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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

 चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...

Famous Hindi Poet Suryakant Tripathi Nirala की दानवीरता का अद्भुत किस्सा। Abiiinabu ke kisse

Famous Hindi Poet Suryakant Tripathi Nirala की दानवीरता का अद्भुत किस्सा।
Famous Hindi Poet Suryakant Tripathi Nirala की दानवीरता का अद्भुत किस्सा। 

अगर आपने अपने जीवन में कभी भी हिंदी में कविताएं पढ़ी हैं तो आपको एक नाम कभी भूले से नहीं भूलेगा वह नाम है सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपनी कविताओं में करुण रस एवं वियोग श्रृंगार का ऐसा अद्भुत समागम किया है कि उनकी यह विशेषता उन्हें छायावादी युग के चार प्रमुख हस्ताक्षर ओं में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाती है। छायावाद के चार प्रमुख स्तंभ जयशंकर प्रसाद सुमित्रानंदन पंत महादेवी वर्मा और चौथे स्वयं सूर्यकांत त्रिपाठी निराला है। उनकी रचनाएं आम आदमी की पीड़ा एवं उसके संघर्ष को बहुत ही मार्मिकता के साथ प्रदर्शित करती हैं। उनकी कविताओं के मुख्य किरदार कोई महलों में रहने वाले या बड़ी बड़ी जमीन की जिम्मेदारी करने वाले विशेष रूप से संबंध कोई विशेष नवाब अथवा जमीदार नहीं होते थे। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिंदी की उस श्रृंखला के कवि थे जिन्होंने अपनी कविताओं का प्रमुख पात्र सड़क पर पत्थर तोड़ती लड़की, भीख मांगता हुआ भिखारी, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम में मनुष्यों जैसी भावनाओं का प्रदर्शन, अधूरे प्रेम की पीड़ा, सफलता की तलाश में दिन-रात परिश्रम कर रहे विद्यार्थियों की प्रार्थना है।
जो स्वयं की पीड़ा को समझें वह प्राण होता है लेकिन जो स्वयं के साथ किसी दूसरे की पीड़ा को भी समझे सही मायनों में वही महाप्राण होता है। महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपने साथ-साथ समाज के वंचितों का प्रतिनिधित्व किया है। आज उनकी जन्म जयंती की 125 वीं वर्षगांठ के अवसर पर मैं आपको उनका एक किस्सा सुनाता हूं। 

एक बार निराला जी पुरस्कार के ₹1000 लेकर एक तांगे में बैठकर इलाहाबाद की सड़क पर चले जा रहे थे। उसी रास्ते में सड़क के किनारे एक बूढ़ी भिखारिन बैठी थी। वृद्धावस्था में भी हाथ पसार कर वह भीख मांग रही थी। उसे देखकर निराला जी ने तांगा रुकवाया और उसके पास गए।
"आज कितनी भीख मिली"? उन्होंने पूछा
बुढ़िया ने पोपुले मुंह से जवाब दिया "आज सुबह से कुछ भी नहीं मिला, बेटा।"
इस उत्तर को सुनकर निराला जी सोच में पड़ गए कि बेटे के रहते मां भी कैसे मान सकती है।
₹1 गुड़िया के हाथ में रखकर भोले मां अब कितने दिन भीख नहीं मांगोगी?
"3 दिन बेटा" जवाब मिला
"₹10 दे दूं तो"
"20 या 25 दिन"
"₹100 दे दूं तो"
"चार-पांच महीने तक"
चिलचिलाती धूप में सड़क के किनारे मां मांगती रही, बेटा देता रहा। तांगेवाला हक्का-बक्का रह गया। बेटे की जेब हल्की होती गई और मां के भीख ना मांगने की अवधि बढ़ती गई। जब निराला जी ने रुपयों की अंतिम डेरी गुड़या की झोली में उड़ेल दी तो बढ़िया खुशी से चीख उठी "अब कभी भीख नहीं मांगी बेटा कभी भी नहीं।"
निराला जी ने संतोष की सांस ली गुड़िया के चरण छुए और तांगे में बैठकर घर को चल दिए।
प्राण को महाप्राण कर गए।
यह तो केवल एक उदाहरण है यदि आप उनकी कविताओं को पढेंगे तो आपको भी है ज्ञात होगा कि निराला केवल खास इसलिए नहीं थे कि वे आम आदमी के कवि हैं, वह आम आदमी के थे इसीलिए खास थे। अगर आप उनकी कुछ रचनाएं पड़े जैसे 
"वह तोड़ती पत्थर 
देखा मैंने उसको 
इलाहाबाद के पथ पर 
वह तोड़ती पत्थर"
 या फिर 
"वह आता 
दो टूक कलेजे को करता, पछताता
पथ पर आता
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक"
तब आपको यह मालूम पड़ेगा कि निराला ने सड़क पर देखने वाले साधारण से जीवन पर भी कितनी सूक्ष्म दृष्टि डाली है। यदि केवल इन्हीं दो कविताओं का संदर्भ दूं तो शायद ही निराला से पहले कभी किसी ने इस प्रकार समाज के इस वर्ग को प्रदर्शित किया होगा। यदि आपको किसी एक कवि का नाम मालूम है तो कृपया कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं, साथ ही हमको यह जरूर बताएं क्या आपको हमारी आज की यह प्रस्तुति कैसी लगी इसी प्रकार के और किससे एवं कहानियों के लिए आप हमें सब्सक्राइब भी कर सकते हैं।
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