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Waqt aur Samose

 .. जब समोसा 50 पैसे का लिया करता था तो ग़ज़ब स्वाद होता था... आज समोसा 10 रुपए का हो गया, पर उसमे से स्वाद चला गया... अब शायद समोसे में कभी वो स्वाद नही मिल पाएगा.. बाहर के किसी भोजन में अब पहले जैसा स्वाद नही, क़्वालिटी नही, शुद्धता नही.. दुकानों में बड़े परातों में तमाम खाने का सामान पड़ा रहता है, पर वो बेस्वाद होता है..  पहले कोई एकाध समोसे वाला फेमस होता था तो वो अपनी समोसे बनाने की गुप्त विधा को औऱ उन्नत बनाने का प्रयास करता था...  बड़े प्यार से समोसे खिलाता, औऱ कहता कि खाकर देखिए, ऐसे और कहीं न मिलेंगे !.. उसे अपने समोसों से प्यार होता.. वो समोसे नही, उसकी कलाकृति थे.. जिनकी प्रसंशा वो खाने वालों के मुंह से सुनना चाहता था,  औऱ इसीलिए वो समोसे दिल से बनाता था, मन लगाकर... समोसे बनाते समय ये न सोंचता कि शाम तक इससे इत्ते पैसे की बिक्री हो जाएगी... वो सोंचता कि आज कितने लोग ये समोसे खाकर वाह कर उठेंगे... इस प्रकार बनाने से उसमे स्नेह-मिश्रण होता था, इसीलिए समोसे स्वादिष्ट बनते थे... प्रेमपूर्वक बनाए और यूँ ही बनाकर सामने डाल दिये गए भोजन में फर्क पता चल जाता है, ...

अर्थला पुस्तक समीक्षा Arthala by Vivek Kumar book review by Abiiinabu

अर्थला पुस्तक समीक्षा  Arthala by Vivek Kumar book review by Abiiinabu

    फिक्शन फैंटेसी श्रेणी में श्रेष्ठ उपन्यासों में से एक कहना जल्द बाजी होगी। अर्थला की किस्सागोई जबरदस्त है और वर्णन करते समय एक बार को तो ऐसा लगने लगता है कि आप स्वयं वहां मौजूद हों। विधान एक साधारण से घर में पला बढ़ा नवयुवक है। उसकी रुचि अपने मा के काम को ना करते हुए योद्धा बनने की है। जिसके लिए वे पिछले पांच वर्षों से लगातार अपने गुरु से कलाएं सीख रहा है। उसके अपने गुरु के बारे में कुछ भी नहीं मालूम है सिवाय इसके कि वे उसके गुरु हैं और उनमें गजब की प्रतिभा है। गुरुजी विधान को युद्धकला के साथ साथ जीवन के दर्शन भी समझाते रहते हैं। विधान गुरुजी के बारे में जानना चाहता है लेकिन गुरुजी गुरुदक्षिना वाले दिन बताने कि बात कह कर टालते रहते हैं। इंतजार करते करते गुरूदक्षीना वाला दिन भी आ जाता है और विधान की आंखों के सामने है उसके गुरु की हत्या कर दी जाती है। उसके गुरु की हत्या किसने की? उसके गुरु की हत्या क्यों की? उसके गुरु कौन थे? इन्हीं सब प्रश्नों के उत्तर पाने की तलाश में विधान व्याकुल रहता है। तभी अचानक उसे पता चलता है कि उसके गुरु ने जो कला उसको दिखाई है वह अत्यंत दुर्लभ है। विधान अचानक से अति साधारण से अति महत्वपूर्ण बन जाता है। कहानी को पढ़ते समय कई बार आपको ब्रिटिश उपन्यासकार JK Rowling द्वारा रचित Harry potter सीरीज की झलक भी मिलती है, लेकिन यह उससे बिल्कुल भी मेल नहीं खाती। बस अंदाज ऐसा है कि आपको ऐसा लगता है कि यह किरदार ये गुण, ये विशेषताएं पहले भी कहीं पढ़ी हैं देखी हैं। अर्थला के ध्वज का वर्णन आपको भारतीय पड़ोसी देश का लग सकता है। एक साधारण मनुष्य जिसकी दुनिया केवल उसकी मां और उसके छोटी सी दुनिया तक सीमित रहती है, जिसकी मुख्य समस्या कर समय पर ना चुका पाना रहती है; यकायक एक अति समृद्ध राज्य के लिए अति महत्वपूर्ण मनुष्य बन जाता है। और साधारण से असाधारण बनने के इस क्रम में विधान के चित्त पर क्या क्या और कौन कौन से प्रभाव पड़ते है, इनका भी स्पष्ट वर्णन मिलता है। बहुत रोचक, बांधे रखने वाली और सरल भाषा में है। मैंने केवल 2 बार में खत्म कर दी। विवेक कुमार असामान्य रूप से चमत्कार करते प्रतीत होते हैं। विधान का किरदार समय समय पर मदद भी प्राप्त करता रहता है जो कभी कभी अटपटा सा लग सकता है। कुल मिलाकर कहानी की भाषा सरल, बांधे रखने वाली और दमदार है। एक बार पढ़ना शुरू किए तो शायद पन्ने उलटते ही जाएं। हिंदी की सामान्य भाषा का सौंदर्य, सजीव वर्णन एवम् सामान्य से महत्त्वपूर्ण बनने के सफर में विधान के मन में चलने वाले द्वंद की हमारे जीवन में समानता को ध्यान में रखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अर्थला एक रुचिकर एवम् शानदार कृति है। भाषा अद्भुत रूप से पढ़नीय है। यदि आप हिंदी में फिक्शन पढ़ने के शौकीन नहीं हैं तो अर्थला निश्चित रूप से आपका भ्रम तोड़ने के लिए काफी है।

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The Vinod Kambli Strory

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EX PM Manmohan Singh's Demise

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