.. जब समोसा 50 पैसे का लिया करता था तो ग़ज़ब स्वाद होता था... आज समोसा 10 रुपए का हो गया, पर उसमे से स्वाद चला गया... अब शायद समोसे में कभी वो स्वाद नही मिल पाएगा.. बाहर के किसी भोजन में अब पहले जैसा स्वाद नही, क़्वालिटी नही, शुद्धता नही.. दुकानों में बड़े परातों में तमाम खाने का सामान पड़ा रहता है, पर वो बेस्वाद होता है.. पहले कोई एकाध समोसे वाला फेमस होता था तो वो अपनी समोसे बनाने की गुप्त विधा को औऱ उन्नत बनाने का प्रयास करता था... बड़े प्यार से समोसे खिलाता, औऱ कहता कि खाकर देखिए, ऐसे और कहीं न मिलेंगे !.. उसे अपने समोसों से प्यार होता.. वो समोसे नही, उसकी कलाकृति थे.. जिनकी प्रसंशा वो खाने वालों के मुंह से सुनना चाहता था, औऱ इसीलिए वो समोसे दिल से बनाता था, मन लगाकर... समोसे बनाते समय ये न सोंचता कि शाम तक इससे इत्ते पैसे की बिक्री हो जाएगी... वो सोंचता कि आज कितने लोग ये समोसे खाकर वाह कर उठेंगे... इस प्रकार बनाने से उसमे स्नेह-मिश्रण होता था, इसीलिए समोसे स्वादिष्ट बनते थे... प्रेमपूर्वक बनाए और यूँ ही बनाकर सामने डाल दिये गए भोजन में फर्क पता चल जाता है, ...
सुभद्रा कुमारी चौहन SUBHADRA KUMARI CHAUHAN कवित्री जिसने सिद्ध किया वीर रस केवल मर्दों की जागीर नहीं है
कहने को तो स्त्री कोमल है, और पुरुष मजबूत। लेकिन एक स्त्री किसी भी पुरुष के भावुक रूप से सबसे अधिक प्रभावित होती है। यही स्थिति पुरुष के साथ भी है, वे मजबूत होते हैं, वे सोचते भी हैं कि स्त्री कोमल है, और ये उनको अवगत भी है, लेकिन सब कुछ जानने के बाद भी वे सबसे अधिक प्रभावित स्त्री के मजबूत पक्ष से ही होते हैं।
सुभद्रा कुमारी चौहन |
हमारा समाज भी जो पुरुष प्रधान है, इसमें दो राय नहीं है। यह समाज किसी स्त्री का परिश्रम उसका संघर्ष तब ही स्वीकार करता है, जब वह स्त्री इसी पुरुष प्रधान समाज में रहते हुए, इन्ही पुरुषों के बनाए नियमों में बंधने के बाद भी इसी पुरुष प्रधान समाज को धता बता देती है। शायद समाज का दोगलापन भी इसी को कहते हैं, कुछ हद तक ये ठीक भी है ( व्यवहार नही, स्टेटमेंट)।
इसी विचारधारा को तोड़ने के लिए ही साहित्य जगत में सुभद्रा कुमारी चौहान का अवतरण हुआ होगा। मुझे याद नहीं किसी किताब में उनकी कोई ऐसी कविता छपी हो जिसमे स्त्री के प्रेम को प्रदर्शित किया गया हो। सुभद्रा जी को शायद यह बात पहले से ज्ञात थी कि यह समाज केवल संघर्षशील महिला को ही याद रख पाएगा। इसीलिए उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की प्रेम कहानी का वर्णन नहीं किया। बल्कि उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई को "मर्दानी" घोषित किया और चरित्र चित्रण करते समय इस बात का ध्यान भी रखा कि कहीं पौरुषिक मानसिकता से ग्रसित यह समाज इस वीरांगना को कोई साधारण स्त्री ना समझ बैठे। उन्होंने इस वीरांगना का चरित्र कुछ ऐसे गढ़ा है कि सदियों बाद भी इस वीरांगना को याद करते समय स्त्री तो स्त्री, पुरुष भी प्रेरित होता रहे। लेकिन साहित्य से प्रेम करने वाले जानते होंगे कि सुभद्रा जी यदि "खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी" जैसा वीर रस लिख सकती है तो "बहुत दिनो तक हुई परीक्षा, अब रूखा व्यवहार न हो, अजी, बोल तो लिया करो तुम चाहे मुझ पर प्यार ना हो" जैसा श्रृंगार भी गढ़ सकती हैं।
सुभद्रा कुमारी चौहान जी को जन्म जयंती पर शत शत नमन 🔥🚩🙏
अद्भुत
जवाब देंहटाएंउत्तम.... अति उत्तम..!!
हटाएंउत्तम ..... अति उत्तम
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