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Book Review: Chitralekha by Bhagwati Charan Verma

 चित्रलेखा – एक दार्शनिक कृति की समीक्षा लेखक: भगवती चरण वर्मा   प्रस्तावना   हिंदी साहित्य के इतिहास में *चित्रलेखा* एक ऐसी अनूठी रचना है जिसने पाठकों को न केवल प्रेम और सौंदर्य के मोह में बाँधा, बल्कि पाप और पुण्य की जटिल अवधारणाओं पर गहन चिंतन के लिए भी प्रेरित किया। भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ था और यह आज भी हिंदी गद्य की कालजयी कृतियों में गिना जाता है। इसमें दार्शनिक विमर्श, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और सामाजिक यथार्थ का ऐसा संलयन है जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है । मूल विषय और उद्देश्य   *चित्रलेखा* का केंद्रीय प्रश्न है — "पाप क्या है?"। यह उपन्यास इस अनुत्तरित प्रश्न को जीवन, प्रेम और मानव प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करता है। कथा की बुनियाद एक बौद्धिक प्रयोग पर टिकी है जिसमें महात्मा रत्नांबर दो शिष्यों — श्वेतांक और विशालदेव — को संसार में यह देखने भेजते हैं कि मनुष्य अपने व्यवहार में पाप और पुण्य का भेद कैसे करता है। इस प्रयोग का परिणाम यह दर्शाता है कि मनुष्य की दृष्टि ही उसके कर्मों को पाप या पुण्य बनाती है। लेखक...

Champions Trophy 2025

 क्रिकेट का अश्वत्थामा, के एल राहुल..


96 के वर्ल्ड कप में विनोद कांबली की आंख में आंसू ये सोचकर आए थे कि,मेरे क्या मेरी टीम के फैंस मुझ पर जरा भी भरोसा नहीं है?क्या मै इनकी निगाह में इतना गिर चुका हू? आज के फाइनल में कुछ ऐसी ही हालत केएल राहुल की भी थी,सोचिए दुनिया का one of the finest player आपके dugout में बैठा हो, और फिर भी आपकी टीम के फैंस को doubt हो रहा हो कि मैच हाथ से निकल जायेगा?पर फैंस का ये बेबुनियाद नहीं था, ये डाउट शुरू हुआ था 23 के फाइनल के दिन से,जिस दिन इस सज्जन आदमी से एक बहुत बड़ी गलती हुई थी।सज्जन आदमी के साथ दिक्कत ये है कि वो थोड़ी सी भी गलती करता है तो उसे सुनाने में लोगो को बहुत मजा आता है। पर सज्जन आदमी के साथ इससे बड़ी दिक्कत ये है, कि छोटी से छोटी गलती दूसरे लोग नोटिस करे न करे, उसके खुद के अंदर एक अदालत चलती रहती है,तब तक जब तक वो उस गलती का हर्जाना न चुका दे।।23 के फाइनल में केएल राहुल से एक गलती हो गई थी, बेचारा अच्छा करने के चक्कर में बहुत बुरा कर बैठा। जबकि इस आदमी के लिए कभी भी सिवाय टीम के,और इस खेल के, दुनिया में कुछ और मायने नहीं रखता। पर उस फाइनल ने इस आदमी के कॉन्फिडेंस को ही चूस लिया था। इसके चेहरे इसकी बॉडी लैंग्वेज से हमेशा यही लगता था कि ये हर दिन खुद को कोसता रहता है।मुझे याद है फाइनल खत्म होने के बाद कितना हताश होकर ये जमीन पर बैठा था, जैसे शर्म के मारे खुद को जमीन के कई फिट अंदर दफन कर देना चाहता हो।जितना हमने इसे नहीं कोसा, उससे कही ज्यादा ये खुद को कोस रहा था।24 का वर्ल्ड कप जीतकर बाकियों ने अपने जख्म भर लिए, पर ये आदमी 23 के बाद से ही, अश्वत्थामा की तरह माथे पर अपनी गलती का एक गहरा जख्म लेकर घूम रहा था।इंसान की संपत्ति चली जाए उसे गम नहीं होता,उसकी रेपुटेशन चली जाए तो उसके पास कुछ नहीं बचता। किस्मत ने कांबली को पता नहीं दूसरा मौका दिया या नहीं, पर राहुल को आज ये मौका मिला था। और सज्जन आदमी की एक और खासियत होती है,जो सज्जन आदमी को खतरनाक बना देती है,वो ये कि, सज्जन आदमी एक गलती दुबारा नहीं करता, उठो अश्वत्थामा ,तुमने अपना शाप खत्म कर लिया है।

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