सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

History of Chambal

 चम्बल का इतिहास क्या हैं? ये वो नदी है जो मध्य प्रदेश की मशहूर विंध्याचल पर्वतमाला से निकलकर युमना में मिलने तक अपने 1024 किलोमीटर लम्बे सफर में तीन राज्यों को जीवन देती है। महाभारत से रामायण तक हर महाकाव्य में दर्ज होने वाली चम्बल राजस्थान की सबसे लम्बी नदी है। श्रापित और दुनिया के सबसे खतरनाक बीहड़ के डाकुओं का घर माने जाने वाली चम्बल नदी मगरमच्छों और घड़ियालों का गढ़ भी मानी जाती है। तो आईये आज आपको लेकर चलते हैं चंबल नदी की सेर पर भारत की सबसे साफ़ और स्वच्छ नदियों में से एक चम्बल मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में महू छावनी के निकट स्थित विंध्य पर्वत श्रृंखला की जनापाव पहाड़ियों के भदकला जलप्रपात से निकलती है और इसे ही चम्बल नदी का उद्गम स्थान माना जाता है। चम्बल मध्य प्रदेश में अपने उद्गम स्थान से उत्तर तथा उत्तर-मध्य भाग में बहते हुए धार, उज्जैन, रतलाम, मन्दसौर, भिंड, मुरैना आदि जिलों से होकर राजस्थान में प्रवेश करती है। राजस्थान में चम्बल चित्तौड़गढ़ के चौरासीगढ से बहती हुई कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, करोली और धौलपुर जिलों से निकलती है। जिसके बाद ये राजस्थान के धौलपुर से दक्षिण की ओर

History and Significance of Taking The Knee| Why Players Kneeling on the ground

History and Significance of Taking The Knee| Why Players Kneeling on the ground

T20 World Cup में खिलाड़ियों द्वारा किया जाने वाला Taking The Knee क्या है?
T20 World Cup में खिलाड़ियों द्वारा किया जाने वाला Taking The Knee क्या है?
बीते कुछ समय से हम सभी लोग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चलने वाले खेलों में खिलाड़ियों को अपने एक घुटने के बल बैठता हुआ देखते आए हैं। चाहे फुटबॉल हो, क्रिकेट हो अथवा ओलंपिक खेल ही क्यों ना हो, खिलाड़ियों को अपने घुटने के बल बैठकर एक खास प्रदर्शन करना आखिर क्या दिखाता है? आखिर क्यों दुनिया भर के खिलाड़ी अपने अपने क्षेत्र में इस प्रकार की Body Language बना रहे हैं?
Football Players Kneeling
Football Players Kneeling
18वीं और 19वीं शताब्दी में जब ब्रिटेन पूरी दुनिया पर अपना राज कर रहा था। तब ब्रिटिश अधिकारी कई अलग-अलग तरीकों से उन देशों के मूल निवासियों के प्रति घृणा का भाव रखते थे। जिनमें सबसे बड़ा भाव था रंग के आधार पर भेदभाव करना। रंगभेद, नस्लभेद या Racism भी कहा जाता है। रंगभेद और नस्ल भेद वक्त के साथ कमजोर पड़ते गए लेकिन कभी पूर्ण रूप से खत्म नहीं हो पाए। कुछ लोगों का केवल अपने त्वचा के रंग आधार पर यह मानना कि वह बाकी दुनिया से श्रेष्ठ हैं, एक प्रकार की विकृत मानसिकता की ओर परिलक्षित करता है। किसी भी व्यक्ति का उसकी स्वयं की त्वचा के रंग में किसी भी प्रकार का कोई योगदान नहीं होता। लेकिन फिर भी कुछ लोग अपने गोरे रंग के कारण सांवले एवं काले लोगों के प्रति घृणा का भाव रखते हैं। नस्लभेद और रंगभेद अधिकतर आज यूरोप, ब्रिटेन, और अमेरिका जैसे विकसित देशों की अविकसित मानसिकता को प्रदर्शित करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में आए दिन किसी भी व्यक्ति की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी जाती है क्योंकि उसका रंग बाकी लोगों की तरह सफेद नहीं है। किसी व्यक्ति पर चोरी के झूठे इल्जाम केवल इसीलिए लगा दिए जाते हैं क्योंकि उसका रंग सफेद नहीं है। किसी व्यक्ति को उसकी प्रतिभा दिखाने का मंच केवल इसीलिए नहीं दिया जाता क्योंकि उसका रंग साफ नहीं है। कोई व्यक्ति सिर्फ इसीलिए आतंकवादी करार दे दिया जाता है क्योंकि उसका रंग खुद को श्रेष्ठ मानने वाले लोगों की मानसिकता की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाता।

