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Tyagpatra by Jainendra Book Review

 त्यागपत्र: एक अंतर्मुखी पीड़ा की कहानी जैनेंद्र कुमार का उपन्यास 'त्यागपत्र' भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह उपन्यास मृणाल की कहानी है, जो अपने पति प्रमोद के द्वारा त्याग दी जाती है। कहानी मृणाल के अंतर्मुखी पीड़ा, सामाजिक बंधनों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संघर्ष को दर्शाती है। जैनेंद्र कुमार की लेखन शैली सरल और गहरी है। उन्होंने मृणाल के मन की उलझनों और भावनात्मक जटिलताओं को बहुत ही संवेदनशील तरीके से चित्रित किया है। कहानी में सामाजिक रूढ़ियों और व्यक्तिगत इच्छाओं के बीच का द्वंद्व स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। मृणाल का त्यागपत्र केवल एक शारीरिक त्यागपत्र नहीं है, बल्कि यह उसके आंतरिक संघर्ष और मुक्ति की खोज का प्रतीक है। उपन्यास में प्रमोद का चरित्र भी जटिल है। वह एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है जो सामाजिक दबावों और अपनी कमजोरियों के कारण मृणाल को त्याग देता है। यह उपन्यास उस समय के समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके संघर्षों पर प्रकाश डालता है। 'त्यागपत्र' एक ऐसा उपन्यास है जो पाठक को सोचने पर मजबूर करता है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजि...

Is Indian Constitution Copied|क्या भारत का संविधान है कॉपी पेस्ट का पिटारा?

Is Indian Constitution Copied|क्या भारत का संविधान है कॉपी पेस्ट का पिटारा?

Constitution Day
Constitution Day of India
वैसे तो भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। जिस वजह से इसकी एक अलग प्रसंगिकता है। एक अलग ओहदा है, एक अलग महत्त्व है। इस संविधान की प्रमुख विशेषता दुनिया के अलग अलग संविधान से ली गई कुछ चुनिंदा बातें हैं जो इसे दुनिया के बाकी संविधानों के जैसा लेकिन भीड़ से अलग बनाती हैं।
भारतीय संविधान पर समय-समय पर यह आरोप लगते रहे हैं कि वह कॉपी पेस्ट का पिटारा है। भारत के संविधान में कुछ भी नया नहीं है और वह दुनिया के अन्य सभी मुल्कों की विशेषताओं को जोड़कर बनाया गया है। आइए आज की इस पोस्ट में कुछ विशेषताओं के ऊपर एवं कुछ समीक्षाओं के ऊपर विचार करते हैं।

  • संविधान सभा का प्रत्यक्ष निर्वाचन नहीं हुआ था। इनका निर्वाचन प्रांतीय विधानमंडल के निम्न सदन के सदस्यों द्वारा किया गया था। इसीलिए संविधान सभा सही मायने में जनता की प्रतिनिधि नहीं थी तथा रियासतों के प्रतिनिधि तो अप्रत्यक्ष रूप से भी निर्वाचित नहीं थे। राजाओं के द्वारा उनका मनोनयन किया गया था। इसीलिए वह भी जनता के प्रतिनिधि नहीं थे।

भारतीय संविधान के संदर्भ में उपरोक्त आलोचना उचित नहीं है क्योंकि
तत्कालीन परिस्थितियों में संविधान सभा का प्रत्यक्ष निर्वाचन लगभग असंभव था।
देश में राजनीतिक अस्थिरता थी।
राष्ट्रीय आंदोलन अपने चरम पर था।
सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे।
चुनाव संपन्न कराने के लिए पर्याप्त ढांचा एवं समय दोनों ही उपलब्ध नहीं थे।
जनता में अशिक्षा थी तथा राजनीतिक जागरूकता का भी अभाव था।
इन्हीं सभी परिस्थितियों के कारण संविधान सभा का प्रत्यक्ष निर्वाचन नहीं करवाया गया।

  • संविधान सभा की दूसरी आलोचना यह है कि यह एक संप्रभु संस्था नहीं थी क्योंकि इसका गठन कैबिनेट मिशन की अनुशंसाओं के आधार पर हुआ था।
यह आलोचना भी उचित नहीं है क्योंकि
15 अगस्त 1947 को संविधान सभा पूरी तरह से संप्रभु संस्था बन गई थी। अब यह कैबिनेट मिशन की अनुशंसा से मुक्त थी तथा इसमें यह प्रस्ताव भी पारित किया गया था कि यह अपने सभी निर्णय पूर्ण स्वतंत्रता से लेगी। 


