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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

 चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...

Oxygen Shortage पहले से पता था क्या होने वाला है || blog by Abiiinabu||

Oxygen Shortage is now common in India, Oxygen Shortage पहले से पता था क्या होने वाला है?

    अगस्त 2017 की बात है, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर  में एक सरकारी सहायता प्राप्त अस्पताल में अचानक 63 बच्चों की मौत की खबर सुनकर हाहाकार मच गया।  कारण था BRD हॉस्पिटल  में ऑक्सीजन सिलिंडर की कमी। अस्पताल की सेंट्रल ऑक्सीजन पाइपलाइन सप्लाई में भी 2 घंटे की ऑक्सीजन की मात्रा का अलार्म बजने लगा और उसी के साथ बजने लगी डॉक्टरों को बच्चों को बचाने की उम्मीद।  BRD हॉस्पिटल के स्टाफ को और सरकार दोनों को बार बार अपना बकाया चुकाने के लिए रिमाइंडर के तौर पर लेटर लिखे जा रहे थे। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने, और न अस्पताल प्रशाशन ने किसी भी पत्र का जवाब दिया।  जिससे हार कर अस्पताल को ऑक्सीजन उपलब्ध करने वाली कंपनी ने ऑक्सीजन की सप्लाई बंद कर दी। 10 अगस्त की सुबह ऑक्सीजन ख़तम का अलार्म बजने के साथ, बच्चों की मौत का तांडव शुरू हो गया। इधर इन सब से बेखबर बाकी लोग दिमागी बुखार से ग्रस्त बच्चों को भर्ती करवाने के लिए उनके माता पिता आ रहे थे।  अस्पताल में भीड़ बढ़ रही थी, और पहले से भर्ती बच्चों की हालत बिगड़ रही थी।  उसी समय बहुत थोड़े से समय अंतराल में 33 बच्चों की ऑक्सीजन न होने की वजह से मौत हो गई और उसके 48 घंटे के अंदर 30 बच्चों की जान और चली गई।  

हॉस्पिटल के सीनियर पेडिअट्रिशन Dr. Kafeel Khan ने अपने 16 जूनियर डॉक्टरों के साथ मिल कर अपने पैसे से 500 ऑक्सीजन सिलिंडर का जुगाड़ कर लिए और बहुत से बच्चों की जान बचा ली। उसके बाद 13 अगस्त की सुबह ऑक्सीजन सेवा बहाल हुई और मौत का ये सिलसिला थमा।  जब मीडिया को ये खबर पता चली तो उन्होंने डॉक्टर कफील खान को हीरो की तरह सम्मान दिया और सिस्टम की खामियों के बारे में लिखना शुरू कर दिया और इसी कारण मामले ने तूल पकड़ लिया।  सिस्टम की अनदेखी की वजह से ये हादसा हुआ था और सरकारी अस्पताल होने की वजह से इसकी जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की थी लेकिन सरकार ने अपनी खामियों को छुपाने के लिए एक बलि के बकरे की तरह डॉक्टर कफील खान को पेश किया और इन मौतों का ठीकरा उन्ही के सर फोड़ दिया।  22 अगस्त को बैठे गई जांच रिपोर्ट में डॉक्टर कफील खान को 9 अन्य सहयोगियों के साथ सस्पेंड कर दिया गया और उनको अरेस्ट कर लिया।  हॉस्पिटल हेड डॉक्टर आर के मिश्रा को भी गिरफ्तार किया जाता है।  रिपोर्ट देने के लिए ढाई साल का समय लगा दिया। 



लेकिन आज मैं आपको ये क्यों बता रहा हूँ ? ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे उत्तर प्रदेश प्रशाशन को उसकी कमियां दिखाने के जुर्म में, एक सच में मदद करने वाले इंसान को फसाया गया , एक बाप से उसकी बच्ची का बचपन देखने का हसीं सपना छीन लिया गया।  क्यों , क्यूंकि उन्होंने इस सिस्टम से लड़ने की उसको उसकी कमियां दिखाने की उसकाा आइना दिखाने की जुर्रत की थी। हमारे देश में जब तक कोई हादसा बहुत बड़ा न हो जाये तब तक वो हादसा माना ही नहीं जाता।  उसको मजाक बना कर रख दिया जाता है।  अगर उत्तर प्रदेश सरकार या केंद्र सरकार दोनों में से किसी ने भी इस हादसे से सबक लिया होता तो आज कोरोना की वजह से ऑक्सीजन लेवल कम होने की वजह से जो लोग मर रहे हैं उनमे से बहुतों की जान बचाई जा सकती थी। 

