चम्बल का इतिहास क्या हैं? ये वो नदी है जो मध्य प्रदेश की मशहूर विंध्याचल पर्वतमाला से निकलकर युमना में मिलने तक अपने 1024 किलोमीटर लम्बे सफर में तीन राज्यों को जीवन देती है। महाभारत से रामायण तक हर महाकाव्य में दर्ज होने वाली चम्बल राजस्थान की सबसे लम्बी नदी है। श्रापित और दुनिया के सबसे खतरनाक बीहड़ के डाकुओं का घर माने जाने वाली चम्बल नदी मगरमच्छों और घड़ियालों का गढ़ भी मानी जाती है। तो आईये आज आपको लेकर चलते हैं चंबल नदी की सेर पर भारत की सबसे साफ़ और स्वच्छ नदियों में से एक चम्बल मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में महू छावनी के निकट स्थित विंध्य पर्वत श्रृंखला की जनापाव पहाड़ियों के भदकला जलप्रपात से निकलती है और इसे ही चम्बल नदी का उद्गम स्थान माना जाता है। चम्बल मध्य प्रदेश में अपने उद्गम स्थान से उत्तर तथा उत्तर-मध्य भाग में बहते हुए धार, उज्जैन, रतलाम, मन्दसौर, भिंड, मुरैना आदि जिलों से होकर राजस्थान में प्रवेश करती है। राजस्थान में चम्बल चित्तौड़गढ़ के चौरासीगढ से बहती हुई कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, करोली और धौलपुर जिलों से निकलती है। जिसके बाद ये राजस्थान के धौलपुर से दक्षिण की ओर
सुभद्रा कुमारी चौहन SUBHADRA KUMARI CHAUHAN कवित्री जिसने सिद्ध किया वीर रस केवल मर्दों की जागीर नहीं है
कहने को तो स्त्री कोमल है, और पुरुष मजबूत। लेकिन एक स्त्री किसी भी पुरुष के भावुक रूप से सबसे अधिक प्रभावित होती है। यही स्थिति पुरुष के साथ भी है, वे मजबूत होते हैं, वे सोचते भी हैं कि स्त्री कोमल है, और ये उनको अवगत भी है, लेकिन सब कुछ जानने के बाद भी वे सबसे अधिक प्रभावित स्त्री के मजबूत पक्ष से ही होते हैं।
सुभद्रा कुमारी चौहन |
हमारा समाज भी जो पुरुष प्रधान है, इसमें दो राय नहीं है। यह समाज किसी स्त्री का परिश्रम उसका संघर्ष तब ही स्वीकार करता है, जब वह स्त्री इसी पुरुष प्रधान समाज में रहते हुए, इन्ही पुरुषों के बनाए नियमों में बंधने के बाद भी इसी पुरुष प्रधान समाज को धता बता देती है। शायद समाज का दोगलापन भी इसी को कहते हैं, कुछ हद तक ये ठीक भी है ( व्यवहार नही, स्टेटमेंट)।
इसी विचारधारा को तोड़ने के लिए ही साहित्य जगत में सुभद्रा कुमारी चौहान का अवतरण हुआ होगा। मुझे याद नहीं किसी किताब में उनकी कोई ऐसी कविता छपी हो जिसमे स्त्री के प्रेम को प्रदर्शित किया गया हो। सुभद्रा जी को शायद यह बात पहले से ज्ञात थी कि यह समाज केवल संघर्षशील महिला को ही याद रख पाएगा। इसीलिए उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की प्रेम कहानी का वर्णन नहीं किया। बल्कि उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई को "मर्दानी" घोषित किया और चरित्र चित्रण करते समय इस बात का ध्यान भी रखा कि कहीं पौरुषिक मानसिकता से ग्रसित यह समाज इस वीरांगना को कोई साधारण स्त्री ना समझ बैठे। उन्होंने इस वीरांगना का चरित्र कुछ ऐसे गढ़ा है कि सदियों बाद भी इस वीरांगना को याद करते समय स्त्री तो स्त्री, पुरुष भी प्रेरित होता रहे। लेकिन साहित्य से प्रेम करने वाले जानते होंगे कि सुभद्रा जी यदि "खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी" जैसा वीर रस लिख सकती है तो "बहुत दिनो तक हुई परीक्षा, अब रूखा व्यवहार न हो, अजी, बोल तो लिया करो तुम चाहे मुझ पर प्यार ना हो" जैसा श्रृंगार भी गढ़ सकती हैं।
सुभद्रा कुमारी चौहान जी को जन्म जयंती पर शत शत नमन 🔥🚩🙏
अद्भुत
जवाब देंहटाएंउत्तम.... अति उत्तम..!!
हटाएंउत्तम ..... अति उत्तम
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