  • कुछ आलोचकों का मानना है कि संविधान निर्माताओं ने संविधान को पूरा करने में अधिक समय लिया। इसे पूरा करने में 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन का समय लगा जबकि अमेरिकी संविधान निर्माताओं ने मात्र 4 माह में संविधान पूरा कर दिया था।
संविधान सभा की यह आलोचना भी तार्किक नहीं है क्योंकि भारत व अमेरिका के परिस्थितियां भिन्न भिन्न थी। भारत एक बहु सांस्कृतिक बहुभाषी बहुत धार्मिक देश है तथा हमारा सामाजिक ढांचा अत्यधिक जटिल है। इसमें अनेक जनजातियां तथा सामाजिक रूप से वंचित एवं पिछड़े वर्ग हैं अतः अल्पसंख्यकों व वंचित वर्गों के लिए विशेष प्रावधान करने थे। जबकि अमेरिका का सांप्रदायिक ढांचा जटिल नहीं था और ना ही वहां पर भारत जैसी भी विविधताएं थीं। हालांकि अमेरिका में भी रेड इंडियंस व अफ्रीकी मूल के लोग थे लेकिन उनके हितों के लिए संविधान में कोई उपाय नहीं किया गया।
अमेरिकी संविधान अत्यधिक संक्षिप्त है इसमें केवल 7 आर्टिकल थे। जबकि भारतीय संविधान विश्व का अत्यधिक विस्तृत संविधान है क्योंकि भारत के संविधान में प्रत्येक बात को विस्तार से स्पष्ट किया गया है।
अमेरिकी संविधान केवल परिसंघ (Fedration) का संविधान है वहां के राज्यों के संविधान अलग हैं जो बाद में बनाए गए। जबकि भारतीय संविधान में राज्य युवा संघ दोनों के संविधान समाहित हैं।
इन्हीं कारणों की वजह से हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान को पूरा करने में अधिक समय लिया।

  • कुछ आलोचकों का मानना है कि संविधान सभा में कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व था। इसीलिए संविधान में कांग्रेस की विचारधारा को अधिक महत्व दिया गया है। तथा अन्य विचारधाराओं की उपेक्षा की गई है।
संविधान सभा की यह आलोचना भी तार्किक नहीं है क्योंकि
संविधान सभा में कांग्रेस के सदस्य अधिक होने के बावजूद कांग्रेस ने संविधान सभा को अधिक प्रभावित करने की कोशिश नहीं की।
अधिकांश निर्णय सर्वसम्मति से लिए गए हैं।
संविधान सभा का प्रारूप प्रारूप समिति ने तैयार किया था प्रारूप समिति के अध्यक्ष भीमराव अंबेडकर कांग्रेसी नहीं थे प्रारूप समिति में केवल दो कांग्रेस के सदस्य थे। (कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी वा टीटी कृष्णमाचारी)।
इससे यह सिद्ध होता है कि संविधान के प्रारूप के निर्माण में कांग्रेस का प्रभुत्व नहीं था।
भारतीय संविधान में सभी विचारधाराओं को पर्याप्त महत्व दिया गया है यही कारण है कि भारतीय संविधान किसी एक विचारधारा की ओर झुका हुआ नहीं है।

  • कुछ आलोचकों के अनुसार संविधान सभा में अधिकांश सदस्य हिंदू थे इसलिए इस पर हिंदू विचारधारा का प्रभाव है।
उपर्युक्त आलोचना भी उचित नहीं है क्योंकि
संविधान सभा के सदस्यों का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति द्वारा हुआ था। क्योंकि हिंदू बहुसंख्यक थे इसीलिए उसी अनुपात में हिंदू सदस्यों का निर्वाचन हुआ। देश के विभाजन के बाद मुस्लिम लीग के अधिकांश सदस्य पाकिस्तान में रह गए थे इसीलिए भी हिंदुओं का अनुपात अधिक हो गया।
हिंदू सदस्य अधिक होने के बावजूद भारतीय संविधान एक धर्मनिरपेक्ष संविधान है।
धार्मिक स्वतंत्रता एक मूल अधिकार है।
धर्म के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता।
धार्मिक अल्पसंख्यकों के हितों के संरक्षण के लिए विशेष उपाय किए गए हैं। 
उपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि भारतीय संविधान में किसी एक धर्म का विशेष प्रभाव नहीं है बल्कि सर्वधर्म समभाव की भावना है।

  • संविधान सभा पर यह भी आरोप लगता है कि इसे बनाने वालों में वकील व राजनेता अधिक थे। इसमें किसानों व मजदूरों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं था तथा वकीलों के कारण इसकी भाषा अत्यधिक जटिल है।
संविधान सभा की उपर्युक्त आलोचना भी उचित नहीं है क्योंकि वकील वा राजनेता ही संवैधानिक व राजनीतिक मामलों के जानकार होते हैं तथा प्रायः सभी देशों में इनके द्वारा ही संविधान तैयार किया गया है।
जहां तक किसानों व मजदूरों का प्रश्न है तो उनमें राजनीतिक जागरूकता की कमी थी।
इस सब के बावजूद संविधान में उनके हितों को पर्याप्त संरक्षण दिया गया है।

  • भारतीय संविधान के स्रोत

संविधान के प्रारूप समिति ने लगभग 60 देशों के संविधान का गहन अध्ययन किया तथा उनके अच्छे उपायों को ग्रहण करके भारतीय संविधान की रचना की।
भारतीय संविधान के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं

