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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

 चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...

The Story of Delhi's Khuni Darwaja

 दिल्ली के खूनी दरवाजा पर खत्म हुआ था अकबर का वंश।


1857 के दौरान पूरे भारत देश में अंग्रेजो के विरूद्ध विद्रोह पनप रहा था। उस वक्त के मुगल शासक बहादुर शाह जफर ने भी अंग्रेजो के विरूद्ध विद्रोह का साथ दिया।


शुरू में विद्रोह सफल रहा लेकिन बाद में अंग्रेज इस विद्रोह को दबाने में सफल रहे।


मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर द्वितीय ने बचने के लिए अपने बेटों मिर्जा मुगल और खिजर सुलतान और पोतों के साथ हुमायू के मकबरे में छिप गए।


जहां मेजर हडसन ने उनको पकड़ लिया। मेजर हडसन ने उनको बोला की अंग्रेज सरकार आपको मारना नहीं चाहती है अगर आप आत्मसमर्पण कर दे तो, यह सुनकर बहादुर शाह जफर ने आत्म समर्पण कर दिया और उनके बेटों को पकड़ लिया गया।


लेकिन हडसन कुछ और ही चाह रहा था। जब वह बहादुर शाह जफर के बेटों और पोते को पकड़ के लिए जा रहा था तो बहुत बड़ी भीड़ पीछे चल रही थी।


कुछ गडबड ना हो इसको देखते हुए हडसन ने बहादुर शाह जफर के लड़को के कपड़े और शरीर पर पड़े हुए सारे जेवर उतरवा लिए।


उनको पूरी तरह नंगा करने के बाद दिल्ली के खूनी दरवाजे पर तीनों को गोली मार दी। उसके बाद मेजर हडसन वहीं से चिल्लाया की हिंदुओ मैंने तुम लोगों का बदला ले लिया है।


जिस तरह मुगलों ने लाखों हिंदुओं का कत्ल किया और महिलाओं की इज्जत लूटी वह आज आपके सामने नंगे मरे पड़े हैं।


मेजर हडसन ने यह इसलिए बोला ताकि आगे कोई विद्रोह ना हो सके और लोगों में डर फैलाने के लिए मुगल वंशजों की नंगी लाश को चांदनी चौक पर फेंक दिया।


2 दिन तक लाश वहीं पड़ी रही और किसी को लाश उठाने नहीं दिया। इधर बहादुर शाह जफर को कैद करके रंगून (म्यांमार) भेजने की तैयारी शुरू कर दी।


बहादुर शाह जफर ने भूख लगने पर जब खाना मांगा तो हडसन ने उनके बेटों के सर लाकर थाली में परोस दिए और यह देखकर बहादुर शाह जफर बेहोश हो गया।


जबकि यही काम मुगलों ने बंदा बहादुर के साथ किया था जब औरंगजेब ने बंदा बहादुर के बेटे को उन्हीं के सामने मारकर उसका कलेजा निकालकर बंदा बहादुर के मुँह में डाल दिया था।


बाद में बहादुर शाह जफर की रंगून में कैद के दौरान मृत्यु हो गई। बाकि बचे हुए अकबर के वंशजों को भी अंग्रेजो ने पकड़ पकड़ कर गोली मार दी।


इस तरह अकबर के वंश का समूल नाश कर दिया गया। जिस खूनी दरवाजे पर मेजर हडसन ने बहादुर शाह जफर के बेटों को मारा था उसी खूनी दरवाजे पर औरगजेब ने अपने बड़े भाई दारा शिकोह को मारकर उसकी गर्दन टांग दी थी।


इसी खूनी दरवाजे पर अकबर के बेटे जहांगीर ने अकबर के नौ रत्नों में से एक रहे अब्दुल रहीम खाने खाना के बेटों को मारकर लटका दिया था।

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