त्यागपत्र: एक अंतर्मुखी पीड़ा की कहानी जैनेंद्र कुमार का उपन्यास 'त्यागपत्र' भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह उपन्यास मृणाल की कहानी है, जो अपने पति प्रमोद के द्वारा त्याग दी जाती है। कहानी मृणाल के अंतर्मुखी पीड़ा, सामाजिक बंधनों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संघर्ष को दर्शाती है। जैनेंद्र कुमार की लेखन शैली सरल और गहरी है। उन्होंने मृणाल के मन की उलझनों और भावनात्मक जटिलताओं को बहुत ही संवेदनशील तरीके से चित्रित किया है। कहानी में सामाजिक रूढ़ियों और व्यक्तिगत इच्छाओं के बीच का द्वंद्व स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। मृणाल का त्यागपत्र केवल एक शारीरिक त्यागपत्र नहीं है, बल्कि यह उसके आंतरिक संघर्ष और मुक्ति की खोज का प्रतीक है। उपन्यास में प्रमोद का चरित्र भी जटिल है। वह एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है जो सामाजिक दबावों और अपनी कमजोरियों के कारण मृणाल को त्याग देता है। यह उपन्यास उस समय के समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके संघर्षों पर प्रकाश डालता है। 'त्यागपत्र' एक ऐसा उपन्यास है जो पाठक को सोचने पर मजबूर करता है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजि...
सुभद्रा कुमारी चौहन SUBHADRA KUMARI CHAUHAN कवित्री जिसने सिद्ध किया वीर रस केवल मर्दों की जागीर नहीं है
कहने को तो स्त्री कोमल है, और पुरुष मजबूत। लेकिन एक स्त्री किसी भी पुरुष के भावुक रूप से सबसे अधिक प्रभावित होती है। यही स्थिति पुरुष के साथ भी है, वे मजबूत होते हैं, वे सोचते भी हैं कि स्त्री कोमल है, और ये उनको अवगत भी है, लेकिन सब कुछ जानने के बाद भी वे सबसे अधिक प्रभावित स्त्री के मजबूत पक्ष से ही होते हैं।
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सुभद्रा कुमारी चौहन |
हमारा समाज भी जो पुरुष प्रधान है, इसमें दो राय नहीं है। यह समाज किसी स्त्री का परिश्रम उसका संघर्ष तब ही स्वीकार करता है, जब वह स्त्री इसी पुरुष प्रधान समाज में रहते हुए, इन्ही पुरुषों के बनाए नियमों में बंधने के बाद भी इसी पुरुष प्रधान समाज को धता बता देती है। शायद समाज का दोगलापन भी इसी को कहते हैं, कुछ हद तक ये ठीक भी है ( व्यवहार नही, स्टेटमेंट)।
इसी विचारधारा को तोड़ने के लिए ही साहित्य जगत में सुभद्रा कुमारी चौहान का अवतरण हुआ होगा। मुझे याद नहीं किसी किताब में उनकी कोई ऐसी कविता छपी हो जिसमे स्त्री के प्रेम को प्रदर्शित किया गया हो। सुभद्रा जी को शायद यह बात पहले से ज्ञात थी कि यह समाज केवल संघर्षशील महिला को ही याद रख पाएगा। इसीलिए उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की प्रेम कहानी का वर्णन नहीं किया। बल्कि उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई को "मर्दानी" घोषित किया और चरित्र चित्रण करते समय इस बात का ध्यान भी रखा कि कहीं पौरुषिक मानसिकता से ग्रसित यह समाज इस वीरांगना को कोई साधारण स्त्री ना समझ बैठे। उन्होंने इस वीरांगना का चरित्र कुछ ऐसे गढ़ा है कि सदियों बाद भी इस वीरांगना को याद करते समय स्त्री तो स्त्री, पुरुष भी प्रेरित होता रहे। लेकिन साहित्य से प्रेम करने वाले जानते होंगे कि सुभद्रा जी यदि "खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी" जैसा वीर रस लिख सकती है तो "बहुत दिनो तक हुई परीक्षा, अब रूखा व्यवहार न हो, अजी, बोल तो लिया करो तुम चाहे मुझ पर प्यार ना हो" जैसा श्रृंगार भी गढ़ सकती हैं।
सुभद्रा कुमारी चौहान जी को जन्म जयंती पर शत शत नमन 🔥🚩🙏
अद्भुत
जवाब देंहटाएंउत्तम.... अति उत्तम..!!
हटाएंउत्तम ..... अति उत्तम
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