  • Racism का इतिहास

सोलवीं सदी के अंत तक ब्रिटिश राज अमेरिका पर कब्जा कर चुका था और अमेरिका डटकर इस कब्जे का विरोध कर रहा था। ब्रिटिशरों ने स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के लिए अमेरिका के मूल निवासी रेड इंडियन्स को अपना गुलाम बनाना शुरू कर दिया था। वे उनसे अपने साथ सभी व्यक्तिगत कार्य एवं अन्य प्रकार के कार्य करवाते थे। 18 वीं सदी का दूसरा दशक आते-आते अमेरिका ने ब्रिटेन को अपनी जमीन से खदेड़ दिया। ब्रिटेन अमेरिका से चला तो गया था, लेकिन अपने पीछे रंगभेद और नस्लभेद का जहर अमेरिका की धरती में बो गया। ब्रिटेन के जाने के बाद भी अब वहां के आजाद नागरिकों ने अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने के लिए अफ्रीका से आए हुए मजदूरों से अपने व्यक्तिगत कार्य करने शुरू कर दिए। और धीरे-धीरे अमेरिका एक आजाद देश में गुलाम मानसिकता का शिकार देश बन गया। अमेरिका में दास प्रथा आम हो चली थी। वे दासों से झाड़ू पोछा लगवाने से लेकर अपना मल एवं गंदगी भी साफ करवाते थे। बदले में दांतो को केवल जिंदा रहने के लिए खाना और कपड़े दिए जाते थे। कई सालों तक यह ऐसे ही चलता रहा लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने दास प्रथा का उन्मूलन किया एवं अमेरिका को दासप्रथा से मुक्त करवाया। अमेरिका में एक गुट दास प्रथा का कितना कट्टर समर्थक था. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब्राहम लिंकन की हत्या दास प्रथा के उन्मूलन के कुछ ही दिनों बाद कर दी गई।
अब्राहम लिंकन की हत्या के बाद नक्सलवाद धीरे-धीरे करके ठंडा पड़ गया लेकिन कभी पूर्ण रूप से समाप्त ना हो पाया। जिस कारण अमेरिका के लोग अवदस तो नहीं रख सकते थे लेकिन उनके मन में अश्वतों के प्रति एक घृणित भाव सदा के लिए बस गया। जिसका प्रभाव आज भी आए दिन देखने को मिलता है।

  • Kneeling का इतिहास

समय-समय पर Blacks के साथ किया जाने वाला यह भेदभाव अपने चरम स्तर तक भी गया था। जिसमें फिर से अमेरिका में वही सब होने लगा जो ब्रिटिशर्स किया करते थे। किसी व्यक्ति को केवल इसीलिए तो दंडित किया जाने लगा क्योंकि उसका रंग उस विकृत मानसिकता से ग्रसित समाज के लिए अस्वीकरणीय था।अश्वेतें की दशा इस कदर तक खराब थी कि उन्हें जंजीरों से बांधकर रखा जाता था वह भी उस दोष के लिए, जिस पर उनका एवं किसी अन्य का कोई जोर नहीं है। अश्वेत लोगों की इस हालत को सुधारने के लिए समय-समय पर कई महापुरुषों ने अपने स्तर पर आंदोलन किए। जिसमें सबसे अधिक योगदान अब्राहम लिंकन, मार्टिन लूथर किंग का आता है। एक बार मार्टिन लूथर किंग ने अश्वेतों के साथ हो रही हिंसा के जवाब में महात्मा गांधी से प्रभावित होकर अहिंसा का मार्ग चुना था। जिसका अमेरिका में भी व्यापक प्रभाव पड़ा और अश्वेतों की दशा सुधरने लगी। मार्टिन लूथर किंग अपने आंदोलन में जहां कहीं भी अश्वेत के साथ कोई भेदभाव अथवा मारपीट होती थी वहां अपने सांत्वना व्यक्त करने के लिए अपने एक घुटने के बल बैठ जाते थे और अपना सिर नीचे कर लेते थे।
Martin Luther King Kneeling for Justice
Martin Luther King Kneeling for Justice
धीरे-धीरे यह चलन लोकप्रिय हो गया और लोग अश्वेत के प्रति हिंसा का विरोध करने के लिए इसी प्रकार बैठकर अपना प्रदर्शन करने लगे। मार्टिन लूथर किंग को इस प्रकार की बॉडी लैंग्वेज में बैठकर विरोध प्रदर्शन करने की प्रेरणा 18 वीं शताब्दी के एक कुम्हार द्वारा बनाई गई एक मोहर से मिली।
Am I not a Human or Brother
Am I not a Man and A Brother
Josiah Wedgwood द्वारा बनाई गई मोहर में एक अश्वेत को जंजीरों में लिपटा अपने एक घुटने के बल बैठकर विनती करता दिखाया गया है। साथ में यह भी लिखा है कि यदि मैं तुम्हारा भाई नहीं हूं तो क्या मैं एक इंसान भी नहीं हूं? 
Josiah Wedgwood की यह कृति अत्यधिक लोकप्रिय हुई। जिससे प्रभावित होकर अनेक वर्षों बाद मार्टिन लूथर किंग ने विरोध प्रदर्शित करने के लिए इस मुद्रा का उपयोग किया।
Joseiah Wodgeh
Josiah Wedgwood

