INDIA NEEDS PLANNING TO BEAT COVID-19 SECOND WAVE कोरोना से निपटने के लिए भारत को प्लानिंग की आवश्यकता ।। A Blogpost by Abiiinabu।।
INDIA NEEDS PLANNING TO BEAT COVID-19 SECOND WAVE कोरोना से निपटने के लिए भारत को प्लानिंग की आवश्यकता
जब छोटा था तब से देखता आ रहा था, कभी अम्मा, कभी नानी, कभी बुआ तो कभी मम्मी को। घर में जितना भी दूध आता था वो कभी पूरा इस्तेमाल नहीं होता था। हमेशा एक चौथाई या तिहाई हिस्सा ही पीने या चाय या अन्य कामों में लिया जाता था। बाकि का दूध बचा कर रख दिया जाता था। बचपन में तो समझ नहीं आता था ये सब, वो इसलिए कि दूध बहुत ज़्यादा पसंद नहीं था मुझे। मिडिल क्लास घर के बच्चों को दूध को पीने लायक बनाने के लिए हॉर्लिक्स या बोर्नविटा की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। उनके लिए बस मम्मी की मार या पापा की आँखें ही उस बेस्वाद दूध को पीने लायक बना देती थी। खैर ये पीने की प्रक्रिया की चर्चा फिर कभी। अभी फिलहाल, आगे की बात सुनो। हाँ तो एक बार मम्मी को काम करते देखा तो पाया कि जितना भी दूध आता है उसके ज़रूरत के हिसाब से हिस्से किये जाते हैं। एक पीने के लिए बोले तो रॉ कंसम्पशन, एक हिस्से का पनीर या छास बन जाता है, मतलब प्राइमरी कंसम्पशन। उसके बाद एक हिस्से में तोड़ डालकर उसका दही ज़माने रख दिया जाता है। उससे पहले एक प्रक्रिया और की जाती है वो है सारे दूध को उबालना। दूध उबलने के बाद उसमे मलाई आ जाती है, उसको अलग निकाल लिया जाता है और संभाल कर रख लिया जाता है। जब कई दिनों की मलाई इकट्ठी हो जाती है तो उसको मथनी से मथ कर उसमे से माखन निकाला जाता है और उसको गरम करके घर में ही शुद्ध देसी घी बनाया जाता है।
लेकिन भारतीय महिलाओं के इस कृत्य के पीछे कारण क्या है। मेरे हिसाब से दूध से पनीर, छास, दही, माखन और अंत में घी बनाने की प्रक्रिया में महिलाएं ये निश्चित करती हैं की दूध की पौष्टिकता कैसे लम्बे समय तक घरके सभी सदस्यों को दी जा सकती है। क्यूंकि दूध से घी बनने की प्रक्रिया के जैसे जैसे भिन्न भिन्न उत्पाद बनने लगते हैं वैसे वैसे दूध की ख़राब न होने की अवधि भी बढ़ने लगती है; जिस कारण दूध ख़राब नहीं होता और उसकी पौष्टिकता अधिक समय तक और अलग अलग स्वाद में हम सबको मिलती रहती है। साधारण सी दिखने वाली घरेलु महिलायें कितनी लम्बी प्लानिंग करके रखती हैं, ये इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। हम सबने देखा ही होगा अपने अपने घरों में।
वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में यदि इसको बड़े स्तर पर देखे, तो महिलाओं पर घर चलने की जिम्मेदारी होती है, और घर के प्रत्येक सदस्य के खाने पीने की ज़रूरत का ध्यान, उसको कब क्या देना है इसकी पूरी प्लांनिग वो करके रखती हैं। ये देश भी तो एक परिवार की तरह ही है, बेशक इसकी देखभाल करने वाला चुनने के लिए हमे हर पांच साल में मौका मिलता है, तो निश्चित तौर पर ये उस व्यक्ति का दायित्व है कि प्लानिंग कैसे करनी है, क्या प्लानिंग करनी है? इसकी भी प्लानिंग सरकार को करनी चाहिए लेकिन देश में महामारी का यूँ फ़ैल जाना। उसके बचाव के लिए न तो कोई प्लानिंग दिखाई पड़ी है और न पड़ रही है। लोग ऑक्सीजनOxygen Shortage blog की कमी से मर रहे हैं लेकिन अस्पतालों में क्या व्यवस्था बनेगी इसकी भी कोई प्लानिंग नहीं। उधर बंगाल में लोग मर रहे हैं, उधर भी कोई प्लानिंग नहीं। साधारण महिलायें जब इतनी प्लानिंग कर सकती हैं तो सरकार का तो फ़र्ज़ बनता है इस सबके प्रति जबाबदेही का।
आचार्य चाणक्य ने कहा था कि राजधर्म कहता है कि सबसे पहले प्रजा की ज़रूरत का ध्यान रखा जाए। और अब तो गोवा हाई कोर्ट भी ऑक्सीजन की कमी से मौत को नागरिक के लये अनुच्छेद 21 का उल्लंघन मानती है। अब तो जाओ सरकार, अब तो प्लानिंग करो
-Abiiinabu
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Good thoughts, keep it up, ����
जवाब देंहटाएं����✌️✌️
जवाब देंहटाएंShukriya madam!!!
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