  • भारत सरकार अधिनियम 1935

यह हमारे संविधान का सबसे प्रमुख स्रोत है। ब्रिटिश पार्लियामेंट में लाया गया भारत सरकार अधिनियम 1935 हमारे संविधान का दो तिहाई भाग प्रभावित करता है। इसके द्वारा भारत में संघीय ढांचा द्विसदनीय व्यवस्था प्रांतीय को स्वायत्तता राज्यों में राज्यपाल की नियुक्ति राज्यपाल की वीटो शक्ति लोक सेवा आयोग जनजातीय क्षेत्रों के लिए विशेष प्रावधान आपातकालीन प्रावधान न्यायपालिका समवर्ती सूची CAG इत्यादि लिए गए हैं।

  • ब्रिटेन का संविधान

भारतीय संविधान को भारत सरकार अधिनियम 1935 के बाद यदि सबसे अधिक किसी देश के संविधान से प्रेरणा मिली है तो वह ब्रिटेन का संविधान है।
ब्रिटेन के संविधान से भारत संविधान में संसदीय शासन व्यवस्था द्विसदनीय व्यवस्था मंत्री परिषद का निम्न सदन के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व मंत्रिमंडल व्यवस्था विधाई प्रक्रिया एकल नागरिकता न्यायपालिका का रेट जारी करना विधि के समक्ष समता विधि के द्वारा स्थापित प्रक्रिया फर्स्ट पास्ट द पोस्ट यानी अग्रिता ही विजेता का भाव एवं कैग की नियुक्ति लिए गए हैं।

  • अमेरिका का संविधान

अमेरिका का संविधान भारतीय संविधान को निम्न प्रकार से प्रभावित करता है।
स्वतंत्र न्यायपालिका न्यायिक पुनरावलोकन जनहित याचिका पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया मूल अधिकार राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग की प्रक्रिया विधि का समान संरक्षण विधि के समय प्रक्रिया उपराष्ट्रपति का पद एवं प्रस्तावना की पहली पंक्ति।

  • कनाडा का संविधान

कनाडा का संविधान भारतीय संविधान को निम्न चीजों के बारे में समझाता है
परी संघीय ढांचा जिसमें अवशिष्ट शक्तियों केंद्र के पास हो।
केंद्र के द्वारा राज्यों में राज्यपाल की नियुक्ति
सुप्रीम कोर्ट की परामर्श देने की शक्ति

  • आयरलैंड

आयरलैंड के संविधान से निम्न बातें प्रभावित हैं
नीति निर्देशक तत्व राज्यसभा में सदस्यों का मनोनयन राष्ट्रपति की निर्वाचन पद्धति

  • दक्षिण अफ्रीका

दक्षिण अफ्रीका के संविधान से निम्न चीजें भारतीय संविधान में ली गई हैं
संविधान संशोधन की प्रक्रिया एवं राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन

  • ऑस्ट्रेलिया

ऑस्ट्रेलिया की संविधान से निम्न चीजें भारतीय संविधान में ली गई है
समवर्ती सूची दोनों सदनों की संयुक्त बैठक प्रस्तावना का प्रारूप एवं अंतर राज्य व्यापार एवं वाणिज्य

  • जर्मनी

उस समय जर्मनी को Vimar Republic बोला जाता था। जर्मनी के संविधान से निम्न चीजें भारतीय संविधान में ली गई है-
आपातकाल में मूल अधिकारों का निलंबन

  • फ्रांस

फ्रांसीसी संविधान से भारतीय संविधान को निम्न चीजों की प्रेरणा मिली
गणराज्य स्वतंत्रता समानता एवं बंधुता

  • रूस

रूसी संविधान से मूल कर्तव्य एवं सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्रेरित हैं

  • जापान

विधि के द्वारा स्थापित प्रक्रिया भारतीय संविधान में जापानी संविधान से ली गई है।

इन्हीं सब कारणों से भारतीय संविधान को उधार का थैला भी कहा जाता है। लेकिन हमने आज के इस पोस्ट में आपको यह बताने की कोशिश की है कि विभिन्न देशों की भिन्न-भिन्न विशेषताएं यदि एक साथ किसी एक देश के संविधान में मौजूद हैं तो वह भारतीय संविधान की है। भारतीय संविधान को उधार का थैला, कॉपी पेस्ट का पिटारा एवं कोई अन्य नाम देने वाले पहले यह समझे कि तत्कालिक समय में भारतीय जनमानस की राजनीतिक सोच कितनी सीमित थी। लेकिन इसके बावजूद भी संविधान निर्माता राजनेताओं ने अपने समय से आगे की सोच को परिलक्षित करते हुए भारतीय जनमानस को सभी तरह से अधिकार एवं सम्मान पूर्वक जीवन देने के लिए भारतीय संविधान में इन्हीं सभी अच्छी बातों को एक साथ मिलाया।

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