  • वर्तमान समय में Racism और नस्लभेद

वर्तमान समय में अमेरिका ब्रिटेन और यूरोप के कई देशों में अश्वेत लोगों के प्रति असहिष्णुता की भावना व्याप्त है। अमेरिकियों और ब्रिटिशर्स में यह भावना कुछ अधिक ही भरी हुई है। वे अश्वेतों के साथ, एशियाई मूल के निवासियों के साथ बहुत ही क्रूरता से व्यवहार करते हैं। वर्तमान समय में संयुक्त राज्य अमेरिका में George Floyd को केवल इसीलिए पुलिस ने मार दिया क्योंकि उन्हें शक था कि उसके पास $20 का नकली नोट है। जब पुलिस उसे ले जा रही थी तब वह बार-बार चिल्ला रहा था कि उसे एक बंद वैन में मत बैठाओ, उसे सांस लेने में दिक्कत होती है। लेकिन अमेरिकी पुलिस वाले नहीं माने और उसे बंद वेन में बैठा दिया कुछ समय बाद ही उसकी तबीयत बिगड़ने लगी और वह छटपटाने लगा। पुलिस वालों ने उसे बाहर निकाला और उसकी गर्दन पर अपना घुटना पूरे 9 मिनट तक दबाकर रखा जिसकी वजह से जॉर्ज दम घुटने से मर गया।
Murder of George Floyd
Murder of George Floyd
2020 में घटित हुई यह घटना, अमेरिकी समाज की विकृत मानसिकता को साफ तौर पर दिखाती है। इसी घटना के विरोध में दुनिया भर में #BlackLivesMatter नामक एक आंदोलन शुरू हो गया है जिसके अंतर्गत विरोध प्रदर्शन करने वाले लोग अपने एक घुटने के बल बैठकर नस्लभेद के खिलाफ अपना विरोध प्रदर्शित कर रहे हैं।
Black Lives Matter
Black Lives Matter
अब इस आंदोलन को खिलाड़ी भी अपने साथ होने वाले नस्लभेद के विरोध के रूप में प्रदर्शित कर रहे हैं। वे लोग जो नस्लभेद का शिकार हुए हैं अथवा वे लोग जो नस्लभेद का विरोध करते हैं दोनों ही अपनी बॉडी लैंग्वेज को एक घुटने के बल बैठा कर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं। 2020 फीफा वर्ल्ड कप, 2020-21 टोक्यो ओलंपिक खेल और अब 2021, T20 क्रिकेट विश्व कप में इस प्रकार के कई वाकए आपको देखने को मिल जाएंगे।
इसीलिए आपने देखा होगा कि फुटबॉल के कई मैचों में खिलाड़ी मैच शुरू होने से पहले अपने घुटने के बल बैठ जाते हैं। T20 विश्व कप में खिलाड़ी बीच खेल में अथवा राष्ट्रगान होने से पहले अपने घुटने के बल बैठकर अपना विरोध प्रदर्शित कर रहे हैं। 
Team India Kneeling
Indian Team Kneeling
भारतीय टीम ने अपने विश्वकप मैच खेलने से पहले नस्लभेद का विरोध किया। 










हम आशा करते हैं आपको हमारा यह ब्लॉक एवं यह जानकारी पसंद आई होगी। यदि आपको यह जानकारी लाभदायक लगती हो तो कृपया इसे शेयर कीजिए। धन्यवाद 🙏

