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MSD The Disaster

 महेंद्र सिंह धोनी ने छुपने के लिए वो जगह चुनी, जिस पर करोड़ों आँखें लगी हुई थीं! वो जीज़ज़ की इस बात को भूल गए कि "पहाड़ पर जो शहर बना है, वह छुप नहीं सकता!" ठीक उसी तरह, आप आईपीएल में भी छुप नहीं सकते। कम से कम धोनी होकर तो नहीं। अपने जीवन और क्रिकेट में हर क़दम सूझबूझ से उठाने वाले धोनी ने सोचा होगा, एक और आईपीएल खेलकर देखते हैं। यहाँ वे चूक गए। क्योंकि 20 ओवर विकेट कीपिंग करने के बाद उनके बूढ़े घुटनों के लिए आदर्श स्थिति यही रह गई है कि उन्हें बल्लेबाज़ी करने का मौक़ा ही न मिले, ऊपरी क्रम के बल्लेबाज़ ही काम पूरा कर दें। बल्लेबाज़ी का मौक़ा मिले भी तो ज़्यादा रनों या ओवरों के लिए नहीं। लेकिन अगर ऊपरी क्रम में विकेटों की झड़ी लग जाए और रनों का अम्बार सामने हो, तब क्या होगा- इसका अनुमान लगाने से वो चूक गए। खेल के सूत्र उनके हाथों से छूट गए हैं। यह स्थिति आज से नहीं है, पिछले कई वर्षों से यह दृश्य दिखाई दे रहा है। ऐसा मालूम होता है, जैसे धोनी के भीतर अब खेलने की इच्छा ही शेष नहीं रही। फिर वो क्यों खेल रहे हैं? उनके धुर-प्रशंसक समय को थाम लेना चाहते हैं। वे नश्वरता के विरुद्ध...

Lajja book by Tasleema Nasreen Review

 

लज्जा: एक समीक्षा

तसलीमा नसरीन का उपन्यास 'लज्जा' 1993 में प्रकाशित हुआ था और इसने तुरंत ही विवादों का बवंडर खड़ा कर दिया था। बांग्लादेश की पृष्ठभूमि पर आधारित यह उपन्यास, एक हिंदू परिवार के जीवन के माध्यम से, सांप्रदायिक हिंसा, धार्मिक कट्टरता, और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के गंभीर मुद्दों को उठाता है। यह समीक्षा 'लज्जा' के साहित्यिक, सामाजिक, और राजनीतिक पहलुओं का विश्लेषण करने का प्रयास है।

कथावस्तु:

उपन्यास की कहानी दत्ता परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है, जो ढाका में रहता है। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद बांग्लादेश में फैली सांप्रदायिक हिंसा के दौरान, यह परिवार अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करता है। सुरंजन, किरणमयी, और उनके बच्चे, अपनी जान बचाने के लिए भागने को मजबूर हो जाते हैं। उपन्यास इस दौरान उनके द्वारा झेली गई पीड़ा, भय, और अनिश्चितता का मार्मिक चित्रण करता है।

साहित्यिक पहलू:

नसरीन की लेखन शैली सीधी और स्पष्ट है। वे बिना किसी लाग-लपेट के, हिंसा और उत्पीड़न के दृश्यों को चित्रित करती हैं, जो पाठक को झकझोर कर रख देता है। उपन्यास की भाषा सरल है, जो इसे व्यापक दर्शकों तक पहुँचाती है। हालाँकि, कुछ आलोचकों का मानना है कि नसरीन का ध्यान सामाजिक मुद्दों पर अधिक और साहित्यिक उत्कृष्टता पर कम है।

सामाजिक पहलू:

'लज्जा' का सबसे महत्वपूर्ण पहलू इसका सामाजिक संदेश है। यह उपन्यास सांप्रदायिक सद्भाव, सहिष्णुता, और मानवाधिकारों की रक्षा की वकालत करता है। यह धार्मिक कट्टरता के ख़तरों और समाज पर इसके विनाशकारी प्रभावों को उजागर करता है। यह अल्पसंख्यकों के मन में बसे भय और असुरक्षा की भावना को भी दर्शाता है।

राजनीतिक पहलू:

'लज्जा' एक राजनीतिक बयान भी है। यह बांग्लादेश में तत्कालीन राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों पर कड़ी टिप्पणी करता है। उपन्यास ने बांग्लादेश में काफी राजनीतिक उथल-पुथल मचाई और नसरीन को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया। इसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लेखकों के अधिकारों के मुद्दे को भी उठाया।

आलोचना:

'लज्जा' की कुछ आलोचनाएँ भी हुई हैं। कुछ आलोचकों का मानना है कि उपन्यास एकतरफा है और इसमें केवल हिंदू दृष्टिकोण को ही दर्शाया गया है। कुछ लोगों ने इसकी भाषा और शैली को भी आलोचना का विषय बनाया है।

निष्कर्ष:

अपनी सीमाओं के बावजूद, 'लज्जा' एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली उपन्यास है। यह सांप्रदायिक हिंसा और धार्मिक कट्टरता के गंभीर मुद्दों पर प्रकाश डालता है और हमें सहिष्णुता और सद्भाव के महत्व को समझने के लिए प्रेरित करता है। यह एक ऐसी किताब है जो पाठक को सोचने पर मजबूर कर देती है और समाज में बदलाव लाने के लिए प्रेरित करती है। भले ही यह उपन्यास विवादों से घिरा रहा हो, लेकिन इसका सामाजिक और राजनीतिक महत्व निर्विवाद है। यह एक ऐसी आवाज़ है जो उन लोगों की पीड़ा को व्यक्त करती है जो अक्सर हाशिए पर धकेल दिए जाते हैं।

संक्षेप में:

'लज्जा' एक शक्तिशाली और उत्तेजक उपन्यास है जो सांप्रदायिक हिंसा के भयावह परिणामों को दर्शाता है। यह एक ज़रूरी किताब है जो हमें इतिहास से सीखने और एक बेहतर भविष्य बनाने के लिए प्रेरित करती है। भले ही यह सभी पाठकों के लिए सहज न हो, लेकिन इसका महत्व और प्रभाव अस्वीकार्य है।

ध्यान दें: यह समीक्षा एक सामान्य दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। विभिन्न पाठकों के अनुभव और व्याख्याएँ भिन्न हो सकती हैं।

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