चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा प्रस्तावना हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...
सन दो हजार के दशक में युवा हुए लड़कों में अधिकांश ऐसे हैं जिनके होठों पर सानिया मिर्जा का नाम आते ही एक रोमांटिक मुस्कान तैर उठती है। सब उनसे प्रेम करते थे। वे इकलौती गैर सिनेमाई लड़की थीं जिसकी तस्वीरें हीरोइनों से अधिक बिकीं और लड़कों के कमरों की दीवालों पर टँगी थी। क्षेत्रीय भाषाओं में सैकड़ों लोकगीत बने उनके नाम पर, और शायद ही कोई पत्रिका हो जिसकी कवर स्टोरी न रही हो सानिया पर।
सानिया मिर्जा पिछले दशक में नारीवाद की सबसे मजबूत प्रतीक रही हैं। एक दकियानूसी बैकग्राउंड से निकल कर कभी "छोटे कपड़ों" के के लिए तो कभी खेलने को लेकर जारी हुए फतवों से जूझते हुए सफलता के शिखर पर पहुँची सानिया छा गयी थीं। उनकी उपलब्धियों पर भारत झूमता था।
भारत में स्त्रीवाद जब असफल लेखिकाओं का प्रलाप भर रह गया था, तब सानिया ने बताया कि मजबूत स्त्री होने का अर्थ सुबह से शाम तक पुरुषों को गाली देना नहीं है, बल्कि पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में भी अपना सशक्त स्थान बना लेना है। उसने अपने जीवन के लिए अनेक निर्भीक निर्णय लिए। परिवार द्वारा तय की गई शादी से अंतिम क्षण में इनकार कर अपनी सगाई तोड़ देना हो, या भारत के परंपरागत शत्रु देश में विवाह करने का निर्णय लेना हो... या फिर उतनी सफलता के बाद भी किसी तलाकशुदा से विवाह का निर्णय, इसके लिए बड़े साहस की आवश्यकता थी। पाकिस्तानी से विवाह करना उनके परिवार को भले कम चुभा हो, पर उनके भारतीय प्रसंशकों को बहुत अखड़ी थी यह बात। खैर...
सानिया उन विषयों पर भी निर्भीकता से बोल देती थीं, जिसपर उनके समाज की लड़कियां सोच भी नहीं पातीं। यह बहुत बड़ी बात थी।
हमारी पीढ़ी की महिलाओं के लिए ज़रूरी यह है कि जितना उन में आधुनिकता बोध है उतना ही परम्परा बोध भी बचा रहे क्योंकि गलत परम्पराओं के कांटे सबके पैरों में चुभते हैं।
आज उन्होंने अपने प्रिय खेल से सन्यास ले लिया है, ग्रैंड स्लैम में नहीं दिखेंगी अब वो। रूंधे गले से आज जब वो अपने सन्यास का ऐलान कर रहीं थीं तो कहीं न कहीं मुझे मेरा बचपन भी जाता दिख रहा था। सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग, महेंद्र सिंह धोनी, रोजर फ़ेडरर, माइकल फिलिप्स, सेरेना विलियम्स सब तो चले गए। सानिया मिर्जा का जाना भारतीय टेनिस जगत में एक वास्तविक शून्य को जन्म देगा, क्योंकि शायद अभी तक कोई भी खिलाड़ी खासकर महिला खिलाड़ी उस स्तर पर नहीं आ पाई है। ना खेल में न अपने प्रदर्शन के दम पर समाज को आइना दिखाने में।
लेकिन हर 90s वाले बच्चे की हीरोइन वो रहीं हैं।
सानिया के भविष्य के लिए हमारी शुभकामनाएं हैं। आगे आगे देखते हैं...
#SaniaMirzaRetirement #saniamirzafans #SaniaMirza #sania
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubt please let me know.