इस देश में नेता मरते लोगो तक को नहीं छोड़ते, अभी हाल ही में मेरी पहचान की एक महिला की माता जी का इसी वजह से निधन हो गया। ऑक्सीजन सिलिंडर के लिए बोला तो अस्पताल से जवाब मिला की अगर किसी नेता से जान पेहचान हो तो मिल सकती है। मुझे यह समझ नही  आया अगर जान पहचान से ही इलाज हो रहे हैं तो ये सब ढकोसले क्यों किये जा रहे हैं, साफ़ साफ़ बोर्ड पर लिख क्यों नहीं देते की हमारे यहाँ बस जान पहचान वालों का इलाज किया जाता है।  इसके बाद दूसरा पहल यह है कि एक मरीज जिसका ऑक्सीजन लेवल 58 तक आ गया है उसके परिवार वाले तो उसको बचने के लिए तो कुछ भी करेंगे न, तो उन लोगों ने भी किया एक लोकल नेता से पहचान निकाली और उसको समस्या बताई तो नेताजी का जवाब सुनिए।  नेताजी कहिन कि अस्पताल में कुछ भी होना मुश्किल है आप उन को घर ले जाओ और योग करवाओ।  अब यदि नेताजी के घर का कोई ऐसी स्थितिओं में होता तो नेताजी अपना पराक्रम दिखाते या उसको योग करवाते?

आज उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में ऑक्सीजन सिलिंडर को लेकर जो स्थिति है वो सुधर सकती थी अगर हमने डॉक्टर कफील अहमद को सीरियसली लिया होता तो।  लेकिन हमको तो सच्चाई दिखाने वाले कि जात देखनी है, उसका मज़हब देखना है।  मुझे याद है जब बच्चे मरे तो कैसे उस डॉक्टर को मज़हबी जिहादी बताया गया कैसे उसकी ड्यूटी करने के लिए उसको जेल में डाला गया ।  अब भी समय है, बाहर लहर चल रही है इंसानियत को बचाने की, अगर नहीं तैर सके तो डूब जायेंगे।  हर चीज़ में मजहब ढूंढ़ना बंद करो, इंसानियत से बड़ा कोई मजहब नहीं ये कब समझोगे।  

इस जुल्म की दुनिया में जुबां खोलेगा कौन ? 
अगर हम भी चुप रहेंगे तो बोलेगा कौन?

-Abiiinabu




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The Story of Yashaswi Jaiswal

जिस 21 वर्षीय यशस्वी जयसवाल ने ताबड़तोड़ 98* रन बनाकर कोलकाता को IPL से बाहर कर दिया, उनका बचपन आंसुओं और संघर्षों से भरा था। यशस्‍वी जयसवाल मूलरूप से उत्‍तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। वह IPL 2023 के 12 मुकाबलों में 575 रन बना चुके हैं और ऑरेंज कैप कब्जाने से सिर्फ 2 रन दूर हैं। यशस्वी का परिवार काफी गरीब था। पिता छोटी सी दुकान चलाते थे। ऐसे में अपने सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ 10 साल की उम्र में यशस्वी मुंबई चले आए। मुंबई में यशस्वी के पास रहने की जगह नहीं थी। यहां उनके चाचा का घर तो था, लेकिन इतना बड़ा नहीं कि यशस्वी यहां रह पाते। परेशानी में घिरे यशस्वी को एक डेयरी पर काम के साथ रहने की जगह भी मिल गई। नन्हे यशस्वी के सपनों को मानो पंख लग गए। पर कुछ महीनों बाद ही उनका सामान उठाकर फेंक दिया गया। यशस्वी ने इस बारे में खुद बताया कि मैं कल्बादेवी डेयरी में काम करता था। पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और थोड़ी देर के लिए सो जाता था। एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता। नौकरी तो गई ही, रहने का ठिकान...

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