टिप्पणियाँ

Best From the Author

The Story of Yashaswi Jaiswal

जिस 21 वर्षीय यशस्वी जयसवाल ने ताबड़तोड़ 98* रन बनाकर कोलकाता को IPL से बाहर कर दिया, उनका बचपन आंसुओं और संघर्षों से भरा था। यशस्‍वी जयसवाल मूलरूप से उत्‍तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। वह IPL 2023 के 12 मुकाबलों में 575 रन बना चुके हैं और ऑरेंज कैप कब्जाने से सिर्फ 2 रन दूर हैं। यशस्वी का परिवार काफी गरीब था। पिता छोटी सी दुकान चलाते थे। ऐसे में अपने सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ 10 साल की उम्र में यशस्वी मुंबई चले आए। मुंबई में यशस्वी के पास रहने की जगह नहीं थी। यहां उनके चाचा का घर तो था, लेकिन इतना बड़ा नहीं कि यशस्वी यहां रह पाते। परेशानी में घिरे यशस्वी को एक डेयरी पर काम के साथ रहने की जगह भी मिल गई। नन्हे यशस्वी के सपनों को मानो पंख लग गए। पर कुछ महीनों बाद ही उनका सामान उठाकर फेंक दिया गया। यशस्वी ने इस बारे में खुद बताया कि मैं कल्बादेवी डेयरी में काम करता था। पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और थोड़ी देर के लिए सो जाता था। एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता। नौकरी तो गई ही, रहने का ठिकान

Superstar Rajni

 सुपरस्टार कर्नाटक के लोअर मिडल क्लास मराठी परिवार का काला बिलकुल आम कद काठी वाला लड़का सुपर स्टार बना इस का श्रेय निर्देशक बाल चंदर को जाता है।इस बस कंडक्टर में उन्हे कुछ स्पार्क दिखा। उस के बाद उन्होंने शिवाजी राव गायकवाड को एक्टिंग सीखने को कहा और कहे मुताबिक शिवाजीराव ने एक्टिंग सीखी। उस समय दक्षिण में शिवाजी गणेशन नाम के विख्यात स्टार थे। उन के नाम के साथ तुलना न हो इसलिए शिवाजीराव का फिल्मी नामकरण रजनी किया गया।किसी को भी नही लगा होगा की ये शिवाजी उस महान स्टार शिवाजी को रिप्लेस करेगा ! रजनी सर ने अपनी शुरुआत सेकंड लीड और खलनायक के तौर पर की।रजनी,कमला हासन और श्रीदेवी लगभग एकसाथ मेन स्ट्रीम सिनेमा में आए और तीनो अपनी अपनी जगह छा गए।स्क्रीन प्ले राइटिंग में ज्यादा रुचि रखने वाले कमला हासन ने वही पर ज्यादा ध्यान दिया और एक्सपेरिमेंटल मास फिल्मे की।रजनीकांत को पता था साउथ के लोगो को क्या देखना।साउथ के लोग जब थियेटर आते है तब वो दो ढाई घंटे सामने पर्दे पर जो हीरो दिख रहा उस में खुद को इमेजिन करते है ।रजनी जनता के दिलो में छा गए क्युकी वो उन के जैसे दिखते है और काम सुपर हीरो वाले करते

पद्म पुरस्कार 2021| पदम पुरस्कार का इतिहास All about Padam Awards

पद्म पुरस्कार 2021| पदम पुरस्कार का इतिहास All about PADAM AWARDS | 2021 पदम पुरस्कार भारत सरकार द्वारा हर वर्ष गणतंत्र दिवस यानी कि 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर दिए जाते हैं। यह पुरस्कार भारत में तीन श्रेणियों में दिया जाता है पदम विभूषण, पदम भूषण और पद्मश्री । यह पुरस्कार देश में व्यक्ति विशेष द्वारा किए गए असाधारण और विशिष्ट सेवा उच्च क्रम की सेवा और प्रतिष्ठित सेवा में अतुलनीय योगदान देने के लिए दिया जाता है। Padam Awards किसके द्वारा दिया जाता है पदम पुरस्कार? पदम पुरस्कार हर साल पदम पुरस्कार समिति द्वारा की गई सिफारिश के आधार पर प्रदान किए जाते हैं। यह समिति हर साल प्रधानमंत्री द्वारा तैयार की जाती है। कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को पदम पुरस्कार के लिए नामांकित कर सकता है साथ ही साथ वह खुद के लिए भी नामांकन दाखिल कर सकता है। पदम पुरस्कारों   का इतिहास पदम पुरस्कार जो 1954 में स्थापित किए गए थे, हर साल दिए जाते हैं। विशेष अवसरों जैसे 1978, 1979 और 1993 से 1997 को छोड़ दिया जाए तो पदम पुरस्कार लगभग हर साल प्रदान किए गए हैं। आजादी के बाद भारत सरकार ने समाज में उत्कृष्ट सेवा प