वक्फ
वक्फ बोर्ड के भारत का तीसरा बड़ा जमींदार है।कुछ नौ लाख एकड़ से ज्यादा जमीन इस बोर्ड के पास है ।इस की कुल कीमत एक लाख बीस हजार करोड़ रुपए है !गोधरा काण्ड के बाद २००५ के समय पर देश के मुस्लिम समाज के शिक्षा और आर्थिक मामले जुड़े क्या हालात है ये जानने के लिए तत्कालीन प्रधान मंत्री डॉक्टर मन मोहन सिंग ने दिल्ली हाई कोर्ट के फॉर्मर चीफ जस्टिस राजिंदर सच्चर साहब के मार्गदर्शन में एक कमिटी बिठाई जिसे हम सच्चर कमिटी कहते है।इस कमिटी ने अपनी राय संसद को सौंप दी।इस में सच्चर साहब ने कहा था की इतनी वैल्यू वाली जमीन का साल का जो भी इनकम, भाड़ा , रेंट जो भी आप कहो वो आता है वो सिर्फ डेढ़ सौ करोड़ रुपए है ! आम तौर पर अगर एक करोड़ की कोई स्थाई प्रॉपर्टी आप के पास है तो दो से तीन लाख कम से कम आप साल के बना लेते है ।चाहे रेंट पर देकर हो या जमीन हो तो रेंट या खेती बाड़ी कर के हो ! बाकी हजारों करोड़ जा कहा रहे है ?इस की तह तक जाना पड़ेगा !ये बोर्ड ही मुस्लिम अल्पसंख्य समाज के कल्याण के लिए बना है तो फिर इस की मिल्कियत कहा जा रही है ?
अब ये राय को डस्टबिन में डाल कर २००५ और २०१३ में महान प्रधान मंत्री मन मोहन जी ने ऐसे बदलाव किए जिस से वक्फ को असीमित अधिकार मिले। जमीनें कब्जा करने के अधिकार ही प्राप्त हो गए ।
पहली बात,ये बोर्ड से मुस्लिम समाज का भला होता तो हमें नजर नहीं आता है।भला होता तो राहुल गांधी के बांटे आठ हजार देने के चुनावी वायदे के पर्चे लेकर ये समाज कलेक्टर ,तहसील ऑफिस और बैंक के बाहर हल्ला नही करता! फिर भला किस का हो रहा है ? बस उन्ही का हो रहा है जो कल संसद में वक्फ बोर्ड में सुधार वाले विधेयक को लेकर गुस्सा होकर चिल्ला रहे थे ! ओवैसी जैसे का हम समझ भी सकते है लेकिन कुछ नाम देखिए। महाराष्ट्र से एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले का कहना है की बांग्लादेश में जो अल्पसंख्य लोग के साथ हो रहा वो हम हमारे देश में हमारे अल्पसंख्य लोग के साथ होने नही देंगे ! एक तो मुस्लिम समाज भारत में अल्पसंख्य है यही सब से बड़ा मजाक है।बांग्लादेश में अल्पसंख्य हिंदू समाज या बाकी अल्पसंख्य समाजों को जमीन से जुड़े असीमित अधिकार देने वाला कौन सा बोर्ड है दीदी?अब ये सुधार वाले विधेयक में कहा गया है की वक्फ बोर्ड के कंट्रोल पैनल में अब संसद में लोकनीयुक्त नेता और कलेक्टर लोगो को स्थान दिया जायेगा।इस पर तमिलनाडु के सीएम की बहन सांसद कनिमोझी का कहना था की ये तो ऐसे होगा की मंदिरों से जुड़े व्यवस्थापन में नॉन हिंदू बैठे है ! दीदी ,तुम और तुम्हारा सीएम भाई सार्वजनिक तौर पर खुद को नास्तिक कहते हो न ?फिर भी तमिलनाडु के मंदिरों पर हक जमाए बैठे हो या नही ? मंदिर और वक्फ बोर्ड की कैसी तुलना? वक्फ मस्जिद नही,जमीनों से जुड़ा विषय है।
कुछ बत्तीस के आसपास वक्फ बोर्ड है जिस में दो शिया है और बाकी सुन्नी।मुस्लिम लोग में अहमदिया ,बोहरा , आगा खान जैसे और भी वर्ग है उन के लिए क्या है ? वक्फ के ठेकदारों लोग और कुछ नेताओं को ये डर है की संसद के कुछ पढ़े लिखे नेता इस बोर्ड कमिटी में आए तो इन की ठेकेदारी,भ्रष्टाचार और वक्फ के नाम पर जो भी हवाला चल रहा वो बंद हो जाएगा!
एक लोक तांत्रिक संवैधानिक देश में एक ही न्याय व्यवस्था और एक ही व्यवस्था होनी चाहिए।वक्त जैसी संस्थाओं का एक संवैधानिक देश में कोई स्थान नहीं है।अगर है तो उसे उखाड़ कर फेंक देना चाहिए!
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