली थी। वे दासों से झाड़ू पोछा लगवाने से लेकर अपना मल एवं गंदगी भी साफ करवाते थे। बदले में दांतो को केवल जिंदा रहने के लिए खाना और कपड़े दिए जाते थे। कई सालों तक यह ऐसे ही चलता रहा लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने दास प्रथा का उन्मूलन किया एवं अमेरिका को दासप्रथा से मुक्त करवाया। अमेरिका में एक गुट दास प्रथा का कितना कट्टर समर्थक था. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब्राहम लिंकन की हत्या दास प्रथा के उन्मूलन के कुछ ही दिनों बाद कर दी गई।
अब्राहम लिंकन की हत्या के बाद नक्सलवाद धीरे-धीरे करके ठंडा पड़ गया लेकिन कभी पूर्ण रूप से समाप्त ना हो पाया। जिस कारण अमेरिका के लोग अवदस तो नहीं रख सकते थे लेकिन उनके मन में अश्वतों के प्रति एक घृणित भाव सदा के लिए बस गया। जिसका प्रभाव आज भी आए दिन देखने को मिलता है।
- Kneeling का इतिहास
समय-समय पर Blacks के साथ किया जाने वाला यह भेदभाव अपने चरम स्तर तक भी गया था। जिसमें फिर से अमेरिका में वही सब होने लगा जो ब्रिटिशर्स किया करते थे। किसी व्यक्ति को केवल इसीलिए तो दंडित किया जाने लगा क्योंकि उसका रंग उस विकृत मानसिकता से ग्रसित समाज के लिए अस्वीकरणीय था।अश्वेतें की दशा इस कदर तक खराब थी कि उन्हें जंजीरों से बांधकर रखा जाता था वह भी उस दोष के लिए, जिस पर उनका एवं किसी अन्य का कोई जोर नहीं है। अश्वेत लोगों की इस हालत को सुधारने के लिए समय-समय पर कई महापुरुषों ने अपने स्तर पर आंदोलन किए। जिसमें सबसे अधिक योगदान अब्राहम लिंकन, मार्टिन लूथर किंग का आता है। एक बार मार्टिन लूथर किंग ने अश्वेतों के साथ हो रही हिंसा के जवाब में महात्मा गांधी से प्रभावित होकर अहिंसा का मार्ग चुना था। जिसका अमेरिका में भी व्यापक प्रभाव पड़ा और अश्वेतों की दशा सुधरने लगी। मार्टिन लूथर किंग अपने आंदोलन में जहां कहीं भी अश्वेत के साथ कोई भेदभाव अथवा मारपीट होती थी वहां अपने सांत्वना व्यक्त करने के लिए अपने एक घुटने के बल बैठ जाते थे और अपना सिर नीचे कर लेते थे।
Martin Luther King Kneeling for Justice |
धीरे-धीरे यह चलन लोकप्रिय हो गया और लोग अश्वेत के प्रति हिंसा का विरोध करने के लिए इसी प्रकार बैठकर अपना प्रदर्शन करने लगे। मार्टिन लूथर किंग को इस प्रकार की बॉडी लैंग्वेज में बैठकर विरोध प्रदर्शन करने की प्रेरणा 18 वीं शताब्दी के एक कुम्हार द्वारा बनाई गई एक मोहर से मिली।
Am I not a Man and A Brother |
Josiah Wedgwood द्वारा बनाई गई मोहर में एक अश्वेत को जंजीरों में लिपटा अपने एक घुटने के बल बैठकर विनती करता दिखाया गया है। साथ में यह भी लिखा है कि यदि मैं तुम्हारा भाई नहीं हूं तो क्या मैं एक इंसान भी नहीं हूं?
Josiah Wedgwood की यह कृति अत्यधिक लोकप्रिय हुई। जिससे प्रभावित होकर अनेक वर्षों बाद मार्टिन लूथर किंग ने विरोध प्रदर्शित करने के लिए इस मुद्रा का उपयोग किया।
Josiah Wedgwood |
- वर्तमान समय में Racism और नस्लभेद
वर्तमान समय में अमेरिका ब्रिटेन और यूरोप के कई देशों में अश्वेत लोगों के प्रति असहिष्णुता की भावना व्याप्त है। अमेरिकियों और ब्रिटिशर्स में यह भावना कुछ अधिक ही भरी हुई है। वे अश्वेतों के साथ, एशियाई मूल के निवासियों के साथ बहुत ही क्रूरता से व्यवहार करते हैं। वर्तमान समय में संयुक्त राज्य अमेरिका में George Floyd को केवल इसीलिए पुलिस ने मार दिया क्योंकि उन्हें शक था कि उसके पास $20 का नकली नोट है। जब पुलिस उसे ले जा रही थी तब वह बार-बार चिल्ला रहा था कि उसे एक बंद वैन में मत बैठाओ, उसे सांस लेने में दिक्कत होती है। लेकिन अमेरिकी पुलिस वाले नहीं माने और उसे बंद वेन में बैठा दिया कुछ समय बाद ही उसकी तबीयत बिगड़ने लगी और वह छटपटाने लगा। पुलिस वालों ने उसे बाहर निकाला और उसकी गर्दन पर अपना घुटना पूरे 9 मिनट तक दबाकर रखा जिसकी वजह से जॉर्ज दम घुटने से मर गया।
Murder of George Floyd |
2020 में घटित हुई यह घटना, अमेरिकी समाज की विकृत मानसिकता को साफ तौर पर दिखाती है। इसी घटना के विरोध में दुनिया भर में #BlackLivesMatter नामक एक आंदोलन शुरू हो गया है जिसके अंतर्गत विरोध प्रदर्शन करने वाले लोग अपने एक घुटने के बल बैठकर नस्लभेद के खिलाफ अपना विरोध प्रदर्शित कर रहे हैं।
Black Lives Matter |
अब इस आंदोलन को खिलाड़ी भी अपने साथ होने वाले नस्लभेद के विरोध के रूप में प्रदर्शित कर रहे हैं। वे लोग जो नस्लभेद का शिकार हुए हैं अथवा वे लोग जो नस्लभेद का विरोध करते हैं दोनों ही अपनी बॉडी लैंग्वेज को एक घुटने के बल बैठा कर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं। 2020 फीफा वर्ल्ड कप, 2020-21 टोक्यो ओलंपिक खेल और अब 2021, T20 क्रिकेट विश्व कप में इस प्रकार के कई वाकए आपको देखने को मिल जाएंगे।
इसीलिए आपने देखा होगा कि फुटबॉल के कई मैचों में खिलाड़ी मैच शुरू होने से पहले अपने घुटने के बल बैठ जाते हैं। T20 विश्व कप में खिलाड़ी बीच खेल में अथवा राष्ट्रगान होने से पहले अपने घुटने के बल बैठकर अपना विरोध प्रदर्शित कर रहे हैं।
Indian Team Kneeling |
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