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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

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किस्सा: महाराजकुमार हनवंत सिंह, राजकुमार जो बंदूक बनाता था



 जब भी रियासत काल पर कुछ लिखा या बोला जाता है तो हमारे राजा महाराजा राजकुमारों की छवि ऐसे पेश की जाती है जैसे वो एकदम निक्कमे थे ओर बहुत पिछड़ी सोच के धनी थे, उनका बचपन जवानी मौज मस्ती व शराब ओर अयासी में बीत जाता था यह आम धारणा है।


उदाहरण के लिए आप महाराजकुमार हनवंत सिंह के जवानी के दिनों के बारे जानकार समझे कि वो कितने प्रतिभाशाली थे लेकिन इसके उल्ट उनकी छवि सबसे ज्यादा बिगाड़ी गई।


महाराजा हनवंत सिंह जोधपुर बचपन से ही Firearm बनाने में रूचि रखते थे, जब महाराजकुमार हनवंत सिंह मेयो कॉलेज व govt कॉलेज अजमेर में पढ़ते थे तब से वो इस विषय पर प्रयोग करने लगे थे ।


1942 में महाराजकुमार हनवंत सिंह ने ऐसी टॉमीगन का आविष्कार कर लिया जो वजन में हल्की थी, उसकी आवाज कम थी, उसे आसानी से चलाया जा सकता था ओर एक साथ इतने कारतूस छोड़े जा सकते थे जो विश्व की किसी भी अन्य टॉमीगन से छोड़े जाने वाले कारतूसों से अधिक थे 


महाराजकुमार हनवंत सिंह के बनाए गए इस टॉमिगन को भारतीय सेना के मास्टर जनरल ऑफ ऑर्डिनेंस, लेफ्टिनेंट जनरल सी. ए. बर्ड ने भारत सरकार के शस्त्र बनाने वाले ईसापुर संस्थान को भेजा । ईसापुर संस्थान ने प्रशिक्षण के बाद इस टॉमिगन को बहुत उपयोगी पाया व संस्थान के निदेशक ने इस टॉमिगन की लिखित प्रशंसा की ।


महाराजकुमार हनवंत सिंह ने अत्यन्त छोटे पिस्तौल बनाने का भी प्रयोग किया और अंत मे वो पैन–पिस्तौल बनाने मे सफल रहे, वे एक पैन–पिस्तौल हमेशा अपने साथ रखते थे।


भारतीय सेना के •303 राइफल मे भी महाराजकुमार हनवंत सिंह ने कई सुधार किए थे ।


यह सब महाराजकुमार हनवंत सिंह जोधपुर के विद्यार्थी जीवन की उपलब्धियां थी ।


महाराजकुमार हनवंत सिंह ने प्रशिक्षण काल में भी शस्त्रास्त्र निर्माण के प्रशिक्षण चालू रखें । सन 1945 तक उन्होंने एक अनोखी 9 एम./एम. कार्बाइन बंदूक बनाने में सफलता प्राप्त कर ली ।

इस बंदूक को भी भारत सरकार ने ईसापुर स्थित कारखाने में प्रशिक्षण के लिए भेजा । वहां विस्तृत प्रशिक्षणों के पश्चात वहां के प्रभारी अधिकारी ने प्रतिवेदन दिनांक 10 जनवरी 1946 में लिखा कि - "यह बंदूक बड़ी उपयोगी प्रमाणित हो सकती है । इस बंदूक की विशेषताओं के लिए महाराजकुमार हनुमत सिंह कि सराहना की जानी चाहिए ।।

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